अरविंद जयतिलक कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह द्वारा दुनिया के सबसे बड़े शैतान आतंकी ओसामा बिन लादेन के अंतिम संस्कार के तौर-तरीके को लेकर विलाप करना और अपने संबोधन में उसके लिए आदरसूचक शब्दों का इस्तेमाल यह समझने के लिए काफी है कि भारतीय संसद पर हमले का मास्टरमाइंड अफजल गुरु और मुबंई में आतंकी हमले का आरोपी अजमल कसाब की फांसी अभी तक क्यों रुकी हुई है? दिग्विजय सिंह का आतंकियों के प्रति यह प्रेम नई बात नहीं है। इस तरह का बयान वह पहले भी कई बार दे चुके हैं, लेकिन उनकी वैचारिक सोच इस कदर दिवालिया हो जाएगी कि ओसामा-बिन-लादेन जैसा मानवता का दुष्मन भी उन्हें प्रिय लगने लगेगा शायद ही किसी ने सोचा होगा। घटिया तुष्टीकरण की बानगी परोस रहे दिग्विजय सिंह से पूछा जा सकता है कि हजारों-हजार लोगों को मौत की नींद सुलाने वाला एक नरभक्षी किसी धार्मिक रीति-रिवाज के अनुरुप अंतिम संस्कार का हकदार कैसे हो सकता है? क्या ओसामा-बिन-लादेन सूफी संत और मौला था। आज अगर उसे दो गज जमीन नसीब नहीं हुई है तो यह सब उसके कुकमरें का ही फल है? जहां विश्व जनमानस ओसामा के मारे जाने के बाद राहत महसूस कर रहा है, वहीं दिग्विजय सिंह सरीखे कुछ सियासतपरस्त पाकिस्तान के आतंकी संगठनों के तर्ज पर ओसामा के अंतिम संस्कार के तौर-तरीके को लेकर आंसू बहा रहे हैं। दिग्विजय सिंह का ओसामा के अंतिम संस्कार को लेकर छाती धुनना और रुंआसे होकर हास्यादपद बयान देना यूं ही नहीं है। सब कुछ उनके राजनीतिक खेल-तमाशे का ही हिस्सा है। वह अपने स्तरहीन बयानबाजी की आड़ में एक वर्ग की संवेदना को उभारकर वोट बैंक तैयार करना चाहते हैं। हालांकि सच तो यह है कि उनके इस तरह की सतही बयानबाजी से अलकायदा, लश्करे तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को ही बल मिल रहा है। कांग्रेस पार्टी दिग्विजय सिंह के इस आचरण पर भले ही चुप्पी साध रखी हो और उनके बयान को निजी बताकर पल्ला झाड़ने में जुटी हो, लेकिन देश का जनमानस यह मानने को कतई तैयार नहीं है कि बिना केंद्रीय सत्ता को विश्वास में लिए वह इस तरह की अनर्गल बयानबाजी कर सकते हैं। संभवत: दिग्विजय सिंह ने अपनी पार्टी को समझा दिया है कि उनके तुष्टीकरण वाले बयान से पार्टी को भरपूर सियासी फायदा मिल सकता है। 2012 में यूपी विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है और दिग्विजय सिंह यूपी कांग्रेस के प्रभारी बनाए गए हैं। यूपी में कांग्रेस का प्रदर्शन दिग्विजय सिंह के लिए न सिर्फ चुनौती भरा है, बल्कि कांग्रेस में उनके वजन और हनक को भी निर्धारित करने वाला साबित होगा। दिग्विजय सिंह नहीं चाहते हैं कि राहुल गांधी की अतिसक्रियता के बावजूद यूपी में कांग्रेस की दुर्गति बिहार जैसी हो। अगर ऐसा होता है तो निस्संदेह हार का ठीकरा राहुल गांधी के बजाय दिग्विजय सिंह के माथे पर फोड़ा जाएगा। उनके धुर विरोधी समवेत स्वर में चिल्लाएंगे कि दिग्विजय सिंह की बयानबाजी ही पार्टी को हार तक पहुंचाने का कारण बनी है। ऐसे में दिग्विजय सिंह का सांप्रदायिक चोला ओढ़कर ओसामा-बिन-लादेन के क्रिया-कर्म के प्रति चिंतित होने का दिखावा अल्पसंख्यक जमात के लोगों को अपने पाले में खींचने का एक गंदा उपाय ही कहा जाएगा। लोग इसे अच्छी तरह समझ भी रहे हैं। संभव है कि दिग्विजय सिंह अपने विलक्षण बुद्धि चातुर्य से कांग्रेस पार्टी को यह विश्वास दिलाने में सफल रहे हों कि उनकी इस हरकत से पार्टी की साख बढ़ रही है, लेकिन कांग्रेस पार्टी को दिग्विजय सिंह की सियासी फितरतबाजी पर सौ फीसदी यकीन करने के लिए आत्ममंथन जरूर करना चाहिए। दिग्विजय सिंह द्वारा हर रोज बेसिर पैर का शिगूफा छोड़ते हुए हास्यादपद बयानबाजी करना और कांग्रेस पार्टी का चुप्पी साधे रहना कांग्रेस के लिए कई मुश्किलें खड़ा कर सकता है। पिछले दिनों देखा भी गया है कि समाजसेवी अन्ना हजारे द्वारा छेड़े गए भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में जब पूरा देश उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा था तो दिग्विजय अपने कुछ ओछे किस्म के शागिर्दो के साथ अन्ना हजारे की टीम के खिलाफ आग उगल रहे थे। उनके कुछ साथी अन्ना की राष्ट्रभक्ति पर भी सवाल उठाने लगे थे। लोगों ने यही समझा कि सब कुछ कांग्रेस पार्टी के इशारे पर ही किया जा रहा है। दिग्विजय सिंह द्वारा अन्ना की टीम की घेराबंदी ने आम लोगों के इस विश्वास को और पुख्ता कर दिया कि कांग्रेस भ्रष्टाचार को खत्म होते नहीं देखना चाहती है। साफ है कि दिग्विजय सिंह खुद ब खुद कीचड़ से नहाने लगे हैं। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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