Saturday, March 26, 2011

जैतापुर में जारी है जमीन दखल की राजनीति


न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) और फ्रांस की कम्पनी अरेवा के बीच हुए समझौते से दोनों देशों की दोस्ती को मजबूत आधार भले मिला पर उसकी कीमत भारत के नागरिक और भारतीय अर्थव्यवस्था जैतापुर में चुकाने के लिए मजबूर की जा रही है। हम यहां यदि प्रकल्प पर होने वाले खर्च के मुद्दे पर चुप भी हो जाएं, जो कि एक बेहद विवादास्पद मुद्दा है, उसके बाहर यदि सुरक्षा की बात करें तो उसे लेकर भी पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है।
विरोधियों को सत्ता का ऐसा सबक
जनहित सेवा समिति के संयोजक प्रवीण गवाणकर से पिछले महीने ही उनके घर पर माड़वन में मुलाकात हुई थी। उसी वक्त उन्हें आशंका थी कि पुलिस उन्हें ले जाएगी। वजह साफ है, वे दो लाख करोड़ रुपये के जैतापुर परमाणु ऊर्जा प्रकल्प का विरोध जो कर रहे हैं। कुछ दिनों पहले जब पावस (जैतापुर) के एक मराठी पत्रकार प्रशांत हरचेकर से फोन पर बात हो रही थी; उसी ने बताया कि प्रवीण को पुलिस ने सात दिनों की न्यायिक हिरासत में ले लिया है। हरचेकर ने ही बताया कि प्रवीण पर धारा 317, 395, 353, 341, 427, 143, 03 और 07 लगाई गई है। जैतापुर में प्रस्तावित 9,900 मेगावाट परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए कुल 9,38 हेक्टेयर जमीन ली जानी है, जिसमें 6,69 हेक्टेयर जमीन माड़वन की है। प्रवीण की गिरफ्तारी के ठीक बाद माड़वन में महाराष्ट्र के एक बड़े नेता अपने समर्थकों के साथ एक बड़ा 'रेला'
करने वाले हैं। उम्मीद है, यह लेख छपने तक यह खबर आ चुकी होगी कि माड़वन के लोग परियोजना के साथ हैं जबकि रेला में शामिल लोगों का काफिला रत्नागिरि, चिपलून और आसपास के क्षेत्रों से इकट्ठा किए जाने की योजना है। खुद को जैतापुर वाला बताकर कुछ लोग मीडिया में आकर गलतबयानी भी कर रहे हैं। इसी क्रम में मछुआरों की एक बस्ती साखरी नाटे में किसी जयेंद्र पुरुलेकर का पुतला जलाया गया।
गलतबयानी कर रही सरकार
मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण कहते हैं कि स्थानीय लोग राजी हैं, जमीन देने के लिए। और जब वे खुद मुम्बई में इस मुद्दे पर बातचीत के लिए माड़वन के लोगों को बुलाते हैं तो गांव वाले जाने से साफ इनकार कर देते हैं। अब इसका क्या अर्थ निकाला जाए? गांव वालों का पक्ष साफ है-'बातचीत उस समय की जाए जब हमें (स्थानीय लोगों को) भी अपनी बात कहने का मौका मिले और उम्मीद हो कि हमने अपनी बात से मुख्यमंत्रीजी को विश्वास में ले लिया तो परियोजना रुक जाएगी। ऐसी जगह बात करने का क्या फायदा जिसमें माड़वन में प्रकल्प लगाने का फैसला पहले से सुरक्षित है।'
संदेहास्पद है माहौल
माड़वन में जाने पर जगह-जगह परियोजना के विरोध में लिखे हुए नारे मिले। पूरे गांव में दहशत का माहौल है। नए चेहरे पर स्थानीय लोग बिल्कुल विश्वास नहीं कर पा रहे! न जाने किस वेश में आ जाएं 'सरकार'। परियोजना की जगह पर भारी संख्या में पुलिस वालों को बिठा दिया गया है। सरकार की तरफ से हर तरह का दबाव गांव वालों पर बनाने की कोशिश जारी है। लेकिन स्थानीय लोग किसी भी कीमत पर अपनी जमीन देने को तैयार नहीं हैं। परिणाम यह है कि गांव वालों को पुलिसिया जुर्म का शिकार होना पड़ रहा है। इस समय लगभग दो सौ लोगों पर विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा चल रहा है। लगभग एक दर्जन पंचायतें भंग हो चुकी हैं।
जमीन पर दिखा जंगलराज
कई लोगों को तड़ीपार भी होना पड़ा। स्थानीय लोगों ने ही बताया कि परियोजना का विरोध कर रहे इरफान काजी नाम के एक युवक की मौत पुलिस की गाड़ी के नीचे आने से हो गई। ऐसे बच्चे को भी पुलिस गांव से उठाकर थाने ले गई, जो स्कूल से लौटे थे। माड़वन में रहने वाले एक सज्जन ने कहा-'हम लोग जंगलराज-जंगलराज किताबों में पढ़ते थे। इस बार हम अपनी आंखों से वह देख रहे हैं।' यहां बताते चलें कि माड़वन को रत्नागिरि जिले में स्वतंत्रता सेनानियों के गांव के रूप में जाना जाता है। इस गांव में आधा दर्जन से अधिक स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार रहते हैं। अंग्रेजों से लड़ने वालों के परिवारों को अब अपनी सरकार से लड़ना पड़ रहा है। वैसे उनके लिए अपनी सरकार अंग्रेज से भी अधिक क्रूर साबित हो रही है, चूंकि अंग्रेजों ने इन्हें अपने घर से तो बेदखल नहीं किया था।
अभी से दिखने लगे दुष्प्रभाव
प्रवीण गवाणकर से जनवरी में जब मुलाकात हुई थी तो उनके शब्द थे, 'हम जीते जी तो यह जमीन नहीं दे सकते, सरकार चाहे तो हमारी हत्या करके यह जमीन ले ले।' तारापुर परियोजना जो माड़वन में प्रस्तावित परियोजना से बहुत छोटी है, उसका जिक्र करते हुए गवाणकर ने बताया 'हमें सरकार की तरफ से बताया जा रहा था कि तारापुर में सब अच्छा चल रहा है। मैं खुद उस गांव में गया। वहां की स्थिति बिल्कुल दयनीय है। वहां सिर दर्द, घुटनों में दर्द और गर्भपात की संख्या में आश्र्चयजनक वृद्धि हुई है। गांव में कमजोर बच्चे पैदा हो रहे हैं। परियोजना से पहले इस गांव में मछली पकड़ने के लिए 48 लंच थे, अब सिर्फ दो ही रह गए हैं। मैं स्पष्ट शब्दों में कह देना चाहता हूं, हम गांव वाले जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र परियोजना के बिल्कुल खिलाफ हैं।'


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