अब चाहे इसे संयोग कह लें या विडंबना। दुनिया जिस दिन चेरनोबिल एटोमिक हादसे की पच्चीसवीं वर्षगांठ मना रही थी उसी दिन सरकार जैतापुर एटोमिक बिजलीघर को पूरा करने का संकल्प दोहराते हुए कह रही थी कि इस संयंत्र की दोनों इकाइयां अगले आठ वर्षो में उत्पादन शुरू कर देंगी। इस घोषणा से जैतापुर और आसपास के लोगों को झटका लगा होगा जो संयंत्र के खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं, इसे इंसान और पर्यावरण की सुरक्षा के खिलाफ बता रहे हैं। एक दिलचस्प बात यह थी कि पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश जो कल तक देश की जिन प्रस्तावित एटोमिक बिजलीघर परियोजनाओं पर विराम लगाने की बात कह रहे थे, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बैठक में जैतापुर बिजलीघर को लेकर सहमति में सर हिला रहे थे। महाराष्ट्र के जैतापुर में बनने वाले इस बिजलीघर में 1605 मेगावाट बिजली बनाने वाली दो इकाइयां लगाने की योजना है। विरोधियों का तर्क है कि भूकंप के प्रति संवेदनशील इस इलाके में एटोमिक संयंत्र कितना खतरनाक है यह जापान के फुकुशिमा एटोमिक बिजलीघर की तबाही बता रही है। भूकंप और सुनामी के बाद तबाह इस बिजलीघर से निकल रहा रेडिएशन जापान ही नहीं, यूरोप तक के लिए बड़ा खतरा बन गया है। लेकिन, जैतापुर के आंदोलन का एक फायदा भी हुआ है। सरकार ने संयंत्र की मंजूरी के साथ ही सुरक्षा के अचूक उपाय करने और जिनकी जमीन ली जा रही है, उन्हें बेहतर मुआवजा देने का भी फैसला किया है। सबसे बड़ी बात यह हुई है कि एटोमिक संयंत्रों पर नजर रखने के लिए एक स्वतंत्र और ऑटोनोमस रेगुलेटरी ऑथोरिटी बनाना भी सरकार ने तय कर लिया है जिसके लिए संसद के मानसून सत्र में बिल रखा जा सकता है। अभी तक यह काम एटोमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड के जिम्मे था जिसकी अपनी कोई हैसियत ही नहीं थी। यह भी तय हुआ है कि जैतापुर में लगने वाली दोनों इकाइयों की अपनी अलग- अलग सुरक्षा और उत्पादन व्यवस्था होगी। फैसले का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि एटोमिक बिजलीघरों को लेकर बनी नीतियां और कार्यान्वयन के तमाम पहलुओं को पारदर्शी रखा जाएगा ताकि आम आदमी तक जानकारियां पहुंचती रहें और व्यर्थ की दुश्ंिचताएं न पनपें। इस सिलसिले में तय किया गया कि फुकुशिमा हादसे के कारणों और उनसे निपटने के उपायों पर छह रिव्यू कमेटियां अध्ययन कर चुकी हैं जिनकी जानकारी सार्वजनिक की जाएगी। सरकार को यकीन है कि इन फैसलों के बाद जैतापुर के लोग विरोध छोड़ देंगे। जैतापुर के आंदोलन को सरकार बाहरी तत्वों द्वारा भड़कायी साजिश मानती है और महाराष्ट्र सरकार तो यहां तक आरोप लगा चुकी है कि इसके पीछे पैसों और राजनीति का खेल है। बहरहाल, देश को विकास के लिए बिजली की खासी जरूरत है और हमने इसके लिए एटोमिक रास्ता पकड़ना तय कर लिया है। लेकिन, इस रास्ते में खतरे कैसे हैं, इसका नमूना पचीस साल पहले उक्रेन के चेरनोबिल कारखाने में हुई दुर्घटना और हाल के फुकुशिमा एटोमिक प्लांट की तबाही के रूप में देख भी लिया है। इसलिए एटोमिक रास्ते के जोखिमों को भलीभांति समझना और बचाव के अचूक तरीकों का इस्तेमाल ही हमें खतरों से बचाएगा और विकास के लिए बिजली भी देगा। ध्यान रहे आज एटोमिक इंडस्ट्री अरबों-खरबों का व्यापार बन चुका है और इसके पैरवीकार हर देश की सरकारों में पैठ बनाने में जुटे हैं। इसलिए हम इस्तेमाल करने वाली तकनीक को पूरी तरह जांच-परख लें और कहीं से भ्रष्टाचार की छाया इस क्षेत्र पर न पड़ने दें।
Thursday, April 28, 2011
एटमी राह, संभल कर चलिए
