Monday, April 18, 2011

सुपर सरकार नहीं होना चाहिए लोकपाल


लोकपाल के मुद्दे पर जागरण के सवालों के जवाब दे रहे हैं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के महासचिव डीपी त्रिपाठी
लोकपाल विधेयक के मसौदे पर सरकार व अन्ना हजारे की गैर राजनीतिक सामाजिक टीम में विचार विमर्श शुरू हो गया है। इस स्थिति में राजनीतिक दलों की भूमिका प्रभावित हुई है। सत्तारूढ़ संप्रग के अहम घटक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के महासचिव डीपी त्रिपाठी इस स्थिति को उचित नहीं मानते हैं। उन्होंने हजारे की स्वघोषित व स्वनियुक्त टीम पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि इनको किसने चुना और ये किसके प्रति जवाबदेह हैं? त्रिपाठी का मानना है कि लोकपाल कोई सुपर सरकार नहीं होना चाहिए। राजकिशोर ने इस मुद्दे पर उनसे लंबी चर्चा की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश : संविधान में लोकपाल की कोई व्यवस्था नहीं है, ऐसे में क्या संविधान संशोधन कर नई व्यवस्था लागू करना उचित होगा? संविधान के अनुसार ही संविधान में संशोधन की व्यवस्था है। परिस्थतियां बदलती हैं, उसके अनुसार संवैधानिक तरीके से संशोधन होता है। लोकपाल से संविधान की व्यवस्था में कोई संकट नहीं आएगा, लेकिन लोकपाल कोई सुपर सरकार या सरकार के ऊपर सरकार जैसी संस्था नहीं होनी चाहिए। वहां संविधान के दायरे में रहकर ही काम करने वाली संस्था होनी चाहिए। यह किस तरह की संस्था होगी, इसका क्या दायरा होगा, यह विधेयक के प्रावधानों से तय होगा। इस पर संसद में बहस होगी, विभिन्न समुदायों से राय ली जाएगी, उसी हिसाब से कानून तय होगा। लोकपाल के बहाने सरकार और समाज की साझेदारी से कानून बनने की नई परंपरा शुरुआत हो गई है। कैसे देखते हैं इस घटनाक्रम को? देखिए, सरकार और समाज की साझेदारी हमेशा से रही है और होनी भी चाहिए, लेकिन उसका संस्थागत रूप होना चाहिए। जब कोई विधेयक संसद में पेश किया जाता रहा है तो उस पर मीडिया की राय आती है। राजनीतिक दल अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। तमाम विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर, विद्यार्थी, सामाजिक संगठन, वकीलों के संगठन आदि प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। वह एक जायज तरीका है। अन्ना हजारे ने जो सवाल उठाए और सरकार पर कानून बनाने के लिए जिस तरह से दवाब बनाया, क्या वह उचित है? अन्ना हजारे ने सवाल तो सही उठाया, लेकिन जो तरीका अपनाया वह गलत है। कैसे मान लिया जाए कि वे स्वघोषित और स्वयंनियुक्त पांच लोग ही नागरिक समाज के प्रतिनिधि हैं। वे कहां से और किसके द्वारा चुने या नामित किए गए हैं? सबसे बड़ा सवाल है। साथ ही वे किसके प्रति जवाबदेह हैं? क्या वही नागरिक समाज से हैं और बाकी गैर नागरिक समाज से हैं? यह तरीका गलत है। इसलिए मेरा मानना है कि ये जो संयुक्त लोकपाल मसौदा समिति बनी है वह संविधान और लोकतंत्र के लिए घुटनों का दर्द साबित होगी। क्या आपको लगता है कि देश को लोकपाल की आवश्यकता है? लोकपाल की आवश्यक्ता है, लेकिन मैं नहीं मानता कि यह कोई जादू की छड़ी है, जो भ्रष्टाचार को समाप्त कर देगी। भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए लोकतंत्र में जन ंजाग्रति की सबसे बड़ी जरूरत है। जितने जिम्मेदार नागरिक होंगे और नागरिक चेतना जितनी