Thursday, April 28, 2011

उंगलियां न उठें


सरकार और नागर समाज में सहमति हुई कि एक बढ़िया सा कड़क लोकपाल बिल बनाएं। नागर समाज अपनी दिली इच्छा पूरी होते देख गंभीर हो गया और तहेदिल से शुक्रिया सा अदा करते हुए उसने कहा- भ्रष्टाचार मिटाने के लिए यह बेहद आवश्यक है। यह वक्त की जरूरत है, देश की जरूरत है। सरकार अपनी हंसी रोक गंभीर हुई और बोली- सिर्फ लोकपाल बिल से ही सब भ्रष्टाचार नहीं मिटनेवाला। नागर समाज को बुरा लगा-आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? आपके मन में खोट है। सरकार यह नहीं दिखाना चाहती थी कि वह अनिच्छुक है। सो उसने मनाते हुए कहा-आप नाराज न हों। एक प्रभावी लोकपाल बिल की जरूरत हम भी समझते हैं। इसीलिए तो हममें सहमति हुई है। आइए अच्छा सा, बढ़िया सा लोकपाल बिल बनाएं। नागर समाज को संदेह हुआ कि सरकार शायद उसे गंभीरता से नहीं ले रही है। इसलिए उसने अपनी ऐतिहासिक भूमिका याद करते हुए कहा- इसीलिए तो हमने भूख हड़ताल की थी। आंदोलन चलाया था। सरकार सारा क्रेडिट नागर समाज को नहीं देना चाहती थी, सो उसने कहा-इसके लिए हमने भी बड़ी कोशिश की थी। नागर समाज अपनी ऐतिहासिक भूमिका याद करते-करते भावुक हो गया- हमारे आंदोलन के कारण जंतर-मंतर के तहरीर चौक बनने की संभावना पैदा हो गई थी। दूसरी आजादी मिलने की उम्मीद बंधने लगी थी। सरकार ने कामकाजी अंदाज में कहा-हम मिलकर, एक अच्छा कड़क लोकपाल बिल बना पाएंगे। अभी यह सहमति बनी ही थी कि किसी ने नागर समाज की ओर उंगली उठा दी-क्या आपके यहां भी परिवारवाद है? नागर समाज को इसकी उम्मीद नहीं थी। उसे लगता था कि जैसे भ्रष्टाचार सिर्फ राजनीति में है, वैसे ही परिवारवाद राजनीति में ही है, उसके यहां कहां से आ गया। पर जब देखा तो था। सो उसने कहा-नहीं, यह उस तरह का परिवारवाद नहीं है, जैसा राजनीति में होता है। कानूनी नुक्ते समझने और एक अच्छा बिल बनाने के लिए यह परिवारवाद जरूरी है। सरकार चुप रही। शायद थोड़ी मुस्कुरायी भी। नागर समाज अभी परिवारवाद के मुद्दे से निपट भी नहीं पाया था कि किसी ने फिर उंगली उठा दी-आंदोलन में पचास लाख खर्च हुए, वो कहां से आये। नागर समाज फिर परेशान हुआ। पर उसने धैर्य से सारा हिसाब रख दिया-लोगों ने देखा कि नागर समाज में भी अरबपति होते हैं। उन्हें बड़ा अफसोस हुआ कि हम तो उन्हें झोला छाप, फकीर और तपस्वी समझते थे। हम जिन्हें जो समझते हैं, वो वैसे क्यों नहीं निकलते, पता नहीं। जनता इसी अफसोस में गर्क थी कि कहीं से फिर उंगली उठी-वो जमीन की रजिस्ट्री करानेवाला क्या मामला है जी। नागर समाज भौचक्क रह गया। उन्हें तो आदत थी दूसरों पर उंगली उठाने की। यह बताने की कि देखो, फलां-फलां ने चोरी की। पर अबबार-बार उसकी तरफ उंगली क्यों उठने लगी है? वे अभी कानूनी नुक्ते समझा ही रहे थे कि एक सीडी धमाका हो गया। फिक्सिंग और सेटिंग की बात होने लगी। उंगली उठने लगी। नागर समाज ने कहा- यह सब फर्जी है। हमने अमेरिका से जांच करा ली है। इसमें कोई सत्यता नहीं है। उन्होंने अमेरिका का नाम कुछ-कुछ उसी अंदाज में लिया जैसे कोई मध्यवर्गीय परिवार कहता है कि हमारा बेटा अमेरिका रिटर्न है। पर आप तो जानते हैं कि दुनिया में अब अमेरिका का वह रौब नहीं रहा। यहां स्वदेशी का नुस्खा काम आया जो संघ ब्रांडवाली नहीं थी। पुलिस ने अपना पुलिसिया रौब छोड़ बड़ी विनम्रता से कहान हीं जी, फर्जी नहीं है। हमने जांच करा ली है। इस पर सरकार मुस्कुराई। बोली- हम पूर तरह से निष्पक्ष जांच कराएंगे। तभी उंगली उठी-यह सस्ते फार्म हाऊस लेने का क्या चक्कर है जी। अब तो हद हो गयी। नागर समाज बिफर गया। बोला-बहुत बड़ी साजिश हो रही है। हमें बदनाम करने की मुहिम चल रही है। अन्नाजी ने सोनियाजी से शिकायत की-इसे रोकिए। सोनियाजी ने कहा-हम ऐसी किसी मुहिम के साथ नहीं है। अन्नाजी खुश हुए।

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