Friday, March 11, 2011

सुलह को मजबूर हुई द्रमुक


सात साल में कई बार ब्लैकमेल हुई कांग्रेस ने पहली बार द्रमुक को झुकने पर मजबूर कर दिया। कांग्रेस तमिलनाडु में 63 सीटों पर ही चुनाव लड़ेगी। इसके लिए द्रमुक एक सीट छोड़ेगी, वहीं एक पीएमके और एक सीट मुस्लिम लीग के खाते से जाएगी। ए. राजा के खिलाफ सीबीआई जांच में तेजी रोकने के लिए दबाव डाल रही डीएमके से कांग्रेस नेतृत्व ने कह दिया कि उसमें सरकार दखल नहीं कर सकती। अलबत्ता, सीबीआई की बयानबाजी और मीडिया में खबरें लीक करने के मसले को देखने का आश्वासन जरूर दिया गया है। कई दौर बैठकों के बाद देर शाम तमिलनाडु के प्रभारी महासचिव व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद और द्रमुक नेता दयानिधि मारन और एमके अलागिरी ने गठबंधन का संकट टलने की घोषणा की। साथ ही बताया कि कांग्रेस राज्य में 63 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। वैसे तो द्रमुक ने कांग्रेस को 60 सीटें देने के बाद तीन और सीटें न देने के मुद्दे पर गठजोड़ तोड़ने का एलान किया था, लेकिन असल मुद्दे दूसरे थे। पहला तो जिताऊ सीटों पर दावेदारी का मसला था, वहीं सीबीआई की तरफ से जांच में आई तेजी पर भी द्रमुक की नाराजगी थी। कांग्रेस इस बात को समझ रही थी, लेकिन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जांच को प्रभावित करने की तोहमत लेकर वह गठबंधन चलाने के पक्ष में नहीं थी। इसीलिए, कांग्रेस ने द्रमुक के दांव को समझते हुए जल्दबाजी नहीं की। अलबत्ता, कांग्रेस ने यह जरूर सुनिश्चित किया कि द्रमुक को चिढ़ाने का मौका न दिया जाए। चूंकि, तमिलनाडु से सांसद और गृहमंत्री पी. चिदंबरम से ही द्रमुक नेता ज्यादा चिढ़े थे, लिहाजा समझौते की बातचीत से उन्हें अलग कर दिया गया। दोनों पक्ष थोड़ा झुके और सीटों का फार्मूला निकलने के बाद सोमवार रात को अलागिरी और मारन की सोनिया गांधी से मुलाकात हुई। कई दौर की बातचीत में कांग्रेस नेता द्रमुक को यह समझाने में कामयाब रहे कि सीबीआई जांच पर किसी भी तरह का हस्तक्षेप आत्मघाती होगा।


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