अब चाहे इसे संयोग कह लें या विडंबना। दुनिया जिस दिन चेरनोबिल एटोमिक हादसे की पच्चीसवीं वर्षगांठ मना रही थी उसी दिन सरकार जैतापुर एटोमिक बिजलीघर को पूरा करने का संकल्प दोहराते हुए कह रही थी कि इस संयंत्र की दोनों इकाइयां अगले आठ वर्षो में उत्पादन शुरू कर देंगी। इस घोषणा से जैतापुर और आसपास के लोगों को झटका लगा होगा जो संयंत्र के खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं, इसे इंसान और पर्यावरण की सुरक्षा के खिलाफ बता रहे हैं। एक दिलचस्प बात यह थी कि पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश जो कल तक देश की जिन प्रस्तावित एटोमिक बिजलीघर परियोजनाओं पर विराम लगाने की बात कह रहे थे, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बैठक में जैतापुर बिजलीघर को लेकर सहमति में सर हिला रहे थे। महाराष्ट्र के जैतापुर में बनने वाले इस बिजलीघर में 1605 मेगावाट बिजली बनाने वाली दो इकाइयां लगाने की योजना है। विरोधियों का तर्क है कि भूकंप के प्रति संवेदनशील इस इलाके में एटोमिक संयंत्र कितना खतरनाक है यह जापान के फुकुशिमा एटोमिक बिजलीघर की तबाही बता रही है। भूकंप और सुनामी के बाद तबाह इस बिजलीघर से निकल रहा रेडिएशन जापान ही नहीं, यूरोप तक के लिए बड़ा खतरा बन गया है। लेकिन, जैतापुर के आंदोलन का एक फायदा भी हुआ है। सरकार ने संयंत्र की मंजूरी के साथ ही सुरक्षा के अचूक उपाय करने और जिनकी जमीन ली जा रही है, उन्हें बेहतर मुआवजा देने का भी फैसला किया है। सबसे बड़ी बात यह हुई है कि एटोमिक संयंत्रों पर नजर रखने के लिए एक स्वतंत्र और ऑटोनोमस रेगुलेटरी ऑथोरिटी बनाना भी सरकार ने तय कर लिया है जिसके लिए संसद के मानसून सत्र में बिल रखा जा सकता है। अभी तक यह काम एटोमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड के जिम्मे था जिसकी अपनी कोई हैसियत ही नहीं थी। यह भी तय हुआ है कि जैतापुर में लगने वाली दोनों इकाइयों की अपनी अलग- अलग सुरक्षा और उत्पादन व्यवस्था होगी। फैसले का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि एटोमिक बिजलीघरों को लेकर बनी नीतियां और कार्यान्वयन के तमाम पहलुओं को पारदर्शी रखा जाएगा ताकि आम आदमी तक जानकारियां पहुंचती रहें और व्यर्थ की दुश्ंिचताएं न पनपें। इस सिलसिले में तय किया गया कि फुकुशिमा हादसे के कारणों और उनसे निपटने के उपायों पर छह रिव्यू कमेटियां अध्ययन कर चुकी हैं जिनकी जानकारी सार्वजनिक की जाएगी। सरकार को यकीन है कि इन फैसलों के बाद जैतापुर के लोग विरोध छोड़ देंगे। जैतापुर के आंदोलन को सरकार बाहरी तत्वों द्वारा भड़कायी साजिश मानती है और महाराष्ट्र सरकार तो यहां तक आरोप लगा चुकी है कि इसके पीछे पैसों और राजनीति का खेल है। बहरहाल, देश को विकास के लिए बिजली की खासी जरूरत है और हमने इसके लिए एटोमिक रास्ता पकड़ना तय कर लिया है। लेकिन, इस रास्ते में खतरे कैसे हैं, इसका नमूना पचीस साल पहले उक्रेन के चेरनोबिल कारखाने में हुई दुर्घटना और हाल के फुकुशिमा एटोमिक प्लांट की तबाही के रूप में देख भी लिया है। इसलिए एटोमिक रास्ते के जोखिमों को भलीभांति समझना और बचाव के अचूक तरीकों का इस्तेमाल ही हमें खतरों से बचाएगा और विकास के लिए बिजली भी देगा। ध्यान रहे आज एटोमिक इंडस्ट्री अरबों-खरबों का व्यापार बन चुका है और इसके पैरवीकार हर देश की सरकारों में पैठ बनाने में जुटे हैं। इसलिए हम इस्तेमाल करने वाली तकनीक को पूरी तरह जांच-परख लें और कहीं से भ्रष्टाचार की छाया इस क्षेत्र पर न पड़ने दें।
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