Friday, April 1, 2011

भाजपा का अवसरवादी चेहरा


भाजपा विचारधारा को लेकर कभी स्पष्ट नहीं रही। 1977 में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ तो इसने अपना एजेंडा त्याग दिया। 1980 में जनता पार्टी से अलग भाजपा बनी तो गांधीवादी समाजवाद को सिद्धांत माना गया। 1986 में अयोध्या आंदोलन से जुड़ने की घोषणा के साथ प्रखर हिन्दुत्व का स्वर अंगीकार कर राजनीतिक लाभ लिया पर पार्टी नेतृत्व का बहुमत हमेशा विचारधारा को लेकर संभ्रम का शिकार रहा। इसलिए विकीलीक्स के संदेश में भले जेटली के कथन का जो भी अभिप्राय अमेरिकी राजनयिक ने लगाया, हिन्दुत्व ज्यादातर शीर्ष भाजपा नेताओं के लिए अवसरवादी मुद्दा ही रहा है
भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने हिन्दुत्व संबधी अपने कथित बयान पर सफाई दे दी है तथा पार्टी व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दोनों ने इसे स्वीकार लिया है। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा है कि अमेरिकी राजनयिक ने इसकी गलत व्याख्या की, अरुण जेटली के मुंह से ऐसी बातें निकल ही नहीं सकतीं। संघ कार्यकारी मंडल के सदस्य राम माधव ने भी कह दिया है कि जेटली अपनी सफाई दे चुके हैं, इसलिए इस पर अलग से कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार कांग्रेस एवं अन्य भाजपा विरोधी संगठनों के लिए भले यह भाजपा नेताओं के पाखंड का मुद्दा है, संघ परिवार के नेताओं के लिए यह कोई मुद्दा ही नहीं है। तो क्या अरुण जेटली की सफाई एवं संघ व पार्टी के समर्थन के साथ यह मुद्दा समाप्त हो गया है? नि:स्संदेह, भाजपा एवं संघ नेताओं के लिए यह मुद्दा नहीं हो, पर भाजपा एवं संघ परिवार के सोचने-समझने वाले कार्यकर्ता, विचारधारा के आधार पर भाजपा का समर्थन करने वालों के लिए यह समाप्त नहीं हुआ है। हम नहीं चाहते कि विकीलीक्स के संदेशों के आधार पर देश में राजनीतिक तूफान खड़ा हो, या देश की अन्य अनिवार्य चुनौतियां ताक पर रख हम उसके पीछे भागने लगें। लेकिन इससे एक बार फिर भाजपा की विचारधारा, खासकर हिन्दुत्व व हिन्दू राष्ट्र तथा इसके वरिष्ठ नेताओं का इसके प्रति रुख का मुद्दा सतह पर आ गया है। सबसे पहले विकीलीक्स का संदेश देखें। नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास के राजनयिक राबर्ट ब्लेक ने 6 मई 2005 को भेजे एक संदेश में कहा कि जेटली ने उनसे हिन्दुत्व के सवाल पर बातचीत में कहा कि हिन्दू राष्ट्रवाद भाजपा के लिए हमेशा र्चचा का बिन्दु रहेगा। हालांकि उन्होंने इसे एक अवसरवादी मुद्दा बताया। अपनी सफाई में जेटली ने कहा है कि राष्ट्रवाद या हिन्दू राष्ट्रवाद के संदर्भ में अवसरवाद शब्द का उल्लेख न मेरा विचार है और न भाषा। जेटली यह तो मानते हैं कि उन्होंने ब्लेक से कई मुद्दों पर बातचीत की। इनमें आतंकवाद, बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ और नरेन्द्र मोदी को अमेरिका जाने का वीजा न दिए जाने का मसला शामिल है। ध्यान दें