Tuesday, April 19, 2011

नेक नेताओं, तुम कहां हो!


हमारे देश का राजनीतिक नेतृत्व कितना शिष्ट, नेक, ईमानदार और समाज एवं राष्ट्र के हितों की चिंता करने वाला है, इसका एक अनुमान अन्ना हजारे और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत लोकपाल बनाने की उनकी पहल के खिलाफ हर स्तर पर हो रहे दुष्प्रचार से लगाया जा सकता है। शर्मनाक यह है कि इस दुष्प्रचार में कथित बुद्धिजीवियों का एक तबका भी शामिल है। इससे भी शर्मनाक यह है कि मीडिया का एक हिस्सा भी इस दुष्प्रचार को हवा दे रहा है। कई राजनेताओं को इस पर आपत्ति है कि अन्ना हजारे सभी नेताओं को भ्रष्ट साबित कर रहे हैं। हालांकि उन्होंने इतना ही कहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मौन रहने वाले नेता समाज के लिए उपयोगी नहीं, लेकिन उनसे चिढे़ हुए नेता इसकी व्याख्या इस रूप में कर रहे हैं कि उनके हिसाब से देश में नेक एवं ईमानदार नेताओं का अभाव है। नि:संदेह सभी नेता भ्रष्ट नहीं हैं, लेकिन जिस तरह खोटे सिक्के अच्छे सिक्कों को चलन से बाहर कर देते हैं उसी तरह भ्रष्ट नेताओं ने भी नेक एवं ईमानदार नेताओं को निष्प्रभावी बना दिया है। यदि विभिन्न दलों के ईमानदार नेता सक्षम और सजग हैं तो कृपा कर वे यह बताएं कि लोकपाल विधेयक 43 साल से क्यों अटका है? 1967 में प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने लोकपाल विधेयक की सिफारिश की थी, लेकिन किसी भी दल-यहां तक कि शुचिता और ईमानदारी का उपदेश देने वाली भाजपा की सरकार भी उस पर अमल नहीं कर सकी। यदि नेक नेताओं को अपनी छवि और साथ ही देश की तनिक भी परवाह है तो कृपा कर देश को बताएं कि वे द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की रपट लागू करने की मांग करने में संकोच क्यों कर रहे हैं? क्या यह लज्जाजनक नहीं कि मनमोहन सरकार कई वर्षो से द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की रपट पर कुंडली मारे बैठी है और फिर भी पक्ष-विपक्ष के ईमानदार नेताओं की बोलती बंद है? निर्वाचन आयोग पिछले कई वर्षो से चुनाव सुधार के लिए सक्रिय है, लेकिन राजनीतिक दलों की अडं़गेबाजी के कारण उसकी सक्रियता के सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आ पा रहे। आखिर विभिन्न दलों के नेक एवं ईमानदार नेता अपने-अपने दलों पर इसके लिए कोई दबाव क्यों नहीं बना पा रहे कि वे चुनाव सुधारों की दिशा में आगे बढ़ें ताकि काले धन की राजनीति और राजनीति के अपराधीकरण से छुटकारा मिले? क्या कारण है कि ईमानदार नेताओं के होते हुए भी राजनीतिक दल अपने आय-व्यय के खातों का विवरण देने के लिए तैयार नहीं? आखिर देश की जनता इस नतीजे पर क्यों न पहुंचे कि जिस तरह मनमोहन सिंह भ्रष्टाचार और भ्रष्ट तत्वों के खिलाफ नितांत निष्प्रभावी और निष्कि्रय हैं वैसी ही स्थिति शेष नेक एवं ईमानदार नेताओं की भी है? अन्ना हजारे के आंदोलन के समक्ष नतमस्तक होने के बाद कांग्रेस और केंद्रीय सत्ता यह प्रचारित करने में लगी हुई है कि जो अन्ना चाहते हैं वही हम भी चाहते हैं। यदि वास्तव में ऐसा है तो कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह कुतर्को की पोटली खोलकर क्यों बैठ गए हैं? कभी वे यह कहते हैं कि अन्ना के सहयोगी भाजपा के करीबी हैं और कभी यह कि क्या हम लोग अनसिविल सोसायटी के सदस्य हैं? उन्हें इस पर भी एतराज है कि अन्ना के अनशन स्थल जंतर-मंतर पर भारत माता की तस्वीर क्यों लगी थी? क्या वहां पर अमेरिका या ईरान की तस्वीर लगाई जानी चाहिए थी? यदि यह मान भी लिया जाए कि अन्ना के सहयोगी भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीबी हैं तो क्या यह कोई गुनाह है? क्या ये संगठन उल्फा अथवा हिजबुल मुजाहिदीन से भी खतरनाक हैं? अन्ना के सहयोगी शांतिभूषण को बदनाम करने के लिए लाई गई फर्जी सीडी और दिग्विजय सिंह के बयानों में अंतर करना मुश्किल है। दोनों के पीछे एक ही उद्देश्य है-अन्ना हजारे और उनके साथियों पर कीचड़ उछालना। यदि कांग्रेस वही चाहती है जो अन्ना चाह रहे हैं तो फिर दिग्विजय सिंह बेलगाम क्यों हैं? यदि वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत अपने सुविचार सामने रख रहे हैं तो ऐसी ही स्वतंत्रता तब क्यों नहीं देखने को मिली जब क्वात्रोची के खातों पर लगी रोक हटाई गई थी अथवा ए. राजा को क्लीन चिट दी जा रही थी या फिर सीवीसी बनाए गए पीजे थॉमस को चरित्र प्रमाण पत्र दिया जा रहा था? मनमोहन सरकार स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच संयुक्त संसदीय समिति से न कराने पर महीनों तक अड़ी रही और सब जानते हैं कि इस दौरान सत्तापक्ष के नेक-ईमानदार नेता मौन बने रहे। देश यह चाह रहा है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री येद्दयुरप्पा के खिलाफ कार्रवाई हो, लेकिन भाजपा के नेक-ईमानदार नेता या तो मौन हैं या फिर यह तर्क दे रहे हैं कि अभी उनके खिलाफ कार्रवाई की जरूरत नहीं। दरअसल चाहे सत्तापक्ष के ईमानदार नेता हों या विपक्ष के, वे उस समय दलीय हित या पार्टी अनुशासन की आड़ में छिपना पसंद करते हैं जब उन्हें मुखर और सक्रिय होना चाहिए। अन्ना और उनके साथियों पर कीचड़ उछालने का काम जिस सुनियोजित तरीके से हो रहा है उससे साफ है कि भ्रष्ट एवं दुष्ट ताकतें एक हो गई हैं। बावजूद इसके हमारे नेक एवं ईमानदार नेता मौन है? वे कृपा कर यह बताएं कि उनके होने का लाभ क्या है? (लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं).

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