दुनिया का सबसे खूंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह एक प्रेस कांफ्रेंस में मारे गए इस खतरनाक आतंकवादी को ओसामा जी कहकर संबोधित किया। इससे पहले अल कायदा के इस आतंकवादी को समुद्र में दफनाए जाने पर दिग्विजय सिंह ने कहा था कि कोई चाहे जितना बड़ा आतंकवादी हो, लेकिन मरने के बाद उसका अंतिम संस्कार उसके धार्मिक रीति-रिवाज से ही करना चाहिए। यह कोई पहला वाकया नहीं है जब दिग्विजय सिंह ने इस तरह का बयान दिया है। दिग्विजय सिंह इससे पहले भी बाटला हाऊस मुठभेड़ पर सवाल खड़े कर चुके हैं। बाटला हाऊस मुठभेड़ में मारे गए आतंकवादी आजमगढ़ के संजरपुर इलाके के थे। दिग्विजय सिंह को भले ही इस मुठभेड़ में मारे गए शहीद पुलिस निरीक्षक मोहन चंद शर्मा के परिवार से सहानुभूति न हो, लेकिन उन्होंने आजमगढ़ के संजरपुर में इस मुठभेड़ में मारे गए आतंकवादियों के परिजनों से मुलाकात की। इसके पहले भी दिग्विजय सिंह कभी भगवा आतंकवाद तो कभी मुंबई आतंकवादी हमले में शहीद हेमंत करकरे से टेलीफोन पर हुई बातचीत का हवाला देकर सुर्खियों में बने रहे हैं। दिग्विजय सिंह ही नहीं, देश के गृहमंत्री पी चिदंबरम को भी सीमापार आतंकवाद से ज्यादा खतरनाक भगवा आतंकवाद नजर आता है। ओसामा बिन लादेन को ओसामा जी बोलना या फिर उसके दफनाए जाने पर सवाल खड़े करने वाले बयान से कांग्रेस भले ही किनारा करती नजर आ रही हो, लेकिन यह दिग्विजय सिंह की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है और इस बात को कांग्रेस पार्टी भी बखूबी समझती है। दिग्विजय सिंह का यह बयान क्या आतंकवाद जैसी गंभीर समस्या पर तुष्टिकरण की राजनीति करने वाला नहीं है? आखिर दिग्विजय सिंह या संप्रग सरकार ने इस पूरे मसले पर कड़े शब्दों में पाकिस्तान को साफ शब्दों में ये चेतावनी क्यों नहीं दी कि अब हम मुंबई हमले की साजिश में शामिल आतंकवादियों का खात्मा चाहते हैं। अमेरिका में 11 सितंबर, 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमला होता है और अमेरिकी सरकार पाकिस्तान में घुसकर लादेन जैसे आतंकवादी को मारकर उसकी लाश को समुद्र में दफना देती है। हमारे देश की सर्वोच्च अदालत संसद पर हमले के लिए अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाती है, लेकिन सरकार इस आतंकवादी को फांसी दिए जाने की बजाय मामले को टालना ज्यादा पसंद करती है। सरकार को लगता है कि अफजल गुरु को फांसी दिए जाने पर देश का मुस्लिम तबका उससे कहीं नाराज न हो जाए। आतंकवाद के मसले पर कांग्रेस की तुष्टिकरण की यह नीति देश की मुस्लिम आबादी की निष्ठा पर सवाल खड़े करने वाली है। मुस्लिम समाज समेत देश का हर तबका आज मानता है कि आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता है और अगर कोई दोषी है तो उसे सजा जरूर मिलनी चाहिए। ओसामा बिन लादेन जैसा आतंकवादी जेहाद के नाम पर बेकसूर लोगों को मौत के घाट उतार रहा था और ऐसे खतरनाक आतंकवादी के मारे जाने पर तुष्टिकरण की राजनीति करना आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई को कमजोर करना है। इसमें कोई दो राय नहीं कि आजादी के बाद से अब तक देश की मुस्लिम आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी पिछड़ेपन का शिकार है और खुद को विकास की मुख्य धारा से नहीं जोड़ सका है, लेकिन सवाल यह उठता है कि इसके लिए कसूरवार कौन है? सच्चर कमेटी और रंगनाथ आयोग की रिपोर्ट के बहाने कांग्रेस हमेशा ये बताने की कोशिश