दक्षिण भारतीय राजनीति में अम्मा के नाम से विख्यात अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जे जयललिता ने द्रमुक का सूपड़ा साफ कर तमिलनाडु की सत्ता पर एक बार फिर कब्जा जमा लिया। इसी के साथ जयललिता ने द्रमुक के हाथों 2004 चार में मिली हार का बदला भी ले लिया। अभिनय की दुनिया से राजनीति में आई जया ने द्रमुक को जवाब देने के लिए न सिर्फ डीएमडीके और वाम दलों से हाथ मिलाया बल्कि छोटे-छोटे दलों को गठबंधन में शामिल करने की कोशिश की। द्रमुक ने वोटरों को लुभाने के लिए मिक्सर, ग्रिंडर आदि देने की घोषणाओं का उसी शैली में जवाब दिया। मैसूर निवासी संध्या और जयरमण के घर पैदा हुईं जयललिता को सिर्फ 15 साल की उम्र में घर की मदद के लिए अभिनय के क्षेत्र में आना पड़ा। जयललिता ने करीब तीन दशक के फिल्मी करियर में तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और हिंदी की करीब 300 फिल्मों में काम किया। उन्होंने एमजीआर और शिवाजी गणेशन सहित उस दौर के सभी प्रमुख अभिनेताओं के साथ काम किया। अन्नाद्रमुक के संस्थापक स्व एम जी रामचंद्रन अस्सी के दशक में जया को राजनीति में लाए और पार्टी का प्रचार सचिव बनाया। 1982 में वह पहली बार राज्यसभा की सदस्य बनीं। रामचंद्रन की मौत के बाद उन्होंने पार्टी की कमान अपने हाथों में ले ली। 1991 में विस चुनावों के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या होने के बाद सहानुभूमि लहर से अन्नाद्रमुक-कांगे्रस को फायदा हुआ और जयललिता ने मुख्यमंत्री का पद संभाला। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने लिट्टे पर प्रतिबंध लगाने की मांग की जिसे केंद्र ने स्वीकार कर लिया। हिन्दुत्व के प्रति अपना झुकाव रखने वाली जयललिता भाजपा और शिवसेना के अलावा उन कुछ नेताओं में थीं जिन्होंने कार सेवा और अयोध्या का समर्थन किया था। मुख्यमंत्री के रूप में जयललिता का पहला कार्यकाल विवादों से घिरा रहा और उनके दत्तक पुत्र वी एन सुधाकरण की शादी में हुए खर्च की व्यापक आलोचना हुई। मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने लाटरी टिकटों पर प्रतिबंध लगा दिया और हड़ताल कर रहे करीब दो लाख कर्मचारियों को एक ही झटके में बर्खास्त कर दिया। साथ ही किसानों को मुफ्त बिजली जैसी सुविधाओं पर भी रोक लगा दी, लेकिन 2004 में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद उनके रुख में कुछ नरमी आई।
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