कि उन्होंने अपनी सफाई में हिन्दुत्व, हिन्दू राष्ट्र पर ब्लेक से बातचीत में क्या कहा- यह नहीं बताया है। केवल यह कहना कि अवसरवाद शब्द उनका नहीं है, इससे कौन संतुष्ट हो सकता है। जेटली अवसरवाद जैसे शब्द का प्रयोग नहीं करेंगे, इस पर तो विश्वास किया जा सकता है, लेकिन उन्होंने वाकई क्या कहा, यह जानने का अधिकार तो देश को है। अगर गडकरी ने उनसे इस विषय पर बातचीत की है तो उन्हें ही बताना चाहिए कि आखिर अमेरिकी राजनयिक से इन मामलों पर क्या कहा गया। भाजपा ने अपने मान्य दस्तावेजों में केवल हिन्दुत्व शब्द प्रयोग किया है। इसने दस्तावेजों में हिन्दू राष्ट्र शब्द का प्रयोग नहीं किया। हिन्दू राष्ट्र शब्द संघ एवं उससे जुड़े दूसरे अनुशांगिक संगठन करते हैं। हालांकि 1998 तक भाजपा के ज्यादातर नेता हिन्दू राष्ट्र के सवाल पर इसकी व्याख्या करते थे, कभी क्षमायाचक की मुद्रा में अपना बचाव नहीं करते थे। 1998 से पूर्व के चुनाव घोषणा पत्र में सबकी शुरुआत में हिन्दुत्व एवं सांस्कृतिक राष्ट्रीयता शब्द मिलेगा। उसके बाद इनका स्वर बदल गया। शासन में आने के बाद वे कहते तो थे कि अपनी विचारधारा को लेकर क्षमायाचक नहीं हैं, पर व्यवहार में क्षमायाचक ही होते थे। इसमें दो राय नहीं कि स्वयं को जनसंघ का उत्तराधिकारी मानने तथा संघ की पृष्ठभूमि स्वीकार करने के कारण भाजपा की वैचारिक पृष्ठभूमि हिन्दुत्ववादी है। पीछे की बात छोड़ भी दें तो 2004 के लोकसभा चुनाव में पराजय झेलने के बाद पार्टी ने भविष्य के लिए कार्ययोजना नामक दस्तावेज में कहा कि भाजपा हिन्दुत्व की विचारधारा से संचालित आंदोलन का अंग है। इसके पूर्व रायपुर की कार्यकारिणी में हिन्दुत्व को पार्टी की आत्मा कहा गया। यह अलग बात है कि हिन्दुत्व की कभी स्पष्ट राजनीतिक व्याख्या भाजपा ने देश के सामने नहीं रखी। जाहिर है, अयोध्या में राममंदिर निर्माण, समान आचार संहिता, कश्मीर में धारा 370 जैसे मुद्दों पर इनकी प्रखरता के कारण लोगों ने इसे ही हिन्दुत्व का सगुण मुद्दा मान लिया। भाजपा के हिन्दुत्व पर जो प्रश्न होते हैं, उनमें ज्यादातर का संकेत इन्हीं मूल मुद्दों पर उसके नजरिए से होता है। यह ठीक है कि कोई विदेशी आसानी से एक मुलाकात में हिन्दुत्व या हिन्दू राष्ट्र शब्द को नहीं समझ सकता। पश्चिम में जिसे आधुनिक राष्ट्र राज्य कहते हैं उसकी अवधारणा तथा भारतीय परंपरा में राष्ट्र की अवधारणा में मौलिक अंतर है। दोनों के आविर्भाव एवं सशक्त होने की प्रक्रिया भिन्न रही है। यूरोप में राष्ट्र और राज्य समानार्थी हैं, जबकि भारत में दोनों अलग-अलग हैं। राष्ट्र सामान्यत: एक सांस्कृतिक संकल्पना रही है। इसका भूगोल और राजनीति से रिश्ता होना अनिवार्य नहीं था। इसके विपरीत भूगोल एवं राजनीति ही यूरोपीय राज्य का निर्धारक तत्व बना। भारतीय परंपरा में राष्ट्र एक जीवन दर्शन का पर्याय था जिसे लोगों ने जीवन शैली के रूप में अपनाया था। हिन्दुत्व शब्द यहीं पर प्रासंगिक हो जाता है। यद्यपि हिन्दू शब्द