कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के बाद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की बाबा रामदेव के खिलाफ बयानबाजी और उन्हें राजनीति न करने की बिन मांगी सलाह इस बात की तस्दीक कर रही है कि देश के सियासतदानों को बाबा जैसे ईमानदार और संत मिजाज के लोग भयभीत करने लगे हैं। देश के सियासतदानों के मन में इस बात का भय सताने लगा है कि अगर बाबा रामदेव राजनीति में उतरते हैं तो उन्हें एक नई चुनौती मिलनी तय है। अभी तक बाबा का गुणगान करने वाले लालू यादव का अचानक बाबा के खिलाफ मैदान में आना और उन्हें भला-बुरा कहना इस बात का पुख्ता संकेत है कि बाबा की बढ़ती लोकप्रियता से न कांग्रेस, बल्कि अन्य राजनीतिक दल भी खौफ खाने लगे हैं। बाबा द्वारा राजनीति के शुद्धिकरण की बात उन्हें बिल्कुल ही रास नहीं आ रही है। आज की तारीख में भ्रष्टाचार के मसले पर बाबा के साथ पूरा देश खड़ा है और उन्हें पुरजोर समर्थन देने का भी इंकलाब लगा रहा है। ऐसे में राजनीतिक दलों के माथे पर बल पड़ना स्वाभाविक है। भले ही बाबा आज की तारीख में चुनाव न लड़ने की बात कर रहे हैं, लेकिन गाहे-बगाहे वे कई बार इस बात का संकेत दे भी चुके हैं कि आने वाले दिनों में उनके उम्मीदवार चुनावी दंगल में उतर सकते हैं। शायद यही कारण है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दल बाबा के खिलाफ एक मुहिम छेड़ चुके हैं। सबसे पहले बाबा के खिलाफ दिग्विजय सिंह ने यह कहकर मोर्चा खोला कि बाबा के पास महज एक दशक के अंदर इतना धन कहां से आया है। बाबा को इसका जवाब देना चाहिए। उन्होंने बाबा के पास काला धन होने की बात कहकर सनसनी फैलाने की कोशिश की, लेकिन बाबा भी चुप रहने वालों में कहां थे? उन्होंने भी सरकार को चुनौती दे डाली कि वह जब चाहे उनके ट्रस्टों और संपत्ति की जांच करा ले। बाबा ने साफ कर दिया है कि उनके नाम न तो एक फूटी कौड़ी है और न ही एक इंच जमीन। वे पहले ही अपने दोनों ट्रस्टों-दिव्य योग मंदिर और पतंजलि योगपीठ की संपत्ति का खुलासा कर चुके हैं। देखा जाए तो बाबा के पास छिपाने के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे सामने लाकर दिग्विजय सिंह अपनी वाहवाही करा ले जाएं। बाबा द्वारा दिग्विजय सिंह का पलीता लगाए जाने के बाद अब लालू यादव का बाबा के खिलाफ मुखर होना बाबा के खिलाफ हो रही एक नई लामबंदी को अभिव्यक्त कर रहा है। दरअसल, कांग्रेस और लालू सरीखे सियासतदानों को लग रहा है कि भ्रष्टाचार के मसले पर बाबा रामदेव भाजपा के एजेंडे को ही आगे बढ़ा रहे हैं। वे पुरजोर तरीके से इसका दुष्प्रचार भी कर रहे हैं। बाबा रामदेव के बचाव में भाजपा के कई नेताओं का मैदान में आना इस बात को बल भी दे जाता है। बाबा द्वारा भ्रष्टाचारियों की पोल-खोल और बड़े पैमाने पर जनता की लामबंदी ने कांग्रेस सहित उन तमाम राजनीतिक दलों को असहज कर दिया है, जो वैचारिक रूप से भाजपा के खिलाफ हैं। यही कारण है कि दिग्विजय और लालू सरीखे सियासतदान अब बाबा रामदेव पर भाजपा से मिलीभगत का आरोप लगा रहे हैं। उनके इस मकसद के पीछे तुष्टीकरण की सियासत भी छिपी हुई है। वे चाहते हैं कि बाबा को भाजपा की विचारधारा से जोड़कर उनकी छवि को धुल-धुसरित कर दिया जाए। दरअसल, बाबा रामदेव जिस गति के साथ देश के करोड़ों लोगों को लामबंद कर रहे हैं और काले धन को देश वापस लाने की मुहिम को तेज किए हुए हैं, उसे देखकर लगने लगा है कि देर-सबेर इसमें सफलता मिलनी तय है। उनकी इस मुहिम में देश के जानेमाने चेहरे भी शामिल हो रहे हैं। पिछले दिनों दिल्ली के रामलीला मैदान में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जो जनसमूह उमड़ा, उसे देखकर भ्रष्टाचारियों के कान खड़े होना स्वाभाविक है। उन्हें डर सताने लगा है कि कहीं बाबा की मुहिम रंग लाई तो उनके चेहरे पर कालिख जरूर पुत जाएगी। उन लोगों का चेहरा भी सामने आ जाएगा, जो राष्ट्रभक्त होने की मुनादी पीट रहे हैं। यही कारण है कि देश के भ्रष्ट सियासतदान यह कहते सुने जा रहे हैं कि बाबा को योग शिक्षा तक ही अपने आपको सीमित रखना चाहिए। दिग्विजय सिंह और लालू का बाबा पर हमला कुछ ऐसा ही संदर्भित कर रहा है। अन्यथा, वे बाबा से दान स्वरूप मिली संपत्ति पर हिसाब नहीं मांगते और न ही राजनीति से दूर रहने की सलाह देते। बाबा ने लालू की टिप्पणी पर भले ही कान न दिया, लेकिन कांग्रेस के उन ट्रस्टों की जांच कराने की जरूर मांग कर डाली है, जिनके पास करोड़ों की संपत्ति है। कहीं ऐसा न हो कि दिग्विजय सिंह बाबा की संपत्ति का हिसाब लेते-लेते और लालू प्रसाद उन्हें सीख देते-देते अपनी मुश्किलें और बढ़ा लें।
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