Sunday, May 15, 2011

मुसलमानों ने चमकाई सबकी किस्मत


पश्चिम बंगाल समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों के जो भी सबक हों, लेकिन चौकाने वाली हार-जीत में मुस्लिम मतदाताओं का बहुत बड़ा हाथ रहा। कम से कम पश्चिम बंगाल में तो यह कह ही सकते हैं कि जिधर गए मुसलमान, वही बना भाग्यवान। केरल में यूडीएफ की जीत की राह कठिन करने में उसने बड़ी भूमिका निभाई तो बाकी तीन राज्यों में भी उनके रुझान का असर नतीजों पर पड़ा है। पश्चिम बंगाल के पिछले विधानसभा चुनाव में महज 30 विधानसभा सीटें जीतने वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस यदि इस बार लगभग छह गुना सीटें पाकर अभूतभूर्व जीत दर्ज करा रही है तो उसमें राज्य के लगभग 35 प्रतिशत मुस्लिमों का बड़ा हाथ है। तृणमूल के मुस्लिम समुदाय के प्रत्याशियों की भारी मतों के अंतर से जीत भी यह संकेत देती है कि ममता की तरफ मुसलमानों का कितना जबरदस्त झुकाव था। ममता ने अपने घोषणा पत्र में मालदा, बीरभूम, मुर्शिदाबाद और दिनाजपुर जैसे लगभग दर्जनभर मुस्लिम आबादी बहुल जिलों पर फोकस किया, नतीजे भी मिले। बीते तीन दशक से वामदलों को अपना मसीहा मानते रहे मुसलमानों ने अपनी उपेक्षा का बदला वाम दलों से देर से ही सही, लेकिन दुरुस्त लिया। केंद्र से मिले धन से अल्पसंख्यक बहुल एक दर्जन जिलों में प्रदेश सरकार ठीक से काम नहीं करा सकी। उसे 37 हजार इंदिरा आवास बनाने थे, लेकिन महज आठ हजार बने। स्कूल 41 बनने थे, बने चार। 6000 अतिरिक्त क्लासरूम में से सिर्फ 1200 बने। आंगनबाड़ी केंद्र 7000 बनने थे, वह भी 12 सौ तक ही सीमित रहे। इस उपेक्षा का उन्होंने जवाब दिया। केरल में तो 140 सीटों में से कांग्रेस की अगुवाई वाले संयुक्त प्रजातांत्रिक फ्रंट (यूडीएफ) को 100 सीटें जीतने तक का अनुमान लगाया जा रहा था, लेकिन मुसलिम वोटों की कमी से वह काफी पीछे रह गई। राज्य में 20 से 21 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। उनपर मुस्लिम लीग व जमाते इस्लामी जैसे संगठनों का प्रभाव है। यूडीएफ के प्रमुख घटक इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को मुस्लिम वोटों का फायदा मिला तो वह 24 सीटों पर लड़कर 17 पर जीत गई। दूसरी तरफ, जमाते इस्लामी ने माकपा की अगुवाई वाले वाम प्रजातांत्रिक फ्रंट (एलडीएफ) को 115 सीटों पर अंदरूनी तौर पर समर्थन कर दिया था। नतीजा यह हुआ कि यूडीएफ को बहुमत तो मिल गया, लेकिन जीत की रफ्तार धीमी हो गई। असम में लगभग एक करोड़ मुसलिम मतदाता 126 सीटों में से 40 पर हार-जीत तय करते हैं। यही कारण है कि चुनाव में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी ने मुस्लिम बहुत क्षेत्रों में सघन प्रचार किया था। तमिलनाडु में सात प्रतिशत मुस्लिम वोटों के लिए डीएमके और एआइडीएमके ने कोई कसर नहीं छोड़ी। डीएमके ने तो मुस्लिम मतदाताओं के मतो के लिए इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग से गठजोड़ किया और नौैकरियों में मुस्लिम आरक्षण की भी हिमायत की थी।


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