Monday, March 14, 2011

खाद्य सुरक्षा बिल पर बवाल को दूर करेगा मंत्री समूह


 गरीबों को सस्ता अनाज उपलब्ध कराने वाले खाद्य सुरक्षा विधेयक को सरकार संसद के मौजूदा सत्र में रखने की स्थिति में नहीं है। फिर भी उम्मीद की जा रही है कि इस मामले में राष्ट्रीय विकास परिषद और रंगराजन समिति के बीच कम से कम आम सहमति बनाने की सरकार की कोशिश इस दौरान पूरी हो जाएगी। इसके लिए अगले हफ्ते गुरुवार को अधिकार प्राप्त मंत्रिसमूह की बैठक बुलाई गई है। सत्ता में दोबारा लौटने के बाद संप्रग ने सभी को सस्ता अनाज देने के अपने वायदे को पूरा करने पर प्रतिबद्धता जरूर जताई है, लेकिन सरकार की शीर्ष संस्थाओं के बीच मतभेद होने की वजह से इसे अंतिम रूप देना संभव नहीं हो पा रहा है। एनएसी सभी लोगों के लिए 35 किलो अनाज हर महीने तीन रुपये प्रति किलो की कीमत पर देना चाहती है। जबकि रंगराजन समिति की राय है कि देश में इतना अनाज ही उपलब्ध नहीं है लिहाजा मात्रा को घटाकर 25 किलो और लोगों की संख्या सीमित करनी होगी। इसी मसले पर एक राय नहीं बनने के चलते सरकार खाद्य सुरक्षा कानून बनाने के रास्ते पर कदम नहीं बढ़ा पा रही है। इसीलिए यह मसौदा एक बार फिर अधिकार प्राप्त मंत्री समूह यानी ईजीओएम के पास भेज दिया गया है। ईजीओएम की 17 मार्च को होने वाली बैठक में ही चीनी निर्यात के मुद्दे पर भी फैसला लिए जाने की उम्मीद है। चीनी उद्योग निर्यात पर लगी अस्थाई रोक को हटाने की पुरजोर मांग कर रहा है। चीनी उद्योग का दावा है कि घरेलू बाजार में चीनी के दाम उसकी उत्पादन लागत से भी कम हैं, जिससे पूरा उद्योग संकट में है। खाद्य मंत्रालय और उद्योग संगठनों का मानना है कि चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन 2.45 करोड़ टन से अधिक होगा। जबकि चीनी की घरेलू खपत में वृद्धि नहीं होगी। इसी आधार पर खाद्य मंत्रालय ने चीनी निर्यात की सिफारिश की है। महंगाई को देखते हुए सरकार ने खाद्य मंत्रालय के पांच लाख टन चीनी निर्यात के आदेश को पिछले महीने ही रोक दिया था। इस मुद्दे को लेकर चीनी उद्योग संगठनों ने सरकार को एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें उन्होंने चीनी की मांग व आपूर्ति का आंकड़ा दिया है। इसमें उन्होंने गन्ना किसानों की बढ़ती मुश्किलों का भी जिक्र किया है। क्यों कि चीनी मिलें किसानों को उनके गन्ने का मूल्य सिर्फ 150 रुपये प्रति क्विंटल की दर से दे रही हैं|

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