Sunday, May 15, 2011

गोगोई के कौशल से कांग्रेस की हैट्रिक



कांग्रेस ने मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के प्रशासनिक और राजनीतिक कौशल के बल पर असम के विधानसभा चुनावों में जीत की हैट्रिक बना डाली। प्रसन्नचित्त स्वभाव और बेबाक राय रखने वाले गोगोई (75) ने अपने 10 साल के शासनकाल में न सिर्फ उल्फा समेत कई उग्रवादी संगठनों को वार्ता के लिए तैयार किया बल्कि दिवालिया होने की कगार पर खड़े राज्य को वित्तीय स्थिरता प्रदान की। इन्हीं कामों की वजह से वह जनता के नायक बन गए। 6 बार सांसद रहे गोगोई केंद्र सरकार में भी मंत्री पद संभाल चुके हैं। गोगोई ने 2001 के विस चुनाव में असम गण परिषद की हार के बाद मुख्यमंत्री का पद संभाला। 17 मई 2001 को पदभार ग्रहण करने के साथ ही उन्हें उग्रवादी हिंसा और वित्तीय अस्थिरता जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उस वक्त राज्य कर्ज में इस कदर डूबा था कि सरकारी कर्मियों को समय पर वेतन तक नहीं मिल पाता था। गोगोई ने राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की दिशा में सार्थक प्रयत्न किए। इसी का नतीजा रहा कि 2006 के विस चुनाव में कांग्रेस फिर सत्ता में लौटी। हालांकि, उसे कम सीटें मिली थी। इस वजह से उसने 2006 में बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के साथ गठबंधन सरकार बनाई। अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान पिछले साल स्वास्थ्य खराब रहने के चलते गोगोई को मुंबई के एशियन हर्ट इंस्टीट्यूट में हृदय की तीन सर्जरी करानी पड़ी। इस साल चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले अपना पेस मेकर बदलवाने के लिए उन्हें एक बार फिर सर्जरी करानी पड़ गई। दोनों ही मौकों पर उनके स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हुआ और नई स्फूर्ति के साथ उन्होंने अपना कार्यभार संभाला और चुनाव प्रचार किया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के विश्वस्त गोगोई की राज्य के शीर्ष पद तक की यात्रा की पटकथा धैर्य के साथ से लिखी गई। ऊपरी असम के जोरहाट जिले के रंगराजन टी एस्टेट इलाके में एक अप्रैल 1936 को जन्मे तरुण गोगोई को उनके माता पिता पूनाकोन नाम से पुकारते थे। गोगोई का बचपन चाय बागानों में अपने भाई बहनों और वहां काम करने वाले श्रमिकों के बच्चों के साथ खेलते कूदते बीता। जीवन के शुरूआती दिनों में ही राजनीति के प्रति उनकी रूचि पैदा हो गई। हालांकि उनके पिता चाहते थे कि वह मेडिसिन या इंजीनियरिंग की पढ़ाई करे, लेकिन उन्होंने अपना ध्यान राजनीति में केंद्रित किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की 1952 की जोरहाट यात्रा के दौरान गोगोई उनसे खासे प्रभावित हुए। उस वक्त वह 10 वीं कक्षा में पढ़ते थे। उन्होंने विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया। स्नातक की उपाधि हासिल करने के बाद उन्होंने कानून की उपाधि लेने के लिए इलाहाबाद विवि में दाखिला लिया। हालांकि बीमारी के कारण गुवाहाटी विवि से कानून की उपाधि हासिल की। भारत युवक समाज की असम इकाई का सदस्य रहने के दौरान गोगोई 1963 में कांग्रेस में शामिल हुए और आज तक निष्ठावान हैं। गोगोई 1980 के दशक में कांग्रेस महासचिव और संयुक्त सचिव भी रह चुके हैं। इसके अलावा 1986-90 तक और 1997 से 2001 तक असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे हैं। उन्होंने जोरहाट म्यूनिसिपल बोर्ड के सदस्य के चुनाव में 1968 में भाग लेकर राजनीतिक कैरियर की शुरूआत की। वह जोरहाट संसदीय सीट से 1971 में पहली बार लोस सदस्य चुने गए। इतना ही नहीं 1991 से 1995 के बीच उनके पास केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार भी था।


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