सुदृढ़ होगी, भ्रष्टाचार पर उतना ही अंकुश लगेगा। ंक्या लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री व न्यायपालिका को भी रखना चाहिए? प्रधानमंत्री व उनका कार्यालय इसके दायरे में आए या न आए, इन सभी विषयों पर हम विचार करेंगे, लेकिन न्यायपालिका को तो स्वतंत्र रखना पड़ेगा। न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान का बुनियादी सिद्धांत है। उस पर तो कोई अतिक्रमण या उसको सीमाबद्ध नहीं किया जा सकता। इसलिए न्यायपालिका को तो उसके दायरे में नहीं लाया जा सकता। अच्छी बात है कि अन्ना हजारे ने स्वयं ही कहा है कि न्यायपालिका को उसके दायरे में नहीं लाना चाहिए। लोकपाल विधेयक तैयार करने की मुहिम से सरकार के सहयोगी व विपक्षी दल बाहर हैं, क्या यह स्थिति उचित है? मेरा मानना है कि इस मामले में सभी लोगों से बात होनी चाहिए। सहयोगी दलों, बाहर से समर्थन कर रहे दलों व विपक्षी दलों से भी चर्चा होनी चाहिए। इसके लिए सरकार को सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुलानी चाहिए। अब आपके माध्यम से भी सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग कर रहा हूं। सरकार व हजारे की टीम के बीच जिस तरह का अविश्वास का माहौल है, उसमें इस तरह की बैठक का क्या भविष्य होगा? सरकार की कोशिश रहेगी कि बैठक सौहार्दपूर्ण वातावरण में हो। लोग लोकपाल विधेयक के मसले पर खुले मन से अपने विचार रखें। इस दिशा में समन्वय और आम सहमति बनाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों से बातचीत बहुत लाभकर होगी। बैठकों की रिकार्डिग की बात कही जा रही है? इस तरह की बात परस्पर अविश्वास की तरफ इशारा करती है। बातचीत विश्वास के वातावरण में होनी चाहिए। वीडियो या आडियो रिकार्डिग बहुत अहम नहीं है। जब कोई मसौदा आएगा तो वह वैसे ही सार्वजनिक होगा। वह कोई छिपाकर तो पेश नहीं किया जा सकता। जब सब कुछ सार्वजनिक होना ही है तो परस्पर विश्वास से उस पर बात करनी चाहिए। हजारे जन लोकपाल विधेयक के प्रावधानों को शामिल करने पर जोर दे रहे है, क्या वह उचित हैं? बहुत सारे लोग उसके प्रावधानों से सहमत नहीं हैं। अन्ना हजारे के गुट में ही कई लोग उसकी बहुत सी बातों से सहमत नहीं हैं। हजारे के अनशन के मंच पर भारतमाता के संघ वाले फोटो को लेकर विवाद खड़ा हुआ है। वह तो रहा ही है। राम माधव तो मंच पर थे ही। इसे सबने देखा है। इसके पीछे कोई साजिश तो नहीं है? बिल्कुल। मैं अन्ना हजारे के बारे में तो कुछ नहीं कहूंगा। उन्होंने जो सामाजिक कार्य किया वह अच्छा है। उसकी प्रशंसा होनी चाहिए, लेकिन इस पूरी मुहिम के पीछे लोकतंत्र को बदनाम करने वाली शक्तियां अवश्य काम कर रही हैं। क्या कोई बाहरी हाथ भी है? बिना प्रमाण के कुछ नहीं कहूंगा, लेकिन बहुत सी शक्तियां हैं। राडिया टेप व हजारे के आरोपों के बाद शरद पवार ने खुद को भ्रष्टाचार विरोधी मंत्रिमंडलीय समूह से अलग कर लिया है? वह तो खुद ही कह रही है कि कोई सुबूत नहीं हैं। नीरा राडिया के खिलाफ अफवाह फैलाने के लिए सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। वह खुद तमाम आपराधिक मामलों में संलिप्त होने की अभियुक्त हैं। तमाम एजेंसियां व सुप्रीम कोर्ट उसकी जांच कर रहे हैं। जो स्वयं एक अभियुक्त हो उसकी बात को राजा हरिश्चंद्र की वाणी समझना मूर्खता है|

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