करती रही है कि मुस्लिम आबादी के एक बड़े हिस्से की दुर्दशा को लेकर वह चिंतित है, लेकिन ये सारी चिंताए चुनाव विशेष तक ही सीमित रहीं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह या फिर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं को यह भी समझने की जरूरत है कि देश की मुस्लिम आबादी का एक बड़ा हिस्सा भले ही अभी भी पिछड़ेपन का शिकार हो, लेकिन आप अपने राजनीतिक फायदे के लिए उसका इस्तेमाल नहीं कर सकते। यही वजह है कि अयोध्या पर अदालत के फैसले को लेकर जब मुलायम सिंह जैसे नेता ने कुछ भड़काऊ बयान दिए तो कई मुस्लिम उलेमाओं ने इसको लेकर उन्हें जमकर फटकार लगाई। भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी का कहना है कि अगर दिग्विजय सिंह को लादेन से इतना ही प्यार है तो वे अपने घर पर या कांग्रेस मुख्यालय पर उसकी कब्र बनवा लें और रोज ओसामा जी, ओसामा जी कहें। बात सिर्फ राजनीतिक बयानबाजियों की नहीं है, दिग्विजय सिंह के ओसामा जी कहने या फिर उसके दफनाए जाने को लेकर कुछ अखबारों के इंटरनेट संस्करणों में प्रकाशित खबरों में जिस तरह से आम जनता की प्रतिक्रियाएं आई हैं, उसे पढ़कर लोगों की नाराजगी का अंदाजा लगाया जा सकता है। कुल मिलाकर देश की मुस्लिम आबादी राजनीतिक तौर पर पूरी तरह जागरूक है और उसे यह समझ में आने लगा है कि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी जैसे दलों ने उसका इस्तेमाल वोट बैंक के तौर पर ही किया है। वाराणसी की प्रेस कांफ्रेंस में ओसामा बिन लादेन जैसे खतरनाक आतंकवादी को ओसामा जी बोलकर या फिर आजमगढ़ में संदिग्ध आतंकवादियों के परिजनों से मिलकर कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह को शायद यह लग रहा होगा कि ऐसा करके वह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक को कांग्रेस पार्टी के खाते में लेकर आ जाएंगे। आज मुस्लिम समाज के लोगों की भावनाओं को समझने की जरूरत है। उन्हें पांच सौ रुपये के नोट की तरह असली या नकली की कसौटी पर नहीं देखा जाना चाहिए। कांग्रेस पार्टी अभी भी सत्तर और अस्सी के दशक को ही वर्तमान मानकर चलने की भूल कर रही है, जबकि हकीकत में वक्त बदल चुका है। आज मुस्लिम आबादी अपना भला-बुरा समझने लगी है। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में पिछले कुछ चुनावों के नतीजे कांग्रेस के लिए चौंकाने वाले ही रहे हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों पर अगर कांग्रेस पार्टी के नेता यूं ही राजनीति करते रहे तो न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि देश के बाकी हिस्सों में भी उसे लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा। हमें अमेरिका का पिछलग्गू बनने की जरूरत नहीं है। अमेरिका को डर था कि ओसामा को दफनाए जाने के बाद वहां स्मारक बनाया जा सकता है और कट्टरपंथी ताकतें इसका इस्तेमाल लोगों को भड़काने के लिए कर सकती हैं, इसीलिए ओसामा के शव को समुद्र में दफना दिया गया। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हमारे नेता अमेरिका से सीख सकते हैं। आज जरूरत इस बात की है कि सरकार आतंकवाद जैसे गंभीर मसलों पर राजनीति करने के बजाय एकजुट नजर आए ताकि फिर कोई मुंबई या देश की संसद पर हमला करने वालों को अपने यहां पनाह देने की हिम्मत न जुटा सके। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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