Wednesday, April 6, 2011

एजेंडे में विकास न होने से पिछड़ता रहा उत्तर


मैं दक्षिण के नेताओं के इस आरोप से सहमत नहीं हूं कि उत्तर भारत ने अपेक्षित विकास नहीं किया, इसलिए भारत विकास की दौड़ में पिछड़ गया है। हालांकि यह भी सही है कि कई राज्यों का नेतृत्व विकास के वजाय छोटे-छोटे मुद्दों में ज्यादा उलझा रहा जिसकी वजह से उत्तर भारत वैसी तरक्की नहीं कर पाया जैसी कि दक्षिण के कुछ राज्यों ने कर दिखाया है।
खुशहाली प्रभावित होने के कारण
अगर हम इसके और कारण तलाशते हैं तो पाते हैं कि कर्नाटक समेत दक्षिण के राज्यों में जाति, विकास पर वैसी हावी नहीं रही जैसी कि उत्तर प्रदेश और बिहार में रही है। इसी प्रकार से जनसंख्या नियंतण्रके अभियान में दक्षिण के राज्यों ने तो रुचि ली लेकिन उत्तर भारत के राज्यों ने इसके महत्व को नहीं समझा। फलस्वरूप इन राज्यों में उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल करने वाले व्यक्तियों की संख्या बढ़ गई जिससे खुशहाली भी प्रभावित हुई।
उद्योगों के बिना तरक्की कैसे
इसी क्रम में मेरी एक शिकायत यह भी है कि उत्तर भारत में जितने भी बड़े उद्योग लगे हैं वे पंडित जवाहर लाल नेहरू और श्रीमती इंदिरा गांधी के दौर में ही लगे। केंद्र में जनता पार्टी की सरकार के बाद के दौर को याद करें तो हम पाएंगे कि '80 के दशक के बाद से कोई बड़ा उद्योग उत्तर प्रदेश और बिहार में नहीं लगा। किसी भी राज्य की ग्रोथ के लिए उद्योग तो जरूरी हैं ही, जब ये ही नहीं लगेंगे तो विकास की रफ्तार कहां से तेज होगी। ऐसे ही कारणों से उत्तर भारत के कई राज्य विकास की दौड़ में पीछे छूट गए और बिहार, मध्य प्रदेश,राजस्थान और उत्तर प्रदेश 'बीमारू' राज्य कहलाने लगे।
विकास को मुद्दा तो बनाएं
बिहार और उत्तर प्रदेश में मानव विकास सूचकांक काफी नीचे चला गया। इसके लिए बहुत हद तक इन राज्यों की सरकारी नीतियां भी जिम्मेदार हैं जिन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और उद्योग जैसे क्षेत्रों को नजरअंदाज किया। सालों तक इन राज्यों में कहा जाता रहा कि विकास यहां कभी मुद्दा नहीं बन सकता, इसलिए सरकार और राजनीतिक दलों ने विकास पर जोर नहीं दिया। बिहार के चुनाव ने इस धारणा को झुठलाकर अच्छे संकेत दिए हैं। अच्छे संकेत इस मायने में हैं कि विकास करने वाली पार्टी चुनाव जीत सकती है।
उप्र में भी विकास की ललक
बिहार में नीतीश कुमार की जीत के और भी कारण रहे हैं लेकिन विशेष बात यह है कि उनकी जीत में विकास एक बड़ा कारण रहा है। उत्तर भारत में विकास का फिर से मुद्दा बन जाना अपने आप में बहुत बड़ी बात है। बिहार के लोगों ने इसका जो स्वाद चखा है वही स्वाद उत्तर प्रदेश के लोग भी चखना चाहते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार के संदर्भ में यह बात भी गौर करने लायक है कि सबसे ज्यादा ज्यादा नौजवान इन दोनों प्रांतों में ही हैं, इनकी संख्या चीन,जापान से भी ज्यादा है।
दक्षिण के विकास में भी योगदान उत्तर का ही
अगर दक्षिण की बात करें तो नौजवानों की संख्या के मामले में वे भी बिहार और उत्तर प्रदेश से पीछे हैं। अधिक नौजवान होने से इन राज्यों में रोजगार भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। अब मैं भारत के विकास में उत्तर भारत के योगदान पर आता हूं। दिल्ली, मुम्बई ही नहीं बेंगलुरु, हैदराबाद और कोच्चि तक में बिहार और उत्तर प्रदेश के नौजवान बड़ी तादाद में काम कर रहे हैं। ये सब काम करके देश के विकास में ही तो योगदान दे रहे हैं, फिर चाहे वे उत्तर प्रदेश, बिहार में रहकर काम करें या फिर दक्षिण के राज्यों में जाकर काम करें।
(संजय निरुपम से अजय तिवारी की बातचीत पर आधारित)

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