प्रधानमंत्री को लिखे एक खुले पत्र में केंद्र सरकार की साख बहाली के उपाय बता रहे हैं लेखक
प्रिय प्रधानमंत्री जी, आज आपकी सरकार की विश्वसनीयता दांव पर लगी हुई है। भ्रष्टाचार, नीति-निर्धारण में विचलन और एक पंगु शासन ने देश चलाने की संप्रग सरकार की क्षमता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आप ऐसा आभास देते हैं जैसे आप पद पर तो हैं, लेकिन ताकत आपके पास नहीं। फिर आपको क्या करना चाहिए? मेरे विचार से इस सवाल का उत्तर काफी कुछ उन संकेतों में निहित है जो पिछले दिनों कुल मिलाकर निराशाजनक प्रेस कांफ्रेंस में आपने दिए। सरकार को अपनी ताकत वाले क्षेत्रों का इस्तेमाल करना चाहिए और अपना इकबाल नए सिरे से स्थापित करना चाहिए। आपको कुछ सुधारों का श्रेय लेना चाहिए। इसको सबसे अच्छा उदाहरण वस्तु एवं सेवा कर अर्थात जीएसटी है। यह स्वतंत्र देश के रूप में भारत के इतिहास का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कर कानून है, जो पहली बार भारत को एक साझा बाजार के रूप में प्रस्तुत करेगा। इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने के साथ-साथ राज्यों और केंद्र के राजस्व में भी सुधार होगा। इसके अतिरिक्त जीएसटी से अप्रत्यक्ष कर प्रणाली का समग्र बोझ भी घटेगा और इसके फलस्वरूप कीमतों में कमी आएगी। यद्यपि जीएसटी का प्रस्ताव पूर्ववर्ती राजग शासन के दौरान किया गया था, लेकिन आपकी सरकार ने इसे वास्तविकता के धरातल पर उतारने के लिए राज्यों को मनाने में बेहद धैर्य का परिचय दिया। अब आपकी सरकार इस संदर्भ में संविधान संशोधन के लिए तैयार है, जो कि जीएसटी लागू करने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। यह विचित्र है कि भाजपा शासित राज्य इस पहल का विरोध कर रहे हैं। आपके लिए यह उचित नहीं होगा कि जीएसटी के मामले में आप अपना सिर ऊंचा कर भाजपा के विरोध को दोषी ठहराएं, जैसा कि आपने प्रेस कांफ्रेंस में किया। आपको विपक्षी नेताओं के साथ बैठना होगा और उनके साथ किसी समझौते तक पहुंचना होगा। हम जानते हैं कि आप ऐसा करने में समर्थ हैं। जब नाभिकीय सौदे की बात आई थी तो आप विरोधियों को मनाने में सफल रहे थे। इस नाभिकीय करार के जरिये ही भारत और अमेरिका के संबंध एक नए युग में पहुंचे। भारत की अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए नाभिकीय करार जितना महत्वपूर्ण था उतनी ही अहम जीएसटी घरेलू विकास के लिए है। जीएसटी के लिए एक बार समझौता हो जाए तो आपकी सरकार को आक्रामक रुख अपनाकर देश को यह समझाने की कोशिश करनी चाहिए कि इस व्यवस्था को लागू करने की उपलब्धि का क्या महत्व है? मैं जो सुझाव देना चाहता हूं वह यह कि आपको सुधारक के रूप में 1991 की प्रतिबद्धता पुन: तलाशनी चाहिए और उसके अनुरूप पहल करनी चाहिए। आज तो आपके सामने वामपंथी दलों की अड़चन भी नहीं है। खाद्य मुद्रास्फीति को ही लें। अब तक आपकी सरकार अल्पकालिक मरहम ही लगाती रही है। आपने जमाखोरों को पकड़ने की कोशिश की, वायदा कारोबार पर अंकुश लगाने की पहल की तथा खाद्यान्न के निर्यात को प्रतिबंधित करने के उपाय किए। यह सब तब किया गया जब देश में चावल की बंपर फसल हुई और इस बार रिकार्ड गेंहू के उत्पादन का अनुमान व्यक्त किया जा रहा है-इसके बावजूद कि 17 हजार करोड़ रुपये का खाद्यान्न एफसीआई की तिरपाल के नीचे सड़ रहा है। खाद्य मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने की कुंजी दीर्घकालिक