Wednesday, May 25, 2011

नाकामी-बदनामी के दो बरस


लेखक भ्रष्टाचार और कुशासन के कारण संप्रग सरकार के दो वर्ष पूरे होने के जश्न को निरर्थक मान रहे हैं...
यदि 22 मई को संप्रग सरकार के दो वर्ष पूरे नहीं हो रहे होते तो उसके पास जश्न मनाने के बहाने आम जनता से कुछ भी कहने के लिए नहीं होता। चूंकि सरकार के कार्यकाल के दो वर्ष पूरे हो रहे थे इसलिए जश्न मनाने की औपचारिकता पूरी करनी ही थी। यह जिस तरह पूरी की गई उससे स्वत: स्पष्ट हो जाता है कि जश्न मनाने का काम मजबूरी में किया गया। आखिर इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि कोई सरकार अपने कार्यकाल के दो वर्ष पूरे करे और इस मौके पर उसके नेता केवल डिनर करें। इस अवसर पर सरकार की ओर से 74 पेज की अपनी कथित उपलब्धियों की जो रपट जारी की गई उस पर यदि किसी ने गौर नहीं किया तो उसके लिए उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता। वैसे भी अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य, आधारभूत ढांचे, कृषि आदि के क्षेत्र में जो उपलब्धियां गिनाई गईं उनमें छिपी नाकामियां साफ नजर आती हैं। अपनी सरकार के दो वर्ष पूरे होने पर आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री के इस कथन से कोई उत्साहित होने वाला नहीं है कि कुछ गलतियां हुई हैं, लेकिन सरकार उन्हें ठीक करने के लिए प्रतिबद्ध है और हताश होने का कोई सवाल नहीं उठता। यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री हताश नहीं हैं, लेकिन आम जनता की मनोदशा उनसे सर्वथा भिन्न है और इससे उन्हें न सही सोनिया गांधी को अवश्य अवगत होना चाहिए। संप्रग सरकार के दो वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित समारोह में सोनिया गांधी की ओर से भी यह कहा गया कि हम भ्रष्टाचार से लड़ेंगे और इस संदर्भ में जो कह रहे हैं वह करके दिखाएंगे। अब ऐसे वक्तव्य इसलिए दिलासा नहीं दे सकते, क्योंकि कांग्रेस के बुराड़ी महाअधिवेशन में ऐसी ही बातें की गई थीं और फिर भी भ्रष्टाचार से न लड़ने के संकेत दिए जाते रहे। काले धन के मामले में प्रवर्तन निदेशालय अथवा आयकर विभाग जब-जब सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उपस्थित होता है, तब-तब वह उसकी फटकार सुनकर बाहर आता है। काले धन के कुख्यात कारोबारी और सबसे बड़े कर चोर माने जाने वाले हसन अली के खिलाफ हो रही जांच यही बताती है कि कैसे किसी मामले की सही तरह से जांच नहीं की जानी चाहिए। संप्रग सरकार भ्रष्टाचार से लड़ने के चाहे जैसे दावे क्यों न करे, उसकी कार्यप्रणाली और भाव-भंगिमा यही बताती है कि या तो उसमें ऐसा करने की इच्छाशक्ति नहीं या फिर यह काम उसके वश में नहीं। भ्रष्टाचार विरोधी सोनिया गांधी के पांच सूत्रों पर विचार करने के लिए गठित मंत्री समूह अभी विचार-विमर्श करने में ही मशगूल है। प्रधानमंत्री का ताजा बयान यह भी बता रहा है कि सरकार अभी तक यह नहीं तय कर सकी है कि मंत्रियों और वरिष्ठ नौकरशाहों के विशेषाधिकार खत्म किए जाएं या नहीं? संप्रग सरकार के नीति-नियंताओं को यह अहसास होना चाहिए कि सरकार के साथ-साथ खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लग चुकी है और इसके लिए वही जिम्मेदार हैं, क्योंकि जब सुरेश कलमाड़ी मनमानी कर रहे थे तब उन्हें लिखित और मौखिक रूप से चेताया गया था। ऐसा ही काम ए.राजा की मनमानी के मामले में भी किया गया था, लेकिन उन्होंने उन्हें क्लीनचिट देने का काम किया। वह दागी पीजे थॉमस को भी तब तक क्लीनचिट देते रहे जब तक सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें सीवीसी की कुर्सी से जबरन उतार नहीं दिया। एंट्रिक्स-देवास घोटाला तो खुद प्रधानमंत्री कार्यालय की ही गफलत की देन था। सरकार में बैठे लोग यह स्वीकार नहीं करेंगे, लेकिन वास्तविकता यही है कि भ्रष्ट तत्वों के खिलाफ प्रधानमंत्री की अकर्मण्यता और निष्कि्रयता ने देश में हजारों कलमाड़ी और राजा पैदा कर दिए हैं। यदि प्रधानमंत्री अपने ही कार्यालय पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं तो फिर पूरी सरकार को कैसे नियंत्रित करेंगे? इस पर आश्चर्य नहीं कि अपने दूसरे कार्यकाल में वह अपने मंत्रियों पर और मंत्री अपने अमले पर लगाम लगाने में समर्थ नहीं दिख रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण है पाकिस्तान को सौंपी गई भगोड़ों की सूची। गृहमंत्री पी. चिदंबरम की मानें तो इस सूची में गफलत के लिए सीबीआइ जिम्मेदार है। उन्होंने इस सूची के लिए अपनी आलोचना के जवाब में यह भी स्पष्ट किया कि सीबीआइ उनके तहत काम नहीं करती। यह शीर्ष एजेंसी प्रधानमंत्री के तहत काम करती है और उसके कुछ अधिकारियों ने तब शेखचिल्लियों को भी मात दे दी जब वे मियाद खत्म हो चुके वारंट को लेकर एक भगोड़े के प्र‌र्त्यपण के लिए डेनमार्क पहुंच गए। ऐसा तभी होता है जब शासन के शीर्ष पर बैठे लोग शासन करने की इच्छा खो देते हैं। ऐसे ही लोग जब मजबूरी में अपनी कथित कामयाबी का जश्न मनाते हैं तो यह कहते हैं कि हताश होने की जरूरत नहीं है, लेकिन जनता की मजबूरी यह है कि वह यह देख रही है कि अभी तक भ्रष्टाचार के खिलाफ जो भी कार्रवाई हुई है वह या तो न्यायपालिका या फिर विपक्ष के दबाव में ही हुई है। (लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं)

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