Wednesday, April 6, 2011

सदैव पिछड़े नहीं रहे उ.प्र. और बिहार


अगर उत्तर भारत विकास की दौड़ में पिछड़ गया है तो इसके लिए यहां रहने वाले लोग और यहां की संस्कृति नहीं बल्कि राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। वैसे तो मुझे पूरे उत्तर भारत को पिछड़ा कहे जाने पर ही आपत्ति है, अगर इसे उत्तर प्रदेश,बिहार और मध्य प्रदेश तक सीमित रखा जाए तो अच्छा होगा। ऐसा भी नहीं है कि उत्तर प्रदेश और बिहार सदैव पिछड़े रहे हैं।
पहले उप्र-बिहार का ही डंका बजता था
20-30 साल पहले इन्हीं राज्यों का डंका बजा करता था। उत्तर प्रदेश कई मामलों में सालों तक नम्बर-1 राज्य रहा है। शिक्षा की बात करें तो इलाहाबाद और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय हुआ करते थे। एक समय बिहार में भी अच्छी शिक्षा का बोलबाला रहा, सबसे ज्यादा नौकरशाह यहीं से निकलते रहे।
समूचा उत्तर भारत पिछड़ा नहीं
समूचे उत्तर भारत को मैं पिछड़ा हुआ इसलिए भी नहीं मानता क्योंकि राजस्थान समेत तमाम जगह काफी सुधार हुआ है। विकास के विषय को उत्तर और दक्षिण के बीच नहीं बांटने के पीछे यह वजह भी है कि मैं देश के पश्चिमी राज्यों की भी बात करना चाहता हूं। गुजरात काफी तरक्की कर गया लेकिन अगर महाराष्ट्र की बात करें तो सिवाय मुम्बई के राज्य का काफी बड़ा भाग अब भी कई मामलों में पिछड़ा हुआ ही है।
धर्म-जाति की राजनीति भी है दोषी
उत्तर भारत के जिन राज्यों में पिछड़ापन कायम है वहां विगत 20 सालों में धर्म और जाति की ही राजनीति ज्यादा होती रही। इससे विकास के सारे मुद्दे गायब हो गए। वैसे भी जब धर्म-जाति के नाम पर वोट देने का चलन हो तो उद्योग लगाने की बात कौन करेगा।
विकास से मुंह मोड़ने का नतीजा
विकास से मुंह मोड़ने का ही नतीजा है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में सारा सिस्टम ही चरमरा गया है। राशन कार्ड से भी अनाज नहीं मिलता। जाति प्रमाण पत्र बनवाने में भी रिश्वत चलती है और अस्पताल में बिस्तर हासिल करने और जाति का प्रमाण पत्र हासिल करने के लिए भी सरकारी कर्मचारियों की मुठ्ठी गर्म करनी पड़ती है। सड़क और बिजली नहीं मिलने पर लोगों का भी आक्रोश नहीं फूटता है ।
फिर चली है परिवर्तन की लहर
बिहार से परिवर्तन की लहर चली है और समझा जा रहा है कि यह उत्तर प्रदेश में भी बहेगी। दरअसल, अब लोग लचर व्यवस्था से उकता गए हैं और बदलाव चाहते हैं। पिछले एक साल से सिविल सोसाइटी भी जाग गई दिखती है। जो पहले चुनाव से यह कहकर दूर रहते थे कि उनके हिस्सा लेने से क्या होने वाला है अब खुलकर भागीदारी निभाना चाहते हैं। हाल में भ्रष्टाचार के जो बड़े-बड़े मामले सामने आए हैं, वे इसी सक्रियता का नतीजा हैं।
(चौधरी अजीत सिंह से अजय तिवारी की बातचीत पर आधारित)

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