गांधीवादी नेता अन्ना हजारे की अगुवाई में मंगलवार को भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता की जंग गांधीवादी तरीके से ही शुरू हो गई। प्रधानमंत्री की अपील को दरकिनार कर 72 वर्षीय अन्ना अपने एलान के मुताबिक, संसद से चंद कदम दूर स्थित जंतर मंतर पर सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश, पूर्व आइपीएस अधिकारी किरण बेदी, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडे और सूचना अधिकार कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल समेत 35 समर्थकों के साथ आमरण अनशन पर बैठ गए। उन्होंने इस जंग के पहले ही दिन साफ कर दिया कि किसी भी राजनीतिक पार्टी को इसका फायदा उठाने नहीं दिया जाएगा। एनडीए संयोजक शरद यादव ने मंच से बोलने की कोशिश की तो उनका विरोध तो हुआ ही, भाजपा नेता मेनका गांधी को भी वापस लौट जाना पड़ा। अन्ना के आह्वान पर उनके गृह राज्य महाराष्ट्र के अलावा यूपी, बिहार, बंगाल आदि राज्यों के विभिन्न जिलों में भी मंगलवार को लोगों ने अनशन किया। जन लोकपाल विधेयक के लिए हो रही इस लड़ाई के बढ़ते असर को देख मंगलवार को विपक्ष के नेता भी अपना शामिलबाजा ले पहुंच गए। भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे इस अभियान में अन्ना ने सभी पार्टियों का सहयोग जरूर मांगा था। मगर यह भी साफ कर दिया था कि यह पूरा आंदोलन आम जनता का है, इसे किसी दल से नहीं जोड़ा जाएगा। एनडीए संयोजक शरद यादव अन्ना के अनशन में पहुंचे। उन्हें बोलने का मौका भी मिला, लेकिन वहां मौजूद अन्ना समर्थकों ने उनकी तकरीर के दौरान ही शोर मचा कर उनका विरोध किया। इसके बाद अन्ना ने तय कर लिया कि अब वे किसी दूसरे नेता को इसमें शामिल नहीं करेंगे। थोड़ी ही देर बाद भाजपा नेता मेनका गांधी भी वहां पहुंचीं। उन्हें जैसे ही पता चला कि मंच से बोलने का मौका नहीं मिल सकेगा, वापस हो गई। भाजपा के कुछ और नेता अपने-अपने समर्थकों के साथ अलग-अलग टुकडि़यों में धरनास्थल पर पहुंचे, मगर उन्हें भी लौटना पड़ा। अन्ना ने सुबह हजारों समर्थकों के साथ महात्मा गांधी की समाधि राजघाट से दिन की शुरुआत की। इसके बाद भारी जनसैलाब के साथ वे इंडिया गेट से मार्च करते हुए जंतर-मंतर पहुंचे। अब जन लोकपाल बिल पर सरकार के झुकने तक वे यहीं जमे रहेंगे। उनकी अपील के मुताबिक सभी महानगरों समेत देश के अधिकांश शहरों में आम लोग अनशन पर बैठे। अन्ना का कहना है कि उन्हें सिर्फ दर्द की दवा नहीं, बल्कि इस नासूर को मिटाने वाला ऑपरेशन चाहिए। जो सिर्फ जन लोकपाल बिल लागू करने से ही पूरा हो सकता है।
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