Thursday, May 19, 2011

तेलंगाना पर कांग्रेस के फैसले का इंतजार


पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव संपन्न होने के साथ ही एक बार फिर पृथक तेलंगाना राज्य के मुद्दे के गरमाने के आसार बढ़ रहे हैं। राज्य के सभी सियासी दलों को अब इस मामले में कांग्रेस के फैसले का इंतजार है। इस मुद्दे को अब बेवजह लटकाना कांग्रेस के लिए भी मुसीबत का सबब बन सकता है। इस मुद्दे को लेकर अब टीआरएस,टीडीपी और भाजपा समेत अन्य दलों ने भी रणनीति बनानी शुरू कर दी हैं। केंद्र की कांग्रेस नीत संप्रग सरकार ने पृथक राज्य का प्रस्ताव रखने वालों से पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव संपन्न होने तक का समय मांगा था। पृथक तेलंगाना मुद्दे पर न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति ने करीब पांच माह पूर्व अपनी सिफारिशें सरकार को सौंप दी थीं। जाहिर है कि अब जबकि चुनाव संपन्न हो गए हैं। पृथक राज्य की मांग करने वाले तथा इसके विरोधी अपने स्वर तेज करने के लिए एक बार फिर तैयार हैं। दोनों ही इस मुद्दे का तत्काल हल चाहते हैं। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव ने कहा कि एक जून से हम आंदोलन चलाएंगे और अपने संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ले जाएंगे। टीआरएस पृथक राज्य की मांग करने वाला एक प्रमुख दल है। राव ने सत्तारूढ़ कांग्रेस को चेतावनी देते हुए कहा कि समय आ गया है कि केंद्र सरकार तेलंगाना के पक्ष में स्पष्ट फैसला करे। या फिर हम किसी भी हद तक जाएंगे। तेलंगाना क्षेत्र को कभी तेलुगु देसम पार्टी का गढ़ माना जाता था, लेकिन यहां से गहरा झटका मिलने के बाद तेदेपा भी इस बार खुली लड़ाई लड़ने के मूड में है। उसने 23 मई से तीन दिवसीय पदयात्रा आयोजित कर अपने आंदोलन के पहले कदम का एलान कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी भी जनसमर्थन जुटाने के लिए 31 मई को करीमनगर में एक विशाल रैली आयोजित करने जा रही है। वहीं, सरकारी कर्मचारियों ने धमकी दी है कि तेलंगाना मुद्दे पर यदि केंद्र सरकार का ढुलमुल रवैया बरकरार रहा तो वह एक बार फिर काम रोक देंगे। क्षेत्र में कई समूह, खास कर छात्र समुदाय राजनीतिक दलों के साथ मिल कर पृथक राज्य के लिए आंदोलन में सक्रिय भागीदारी कर रहे हैं। आम आदमी को इस बात की चिंता है कि यदि विभिन्न दलों ने अपने उद्देश्य के लिए फिर से आंदोलन किया तो जनजीवन इससे एक बार फिर प्रभावित हो जाएगा। पृथक तेलंगाना की मांग तेज होने के बावजूद आंध्र रायलसीमा क्षेत्र शांत बना हुआ है। राज्य के विभाजन का यहां 2010 के शुरू में कुछ विरोध हुआ था, लेकिन न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति के गठन के बाद शांति बहाल हो गई। प्रदेश में आशंका है और समिति की रिपोर्ट में भी साफ कहा गया है कि यदि केंद्र का फैसला इसके खिलाफ रहा तो किसी क्षेत्र विशेष में समस्या खड़ी हो सकती है। केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस महासचिव गुलाम नबी आजाद से मंगलवार को मंत्रियों के एक समूह ने कहा यह अपरिहार्य है, लेकिन केंद्र केवल इसी बहाने से अपना फैसला रोक नहीं सकता। उसे तत्काल निर्णय करना चाहिए और इस मुद्दे का हमेशा के लिए हल निकालना चाहिए। सर्वसम्मति से यह अपील उन मंत्रियों ने की जो तेलंगाना क्षेत्र और आंध्र . रायलसीमा क्षेत्रों से आते हैं। दोनों ही क्षेत्रों के सांसदों, विधायकों तथा विधान पार्षदों ने क्रमश: पृथक राज्य के पक्ष में और विरोध में राय जताई। बताया जाता है कि बैठक में आजाद ने क्षेत्र के पार्टी नेताओं से पूछा यदि तेलंगाना दे दिया जाता है तो क्या आप लोग अगले चुनाव में कांग्रेस की जीत का आश्वासन दे सकते हैं। इस पर केवल एक नेता ने हां कहा जबकि आजाद ने ऐसे आंध्र रायलसीमा क्षेत्र के नेताओं से ऐसा कोई आश्वासन नहीं मांगा।


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