लोकतंत्र की ताकत अगर लोक है तो सत्ता और शक्ति के किसी दूसरे केंद्र का ताकतवर होना खतरनाक है। यही बात लोकतांत्रिक संघर्षो को लेकर भी कहनी होगी। यह कहीं से मुनासिब नहीं कि इस व्यवस्था में 'राजपथ' का महत्व 'जनपथ' से ज्यादा हो। अगर जनता और नेता के संघर्ष के औजार भिन्न होंगे तो इसका मतलब है कि लोक के 'लोप' की कीमत पर नेता नेतागीरी का 'स्कोप' देख रहे हैं। जिन लोगों को भारतीय राजनीति में राहुल गांधी के आगमन और आगे बढ़ने के उनके सीधे-सरल लोकतांत्रिक तरीके पर जरा भी यकीन हो, उन्हें यह जानना अच्छा लगा होगा कि सरकारी योजनाओं में घपलों-घोटालों को उजागर करने के लिए उन्होंने आरटीआई को हथियार बनाया है। इसके लिए उन्होंने न सिर्फ खुद से अर्जी लगाई बल्कि यह दिखाया भी कि नेतागीरी की धौंस और सत्ता की पागल कर देने वाली राजनीति में उनका कोई यकीन नहीं। कलावती की झोपड़ी में रात बिताकर परिवर्तन के सवेरे की बात करने वाले इस युवा नेता से उसकी पार्टी को ही नहीं, देश को भी काफी उम्मीदें हैं। राहुल भारतीय राजनीति के सबसे ख्यात और शक्तिशाली परिवार से आते हैं। उनकी पार्टी कांग्रेस भी देश की आज तक नंबर एक राजनीतिक पार्टी है। इसलिए कोई यह कहे कि वह भविष्य की अपनी राजनीति के ठौर के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं तो यह समझ बचकानी है। लोगों के बीच जाना, उनसे जुड़ना, उन्हें समझना और लोक संवाद के जरिए लगातार संघर्ष के लिए तत्पर बने रहना राजनीति की कम से कम वह सीख तो नहीं ही है जिसमें एक तरफ जहां प्याली में क्रांति उबलती है, वहीं दूसरी तरफ लाल बत्ती से नेतृत्व का कद तय होता है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन भारत सरकार की मनरेगा की तरह एक महत्वाकांक्षी योजना है। आरटीआई के जरिए कांग्रेस महासचिव ने इस योजना के क्रियान्वयन में गड़बड़ियों पर से परदा उठाना चाहा है। पिछले दिनों में कई ऐसी पहल हुई हैं जिसमें आरटीआई सरकार के अपने कामकाज के साथ व्यवस्थापिका की कमजोरियों को तथ्यगत तौर पर उजागर करने का हथियार बना है। इस कारण कई मौकों पर जहां जरूरी कदम उठाए गए, वहीं कई मामलों में अदालत तक ने सार्थक हस्तक्षेप किया। दिलचस्प है कि आरटीआई को जनता के हाथों में औजार के रूप में सौंपने का श्रेय भी कांग्रेस नीत यूपीए सरकार को ही है। अभी नागरिक समाज की सजगता से भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल बिल को लेकर जो मुहिम आगे बढ़ रही है उसके आगाज के पीछे भी आरटीआई कार्यकर्ताओं की सफलता ही है। दरअसल, यह एक ऐसी कानूनी ताकत है, जिसके माध्यम से जनता सरकारी कामकाज, उसके खर्च ब्योरे और तौर-तरीकों पर सीधे सवाल उठा सकती है। सरकार और व्यवस्था के कामकाज का इस तरह सार्वजनिक होना, जहां उनकी विश्वसनीयता को बहाल करने का कारगर जरिया बना है, वहीं जनता को भी भरोसा हुआ है कि उसकी योजनाओं और हक के साधनों की गिद्ध लूट अब संभव नहीं। जिस अधिकार और ताकत ने जनता में इतना भरोसा कायम किया है, उसके कारगर होने की गारंटी का ही सबूत है कि राहुल गांधी तक को न सिर्फ उसमें यकीन है बल्कि वह जनता की तरह ही उसका कारगर इस्तेमाल भी कर रहे हैं।
Friday, April 29, 2011
राहुल और आरटीआई