भारतीय वांग्मय में काफी समय बाद जुड़ा। वेदों में कहीं हिन्दू, हिन्दू धर्म या हिन्दुत्व नहीं है, लेकिन हिन्दुत्व कह देने से वे सारे सांस्कृतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक पहलू स्पष्ट हो जाते हैं जो भारत की सनातन विचारधारा से जुड़े हैं। मूल रूप में हिन्दुत्व किसी उपासना पद्धति, कर्मकांड, मजहब का पर्याय नहीं है। यूरोप या अमेरिका के किसी व्यक्ति को ये बातें समझा पाना कितना कठिन है, इसे आसानी से समझा जा सकता है। लेकिन क्या भाजपा के नेता ही इन शब्दों का वास्तविक अभिप्राय समझते हैं? लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे वरिष्ठ नेताओं की हिन्दुत्व पर राय जब-तब देश ने सुनी है। भाजपा के प्रमुख स्तंभ रहे गोविन्दाचार्य की हिन्दुत्व की व्याख्या भी कई बार सुनी है। क्या इस समय भाजपा नेताओं के हिन्दुत्व या हिन्दू राष्ट्र पर विचार देश ने सुने हैं? वाजपेयी सरकार के समय अध्यक्ष के रूप में वेंकैया नायडू ने यह नारा ही दे दिया था- एक हाथ में भाजपा का झंडा और दूसरे में एनडीए का एजेंडा। बाद में सभी नेताओं के मुंह से निकलने लगा, 'हिन्दुत्व हमारे लिए आस्था का विषय है, राजनीति का नहीं।' ऐसी पंक्ति से कोई क्या अर्थ लगाएगा? सोचिए, अगर जेटली ने ऐसा ही कुछ अमेरिकी राजनयिक से कहा हो तो वह इसका अर्थ तो अवसरवाद के लिए हिन्दुत्व को अपनाए जाने के रूप में ही लेगा। भाजपा के संदर्भ में यह सच नहीं भूलना चाहिए कि यह विचारधारा को लेकर शत-प्रतिशत स्पष्ट नहीं रही है। 1977 में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ तो इसने अपना एजेंडा त्याग दिया। 1980 में जनता पार्टी से अलग होकर भाजपा बनी तो हिन्दुत्व शब्द का प्रयोग नहीं था। गांधीवादी समाजवाद को सिद्धांत माना गया।1984 लोकसभा चुनाव के बाद अवश्य पार्टी ने चेहरा बदलने की कोशिश की और 1986 में अयोध्या आंदोलन से जुड़ने की घोषणा के साथ प्रखर हिन्दुत्व का स्वर अंगीकार किया जिसका राजनीतिक लाभ भी उसे मिला, पर पार्टी नेतृत्व का बहुमत हमेशा विचारधारा को लेकर संभ्रम का शिकार रहा। आडवाणी ने 1998 में साफ कह दिया कि देश को आइडियोलोजी नहीं आइडियलिज्म यानी विचारधारा नहीं आदर्शवाद चाहिए। उसके बाद उन्होंने कई बार कहा कि शासन संचालन में विचारधारा प्रासंगिक नहीं है। अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास बिहार के जिस कामेश्वर चौपाल से कराया गया, उन्होंने कई साल पूर्व एक बातचीत में कहा था कि हम लोगों को तो किसी मंच पर चढ़ते ही यह कहते हुए श्रीहीन कर दिया जाता था कि आप अयोध्या मामले पर कुछ नहीं बोलिएगा। क्या ये उदाहरण हिन्दुत्व को राजनीतिक अवसरवाद के रूप में इस्तेमाल करने के प्रमाण नहीं हैं? इसलिए विकीलीक्स के संदेश में भले जेटली के कथन का जो भी अभिप्राय अमेरिकी राजनयिक ने लगाया, हिन्दुत्व ज्यादातर शीर्ष भाजपा नेताओं के लिए अवसरवादी मुद्दा ही रहा है।


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