स्वतंत्रता आंदोलन के प्रखर सिपाही गोपाल कृष्ण गोखले ने कभी सच ही कहा था, बंगाल जो आज सोचता है, शेष भारत कल और पूरा विश्व एक दिन बाद सोचता है। इसका सबसे सटीक उदाहरण गठजोड़ की राजनीति है, जिसने बंगाल में जन्म लिया और आज देश ही नहीं विश्र्व में कई राष्ट्रों की मजबूरी बन चुकी है। जब किसी ने गठबंधन राजनीति की कल्पना भी नहीं की थी तब आजादी के 20 वर्ष बाद ही 15 मार्च 1967 में बंगाल में प्रथम संयुक्त फ्रंट की सरकार गठित हुई थी। 1962 में बंगाल के तीसरे चुनाव में ही जोट की अवधारणा जन्म ले चुकी थी और कांग्रेस को बंगाल की सत्ता से हटाने के लिए युनाइटेड लेफ्ट इलेक्शन कमेटी और युनाइटेड लेफ्ट फ्रंट बना लिया गया था, जिसने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा। इसमें कांग्रेस को 157 सीटों पर सफलता मिली वहीं संयुक्त मोर्चा को 75 सीटों पर सफलता मिली और मत प्रतिशत 33 रहा था। इसके बाद ही 3 अप्रैल 1967 को उत्तर प्रदेश में गठबंधन की सरकार बनी थी, जिसके मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह हुए थे। विधानचंद्र राय के समय ही पश्चिम बंगाल में कांग्रेस दो भागों में बंट चुकी थी। कांग्रेस से टूट कर नई पार्टी बंगाल कांग्रेस बनी थी, जिसके अगुआ अजय मुखर्जी हुए। इसके बाद कांग्रेस के खिलाफ दो अलग-अलग मोर्चा बना। 1967 में कांग्रेस के खिलाफ चुनाव में संयुक्त वामफ्रंट को 63 सीटों पर जीत मिली और इतनी ही सीटों पर बंगाल कांग्रेस के नेतृत्व वाले पीपुल्स युनाइटेड फ्रंट को जीत मिली। दोनों फ्रंट के नेताओं ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया और फ्रंट की संयुक्त सरकार बनी। अजय मुखर्जी मुख्यमंत्री बने। हालांकि, 1969 में दोनों फ्रंट के नेताओं के बीच मतभेद की वजह से मध्यावधि चुनाव की नौबत आ गई। आगे 1971 में कांग्रेस फिर सत्ता में आ गई और 1972 चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुत मिला, सिद्धार्थ शंकर राय मुख्यमंत्री बने। वे अंतिम कांग्रेसी मुख्यमंत्री साबित हुए।
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