लोकतंत्र की ताकत अगर लोक है तो सत्ता और शक्ति के किसी दूसरे केंद्र का ताकतवर होना खतरनाक है। यही बात लोकतांत्रिक संघर्षो को लेकर भी कहनी होगी। यह कहीं से मुनासिब नहीं कि इस व्यवस्था में 'राजपथ' का महत्व 'जनपथ' से ज्यादा हो। अगर जनता और नेता के संघर्ष के औजार भिन्न होंगे तो इसका मतलब है कि लोक के 'लोप' की कीमत पर नेता नेतागीरी का 'स्कोप' देख रहे हैं। जिन लोगों को भारतीय राजनीति में राहुल गांधी के आगमन और आगे बढ़ने के उनके सीधे-सरल लोकतांत्रिक तरीके पर जरा भी यकीन हो, उन्हें यह जानना अच्छा लगा होगा कि सरकारी योजनाओं में घपलों-घोटालों को उजागर करने के लिए उन्होंने आरटीआई को हथियार बनाया है। इसके लिए उन्होंने न सिर्फ खुद से अर्जी लगाई बल्कि यह दिखाया भी कि नेतागीरी की धौंस और सत्ता की पागल कर देने वाली राजनीति में उनका कोई यकीन नहीं। कलावती की झोपड़ी में रात बिताकर परिवर्तन के सवेरे की बात करने वाले इस युवा नेता से उसकी पार्टी को ही नहीं, देश को भी काफी उम्मीदें हैं। राहुल भारतीय राजनीति के सबसे ख्यात और शक्तिशाली परिवार से आते हैं। उनकी पार्टी कांग्रेस भी देश की आज तक नंबर एक राजनीतिक पार्टी है। इसलिए कोई यह कहे कि वह भविष्य की अपनी राजनीति के ठौर के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं तो यह समझ बचकानी है। लोगों के बीच जाना, उनसे जुड़ना, उन्हें समझना और लोक संवाद के जरिए लगातार संघर्ष के लिए तत्पर बने रहना राजनीति की कम से कम वह सीख तो नहीं ही है जिसमें एक तरफ जहां प्याली में क्रांति उबलती है, वहीं दूसरी तरफ लाल बत्ती से नेतृत्व का कद तय होता है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन भारत सरकार की मनरेगा की तरह एक महत्वाकांक्षी योजना है। आरटीआई के जरिए कांग्रेस महासचिव ने इस योजना के क्रियान्वयन में गड़बड़ियों पर से परदा उठाना चाहा है। पिछले दिनों में कई ऐसी पहल हुई हैं जिसमें आरटीआई सरकार के अपने कामकाज के साथ व्यवस्थापिका की कमजोरियों को तथ्यगत तौर पर उजागर करने का हथियार बना है। इस कारण कई मौकों पर जहां जरूरी कदम उठाए गए, वहीं कई मामलों में अदालत तक ने सार्थक हस्तक्षेप किया। दिलचस्प है कि आरटीआई को जनता के हाथों में औजार के रूप में सौंपने का श्रेय भी कांग्रेस नीत यूपीए सरकार को ही है। अभी नागरिक समाज की सजगता से भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल बिल को लेकर जो मुहिम आगे बढ़ रही है उसके आगाज के पीछे भी आरटीआई कार्यकर्ताओं की सफलता ही है। दरअसल, यह एक ऐसी कानूनी ताकत है, जिसके माध्यम से जनता सरकारी कामकाज, उसके खर्च ब्योरे और तौर-तरीकों पर सीधे सवाल उठा सकती है। सरकार और व्यवस्था के कामकाज का इस तरह सार्वजनिक होना, जहां उनकी विश्वसनीयता को बहाल करने का कारगर जरिया बना है, वहीं जनता को भी भरोसा हुआ है कि उसकी योजनाओं और हक के साधनों की गिद्ध लूट अब संभव नहीं। जिस अधिकार और ताकत ने जनता में इतना भरोसा कायम किया है, उसके कारगर होने की गारंटी का ही सबूत है कि राहुल गांधी तक को न सिर्फ उसमें यकीन है बल्कि वह जनता की तरह ही उसका कारगर इस्तेमाल भी कर रहे हैं।
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