Monday, May 9, 2011

बरकरार है सियासी दलों में दागियों का मोह


भले ही बसपा कह रही हो कि उसकी सरकार की प्रभावी पैरवी के चलते इंजीनियर मनोज गुप्ता हत्याकांड में विधायक शेखर तिवारी सहित दस लोगों को उम्रकैद की सजा हुई, लेकिन तिवारी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने की हिम्मत वह नहीं कर पाई है। शेखर तिवारी ही क्यों, विधायक भगवान शंकर शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित पर खुद सरकार ने एक बार गैंगस्टर एक्ट और एक बार रासुका लगाया, लेकिन वह भी अभी बसपा में ही हैं। शीलू बलात्कार कांड में राज्य सरकार की जांच एजेंसी ने बसपा विधायक पुरुषोत्तम द्विवेदी को दोषी पाया। वह जेल में हैं, लेकिन बसपा ने उन्हें निलंबित भर किया। समाजवादी पार्टी बसपा पर माफिया राज स्थापित करने का आरोप लगा रही है, लेकिन महिला मित्र की हत्या में उम्र कैद की सजा हो जाने के बाद भी अपने विधायक अमरमणि त्रिपाठी को बाहर का रास्ता दिखाने की जरूरत उसने भी महसूस नहीं की। अमरमणि आज भी सपा विधानमंडल दल के हिस्सा हैं। चूंकि अब चुनाव के लिए वह कानूनी तौर पर अयोग्य हो गए हैं ऐसे में सपा नेतृत्व ने पूरी वफादारी दिखाते हुए उनके पुत्र को टिकट देने का फैसला किया है। इसके इतर सपा के जो प्रत्याशी घोषित हुए हैं, उसमें नामचीन माफिया अभय सिंह फैजाबाद से उम्मीदवार हैं। जिस दिन मनोज गुप्ता हत्याकांड पर फैसला आया। भाजपा की प्रतिक्रिया आई कि सपा और बसपा ने अपराधियों को माननीय बनाने का काम किया है, जिसकी सजा समाज को भुगतनी पड़ रही है, लेकिन यह प्रतिक्रिया देते वक्त पार्टी भूल गई कि उसके 48 विधायकों में से 18 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। रमाकांत यादव आजमगढ़ से उसके ही सांसद हैं। ये उदाहरण बताते हैं राजनीतिक दलों की कथनी व करनी में फर्क है और दागियों से उनका मोह छूट नहीं रहा है। माफिया को लेकर राजनीतिक दलों के तर्क भी बदलते रहते हैं। मुख्तार अंसारी जब तक सपा के पाले में रहे बसपा को वह कभी नहीं भाए। वह उन्हें माफिया ही बताती रही, लेकिन लोकसभा चुनाव में जब मुख्तार बसपा उम्मीदवार हो गए तो पार्टी नेतृत्व ने उन्हें गरीबों का मसीहा करार दिया। मधुमिता की हत्या के समय अमरमणि त्रिपाठी बसपा में थे तो सपा उनके खिलाफ मोर्चा खोले हुए थी, लेकिन आज वह सपा के दुलारे विधायकों में शुमार होते हैं। रमाकांत यादव जब तक सपा- बसपा में रहे, भाजपा को माफिया नजर आते थे, लेकिन आज भाजपा के मंचों की शोभा बढ़ाते हैं। इलाहाबाद और कर्नाटक हाई कोर्ट के न्यायाधीश रह चुके न्यायमूर्ति हरिनाथ तिलहरी कहते हैं कि एक राजनीतिक दल दूसरे दल को तो अपने गिरेबां में झांकने की नसीहत देता है, लेकिन खुद ऐसा नहीं करता। जब तक ऐसा नहीं होगा राजनीति में अपराधियों की बढ़ती दखलअंदाजी कम होने वाली नहीं है। मनोज गुप्ता हत्याकांड में विधायक शेखर तिवारी को उम्र कैद की सजा सुनाए जाने के बाद राजनीति में बढ़ते अपराधियों के वर्चस्व पर बहस शुरू हुई है। राजनीति में सुचिता लाने को अपनी पार्टी खड़ी करने के प्रयास में लगे पूर्व आइएएस चंद्रपाल कहते हैं कि राजनीति अब संख्या का खेल बन गई है। बहुमत के लिए राजनीतिक दलों को जादुई आंकड़ा चाहिए ही, वह चाहे जैसे मिले। इसी वजह से राजनीतिक दल माफिया, अपराधी पर अपना दांव लगाने से नहीं हिचकते। शायद यही वजह है कि विधानसभा चुनाव दर चुनाव विधायक बनने वाले दागी लोगों की संख्या बढ़ रही है। 1985 में विधायकों में 35 ऐसे थे, जिनके खिलाफ मामले दर्ज थे, 2007 में यह संख्या बढ़कर 155 हो गई। दागी विधायक किसी एक दल में नहीं बल्कि सभी दलों में हैं। यहां तक कि कांग्रेस के जो दो दर्जन विधायक जीते थे, उसमें भी नौ दागी थे और रालोद के आठ विधायकों में चार दागी थे।


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