आपूर्ति में निहित है। इसके लिए जरूरी है कि आप कृषि के ढांचे में सुधार करें-उत्पादन और वितरण, दोनों ही स्तरों पर। आपको खाद्यान्न भंडारण में एफसीआइ के साथ प्रतिस्पर्धा को अनुमति देनी होगी। आधुनिक रिटेल में विदेशी निवेश को भी अनुमति मिलनी चाहिए। कोल्ड चेन की पहल करनी होगी और फसलों की बर्बादी पर अंकुश लगाना होगा। इसके साथ ही किसानों को अपनी भूमि उद्यमियों को लीज पर देने की अनुमति भी देनी होगी। यद्यपि सुधार राज्यों के स्तर पर होते हैं, लेकिन इन्हें आगे बढ़ाने के लिए केंद्र में सुधारों के प्रति दृढ़ इच्छाशक्ति वाली सरकार की आवश्यकता है। तीसरा उदाहरण लें। हमारे देश का भविष्य शहरों में लिखा जाएगा, न कि गांवों में। हमारे शहरों का ढांचा दरक रहा है। आपकी सरकार ने इसे समझा भी है। केंद्र सरकार ने जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीकरण मिशन के जरिए शहरों की दशा सुधारने की पहल भी की है। कुछ शहरों ने इस पहल को सही तरह लिया है और इस योजना के तहत दी गई भारी-भरकम राशि का उपयोग किया है, लेकिन ज्यादातर शहर ऐसा करने में असफल रहे हैं। राज्य इसके प्रति इसलिए अनिच्छुक हैं, क्योंकि इससे शक्ति का केंद्र विधायकों के हाथ से निकलकर शहरी निकायों में जा रहा है। आपकी सरकार को ऐसे राज्यों की सार्वजनिक निंदा करनी चाहिए। आपकी सरकार को राज्यों के बीच पनप रही प्रतिस्पर्धा की भावना का भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए और इस बेहतरीन कार्यक्रम को आगे बढ़ाना चाहिए। चौथा उदाहरण शिक्षा के अधिकार संबंधी कानून का है। इस कानून में कई अच्छे पहलू हैं, लेकिन यह शिक्षा में व्याप्त भयानक लाइसेंस राज की समस्या पर ध्यान नहीं देता। किसी को भी एक स्कूल या कालेज खोलने के लिए ढेरों लाइसेंस प्राप्त करने होते हैं और हर कोई यह जानता है कि ये लाइसेंस रिश्वत देकर ही मिलते हैं। शिक्षा के अधिकार से संबंधित कानून यह स्वीकार करता है कि भारत में सरकारी स्कूल असफल रहे हैं, इसलिए उसमें निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत स्थान गरीबों के लिए आरक्षित बनाने का प्रावधान रखा गया है। जल्द ही इन सीटों के लिए मारामारी आरंभ हो जाएगी और मुझे भय है कि ये स्थान राजनेताओं और नौकरशाहों द्वारा झटक लिए जाएंगे और फिर उन्हें ऊंची कीमतों पर बेचा जाएगा। राज्य अभी शिक्षा के अधिकार से संबंधित कानून को लागू करने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए यह जरूरी है कि केंद्र सरकार हस्तक्षेप करे और स्कूलों की स्वायत्तता सुनिश्चित की जाए। सीटें साफ-सुथरे तरीके से पात्र छात्रों को मिलनी चाहिए। आज 35 प्रतिशत बच्चे निजी स्कूलों में हैं और यह संख्या बढ़ती ही जा रही है। केंद्र सरकार को शिक्षा को लाइसेंस राज से मुक्त बनाने की भी ठोस पहल करनी चाहिए। कुछ अन्य सुधार भी हैं जिनकी पहल आपकी सरकार ने की है, जैसे भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन, खनन और अन्य क्षेत्रों से संबंधित विधेयक। आपको यह महसूस करना होगा कि केवल विधेयक पारित करना ही पर्याप्त नहीं। इसके बाद भी बहुत कुछ करना जरूरी होता है। ये कुछ तरीके हैं जिनकी मदद से संप्रग सरकार अपनी विश्वसनीयता फिर से बहाल कर सकती है। कृपया आप हमें यह अहसास कराएं कि आप केवल पद में ही नहीं हैं, बल्कि वाकई आपके पास ताकत है। (लेखक प्रख्यात स्तंभकार हैं)
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