Sunday, May 15, 2011

माओवाद-पहाड़ से निपटना ममता के लिए बड़ी चुनौती


पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की डगर आसान नहीं होगी। उन्हें विरासत में फूल नहीं, कांटे का ताज मिला है। ऐसे में नई सरकार को कई चुनौतियों से एक साथ जूझने की नौबत है। वामो सरकार ने पिछले 34 वर्षो में अपने ढंग से व्यवस्था चलाई। अधिकांश क्षेत्रों में पार्टी से जुडे़ लोगों को महत्व दिया गया। शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी माकपा के पूर्णकालिक सदस्यों को जिम्मेदारी सौंपी गई। इन्हें रातोंरात बदलना मुश्किल है। जाहिर है दीदी की डगर बेहद दुश्वारियों भरी है। सबसे बड़ी समस्या है पहाड़ की। कुछ माह पहले ममता ने पहाड़ जाकर वहां के नेताओं विमल गुरुंग व रोशन गिरी से मुलाकात की थी। आश्र्वासन दिया था कि सत्ता परिवर्तन पर समस्याएं दूर कर दूंगी। यह कहना जितना आसान था, उतना करना मुश्किल है। एक तरफ जहां पहाड़वासी अलग राज्य गोरखालैंड की मांग कर रहे हैं, वहीं तृणमूल नेताओं का स्टैंड साफ है कि किसी कीमत पर बंगाल का विभाजन नहीं होने देंगे। यदि ममता कुछ सुविधाएं बढ़ाती हैं, तो यह जरूरी नहीं है कि पहाड़वासी उसे मान लेंगे। ऐसे में पहाड़ पर बुझी चिंगारी कभी भी धधक सकती है। कमोवेश यही हाल माओवादी समस्या का है। यह समस्या भी विकराल है, जिसका समाधान आसान काम नहीं है। यह तभी संभव है, जब जंगलमहल का पूर्ण रूप से विकास किया जाए, लेकिन इसमें बहुत समय लगेगा। जिस हिसाब से आदिवासियों की उपेक्षा पिछले वामो सरकार में हुई है, उसकी एकबारगी पूर्ति मुश्किल है। जब तक आदिवासियों को उनका हक नहीं मिलेगा, तब तक वे माओवादियों से समर्थन लेने को बाध्य हैं। ममता ने कहा है कि आदिवासियों को उनका हक दिलाऊंगी। सिर्फ इस भरोसे पर जंगलमहल में तृणमूल को सफलता मिली है। उस हिसाब से काम नहीं होने पर आदिवासियों व माओवादियों के बीच संबंध को तोड़ना कठिन है। आज भी लोग इलाज कराने के लिए सरकारी अस्पताल एसएसकेएम व नीलरतन सरकार में आते हैं। अल्पसंख्यकों के विकास के लिए काम करने की बड़ी चुनौती है। चुनाव के पहले से खराब विधि व्यवस्था कैसे सुधारेगी। इसके बारे में कठोर कदम उठाने पड़ेंगे। यदि कठोर कदम नहीं उठाए जाते हैं, तो हिंसा नहीं रुकेगी। यह बात स्पष्ट है। कारण कि प्रशासन इतनी जल्दी ममता की तरफ शिफ्ट करेंगे, यह आसान नहीं है। सबसे अधिक जरूरी है बुनियादी सुविधाओं की, जिसकी पूर्ति के लिए धन चाहिए। इन चुनौतियों के रहते ममता शांति से सरकार चला पाएंगी, ऐसा नहीं लगता है।


No comments:

Post a Comment