प. बंगाल में सरकार का फैसला बांग्लादेशी घुसपैठिये करेंगे। राज्य में मुसलिम मतदाता पहले से निर्णायक रहे हैं। बांग्लादेशी घुसपैठ ने राज्य का जनसांख्यिकी संतुलन ऐसा बदल दिया है कि अब मुसलिम मतदाता ही सूबे में सत्ता तय करेंगे। जम्मू-कश्मीर के बाद आबादी में अनुपात के हिसाब से सबसे ज्यादा मुसलिमों वाले प. बंगाल की राजनीति स्वाभाविक रूप से उन पर ही केंद्रित हो गई है। उनमें भी खास तौर से बांग्लादेशी मुसलमानों का समर्थन हासिल करने के लिए ममता बनर्जी और वामपंथियों में होड़ मची हुई है। ममता अगर मुसलिमों को रेलवे के किराए में छूट दे रही हैं तो प. बंगाल सरकार ने रंगनाथ मिश्र कमेटी की सिफारिशों को लागू कर मुसलिमों को राज्य की नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था कर दी है। मगर मुसलिमों को रिझाने की दौड़ में ममता बनर्जी फिलहाल वामपंथियों से आगे नजर आ रही हैं। खास तौर से वे इलाके जहां, बांग्लादेश घुसपैठ के चलते मुसलिम जनसंख्या में वृद्धि हुई है, उनमें ममता ने पूरी ताकत झोंकी हुई है। ममता ने अपने घोषणापत्र में मुसलिम बहुल एक दर्जन जिलों के लिए सब्जी, फलों, मछलियों और समुद्री भोजन (सी फूड) का व्यापार बढ़ाने और खाद्य प्रसंस्करण के इंतजाम करने का एलान किया है। मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर दिनाजपुर और बीरभूम समेत इन एक दर्जन जिलों में आजीविका का जरिया जहां सब्जी, फल और मछलियां व समुद्री भोजन है, वहीं इनमें मुसलिम आबादी 30 फीसदी से लेकर 70 फीसदी तक है। इन जिलों में मुसलिम आबादी की बढ़ोतरी दर के 2001 जनगणना के आंकड़े चौंकाने वाले रहे हैं। 1991 से 2001 के दशक में इन जिलों में 35 फीसदी मुसलिम आबादी बढ़ी है। प. बंगाल सरकार के सूत्र और राजनीतिक दल भी मानते हैं कि यह बढ़ोत्तरी दर स्वाभाविक नहीं। बिना घुसपैठ के मुसलिमों की आबादी दर इस अनुपात में नहीं बढ़ सकती। वैसे भी बांग्लादेश की सीमा से सटे प. बंगाल और असम के अलावा बिहार के चंद जिलों में ही इस तरह से मुसलिम आबादी बढ़ी है। प. बंगाल में जिस तरह से वामपंथी काडर ने बांग्लादेशियों के थोक में राशन कार्ड बनवाए और भारतीय नागरिकता दिलाई, उसके बाद 2011 की जनगणना में करीब 10 फीसदी मुसलिम आबादी बढ़ने के आसार हैं। यानी 2001 में करीब 30 फीसदी मुसलिम अब 2011 में करीब 40 फीसदी होंगे, यह बात प. बंगाल प्रशासन खुद मान रहा है। जाहिर है कि ऐसे में इस वोट बैंक के लिए वामपंथियों और ममता पंथियों में मारकाट मची है। नंदीग्राम आंदोलन के दौरान मुसलिम आबादी ममता के साथ हो गई है। इसी तरह उत्तर 24 परगना व नदिया में मतुआ संप्रदाय के बीच भी ममता ने पैठ बना ली है। 1971 के बाद बांग्लादेश से आए इस संप्रदाय की आबादी 60 लाख बताई जाती है। मतुआ कुनबा भी बढ़ता ही जा रहा है। पहले रेहड़ी, रिक्शा या खेतों और समुद्र या नदी के किनारे मजदूरी करते रहे बांग्लादेशी मुसलमानों की संख्या बढ़ी है। कोलकाता में 1991 से 2001 तक 19 फीसदी मुसलमान बढ़े थे, जबकि गैर मुसलिम आबादी मात्र 0.7 प्रतिशत। उस समय कोलकाता में 20 फीसदी मुसलमान थे। मगर अब बांग्लादेश की सीमा से सटे गांवों से कोलकाता में बांग्लादेशी खासी संख्या में बढ़े हैं। एक पूर्व वरिष्ठ नौकरशाह कहते हैं कि इस दफा जनगणना में कोलकाता में मुसलिम आबादी 35 फीसदी से कम किसी कीमत पर नहीं होगी|
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