गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने जो कहा है, वह वे पहली बार नहीं कर रहे हैं। फिलहाल जो प्रसंग है वह उनकी अमेरिकी राजदूत टिमोथी जे. रोमर से हुई बातचीत से निकला है। उस बातचीत में वे अपनी मंशा प्रकट कर रहे हैं। रोमर को वे कहते हैं, 'देश कुछ ज्यादा बड़ा और बोझिल हो गया है, उसे हल्का और छोटा होना चाहिए। उसे सिर्फ दक्षिण और पश्चिम के दायरे में होना चाहिए।' यह उन्होंने विकास दर के आंकड़े के आधार पर कहा। इसका क्या मतलब निकाला जाए?
विपक्ष में लड़ने का माद्दा नहीं
देश के दुर्भाग्य से पी. चिदम्बरम राष्ट्रीयता, संस्कृति और भारतीयता की परस्परता से समझ के स्तर पर कोसों दूर हैं। क्या ऐसे व्यक्ति को गृहमंत्री रहने का अधिकार है? विपक्ष इस मुद्दे को क्यों नहीं उठाता? मीडिया इस मुद्दे पर चुप क्यों है? लोकसभा में रस्मी तौर पर यह सवाल उठाया गया था, गृहमंत्री के इस्तीफे की मांग भी की गई थी। विपक्ष की यह मांग गीला कारतूस क्यों साबित हुआ? क्योंकि विपक्ष के अंदर लड़ने का माद्दा नहीं है। उसे डर है कि उसके इस कदम से उसे अमेरिका विरोधी न मान लिया जाए। '
जयचंद जैसा काम
अमेरिका लगातार देश को तोड़ने के लिए प्रयत्नशील है। उसे उस दिन का इंतजार है, जब यह देश टूटे और बादशाहत उसके हाथ हो। वह भूल जाता है, उसकी चालाकी के बावजूद जो देश पिछले 63 सालों में नहीं टूटा, वह अब क्या टूटेगा? यह कौन नहीं जानता कि अमेरिकी मदद देश में असमानता की खाई बढ़ाने में इस्तेमाल हो रही है। उसकी ऐसी कोशिशों से समाज बंट रहा है। देश बांटने में मददगार व्यक्तियों और संगठनों को अमेरिका खुले हाथों से मदद करता है। देश के गृहमंत्री ने अमेरिकी राजदूत की नजर में अपना नम्बर बढ़ाने के लिए इस तरह की बयानबाजी की। अब यह लोग तय करें कि पी. चिदम्बरम का यह काम जयचंद जैसा है, या नहीं। '
गुलाम मानसिकता के प्रतीक
पी. चिदम्बरम इस देश में एक मानसिकता के प्रतीक हैं, गुलाम मानसिकता के। आर्थिक विकास जिसका दम पी. चिदम्बरम भरते हैं, वह खुशहाली से ज्यादा गुलामी की राजनीति की मानसिकता है। इस गुलाम मानसिकता में समृद्धि का पैमाना है आर्थिक विकास। गुलाम अपनी समृद्धि पैसे में तलाशता है और पैसे के बल पर खुद को ताकतवर समझता है। स्वतंत्रचेता भारत का समाज उस पैसे में नहीं स्वावलम्बन में खुशी पाता है। वही है, उसका विकास। इस तरह वह अपने स्वतंत्रता को कायम रखने का संकल्प लेता है और बीड़ा उठाता है।
आजादी की लड़ाई का योद्धा क्षेत्र
अमेरिकी राजदूत से बातचीत में पी. चिदम्बरम जिस हिस्से को देश पर बोझ बता रहे हैं, उस हिस्से को अंग्रेजों ने पिछड़ा बनाए रखा। यह वही क्षेत्र है, जिसने गुलामी को ढोने से इनकार कर दिया था। आजादी की लड़ाई में यही क्षेत्र योद्धा बना था। यह वही क्षेत्र है जहां 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन का पहला बिगुल फूंका था। यदि चिदम्बरम के पूर्वजों ने विश्वासघात नहीं किया होता तो 47 से भी नब्बे साल पहले हम आजादी पा चुके होते। उसके बाद फिर एक बार जब देश की एकता और अखंडता पर संकट आया तो सरदार पटेल ने संकट से देश को उबारा। सरदार पटेल पर पूरे देश को नाज है।
शर्मनाक हरकत
उस समय जिस पद पर सरदार पटेल बैठे थे, उस पर बैठकर पी. चिदम्बरम ने जो किया है, उसे शर्मनाक ही कहा जा सकता है। आज इस बयान के उजागर हो जाने के बाद भी वे कैसे बचे हुए हैं? पी.वी. नरसिंह राव के शासनकाल में जब पी. चिदम्बरम वाणिज्य मंत्री थे। लंदन में औद्योगिक घरानों के समक्ष उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा था,'आपने आजादी के पहले हमारे देश में खूब मुनाफा कमाया, एक बार फिर आजाद भारत में आप बंधे हाथ आइए और खुले हाथों से मुनाफा कमाइए।' उस दौरान भी उनके इस वक्तव्य के बाद समाज में रोष पैदा हुआ था, जैसा आज हुआ है।
आगे भी सम्भव है 'विनोद प्रियता'
पी.वी. नरसिंह राव के भूमंडलीकरण की नीतियों के खिलाफ चंद्रशेखर, मेनका गांधी, जॉर्ज फर्नाण्डीस, यशवंत सिन्हा सरीखे बड़े नेता अगुवाई कर रहे थे। आरएसएस ने स्वदेशी जागरण मंच बनाया। जिसे दंतोपंत ठेंगड़ी का मार्गदर्शन था। जब पी. चिदम्बरम के भाषण पर स्वदेशी जागरण मंच ने उन्हें कानूनी नोटिस भेजा तो उस भाषण के पक्ष में उनके सचिव ने लिखित जवाब दिया। जवाब था, 'अंग्रेज विनोद प्रिय होते हैं। जिस बात की नोटिस ली गई है, वह बात बिल्कुल कही गई है लेकिन विनोद में कही गई है।' आज फिर उनके वक्तव्यों को लेकर समाज में रोष पैदा हो और उनसे सवाल जवाब किया जाए तो वे विनोद प्रियता वाला अपना पुराना राग दोहरा सकते हैं।
चिदम्बरम इस देश में एक मानसिकता के प्रतीक हैं, गुलाम मानसिकता के। आर्थिक विकास, जिसका दम पी. चिदम्बरम भरते हैं, वह खुशहाली से ज्यादा गुलामी की राजनीति की मानसिकता है। नरसिंह राव के शासनकाल में जब पी. चिदम्बरम वाणिज्य मंत्री थे। लंदन में औद्योगिक घरानों के समक्ष उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा था,'आपने आजादी के पहले हमारे देश में खूब मुनाफा कमाया, एक बार फिर आजाद भारत में आप बंधे हाथ आइए और खुले हाथों से मुनाफा कमाइए'
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