Wednesday, February 15, 2012

यूपी में अपना दल ने बढ़ाई बड़े दलों की उलझन


इलाहाबाद की बारा विधानसभा सीट पिछली बार भाजपा के कब्जे में थी लेकिन इस बार कुछ भी हो सकता है। यहां बड़े दलों के उम्मीदवारों की मेहनत पर अपना दल भारी है। पिछले चुनाव में इस दल ने यहां के चुनावी समीकरण पलटे थे। इस बार भी ऐसी ही आशंकाएं जताई जा रही हैं। सिर्फ बारा ही नहीं, इलाहाबाद से लेकर वाराणसी तक दो दर्जन से अधिक सीटों पर यही स्थिति है जिसमें इस अपना दल के प्रत्याशियों ने बड़े नेताओं की बेचैनी बढ़ा दी है। कुछ तो अपने प्रतिबद्ध पटेल मतों से और कुछ इनके साथ अन्य जातियों के समीकरण बनाकर। संदेश साफ है-जीते तो जीते नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे। यही अपना दल की विशिष्टता है। अपने मतों को बिखरने न देना और इसके बूते दूसरों के समीकरण को छिन्न-भिन्न कर देना। पिछले चुनाव यानि 2007 में इस दल को एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी लेकिन 39 सीटों पर चुनाव लड़कर उसने दस फीसदी से अधिक वोट हासिल किए थे। इनमें जहां भी कम मतों से हार-जीत का फैसला हुआ, उसमें उलटफेर का कारण अपना दल उम्मीदवार ही रहे। पार्टी के वरिष्ठ नेता जवाहर लाल पटेल दावा करते हैं-इस बार हम सिर्फ उलटफेर ही नहीं करने जा रहे हैं। हम कई सीटों पर जीतेंगे भी। उनका इशारा रोहनियां से चुनाव लड़ रहीं अनुप्रिया पटेल, इलाहाबाद पश्चिम सीट पर चुनाव लड़ रहे अतीक अहमद, मंडि़याहू से चुनाव लड़ रहे मुन्ना बजरंगी की ओर है। रोहनिया पटेल बाहुल्य क्षेत्र है तो अतीक अहमद के इलाके में इस बार परिसीमन के बाद कई ऐसे क्षेत्र आ गए हैं, जिनमें पटेलों की संख्या अधिक है। पार्टी के लोगों की मानें तो बांदा, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, जौनपुर, फतेहपुर वाराणसी, चंदौली आदि कई जिलों में 45 सीटें ऐसी हैं जिनमें यह पार्टी वोटों का गणित बिगाड़ने में सक्षम है। 2002 में अपना दल गंगापुर की सीट जीतने में भी सफल रहा था। कमेरा समाज को न्याय दिलाने के लिए बना यह दल सोने लाल पटेल के जीवन काल से ही अपना मत प्रतिशत बढ़ाने की कोशिशों में जुटा हुआ है। 1996 के चुनाव में 155 सीटों पर लड़ने वाले इस दल के प्रत्याशियों में 154 की जमानत जब्त हो गई थी। मत भी मात्र दो फीसदी ही हासिल हो सके थे। 2002 में यह दल अवश्य चर्चा में आ गया जबकि इसने 223 उम्मीदवार उतारे लेकिन इसके तीन उम्मीदवार जीतने में सफल रहे। इस बार मतों का प्रतिशत 3.78 प्रतिशत रहा। 2007 में इस दल ने सिर्फ चुनिंदा सीटों यानी 39 सीटों पर ही प्रत्याशी उतारे और 10.49 फीसदी वोट हासिल कर लिए। सोने लाल पटेल की मौत के बाद संगठन बिखरने का खतरा था राष्ट्रीय महासचिव के रूप में उनकी पुत्री अनुप्रिया पटेल ने किसी भी तरीके से जीत या फिर अपनी हैसियत जताने का फलसफा अपनाया। इसलिए जहां दल ने बाहुबली और माफिया को टिकट देने से परहेज नहीं किया, वहीं अन्य दलों के नेताओं के लिए भी दरवाजे खोलकर रखे। दल ने बसपा से क्षुब्ध आधा दर्जन उम्मीदवारों को टिकट दिया है तो सपा से आये प्रत्याशियों की संख्या भी काफी है। इसके पीछे का उद्देश्य भी साफ है कि किसी भी तरह से मतों का प्रतिशत बढ़े। पार्टी के लचीलेपन को इस तरीके से भी समझा जा सकता है कि रोहनिया में अनुप्रिया पटेल का परचा भरते समय उनके साथ अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष हरिवंश सिंह भी मौजूद थे। पार्टी के एक नेता कहते हैं-हमने जहां दूसरी जातियों के लोगों को टिकट दिए हैं, वहां यदि थोड़ा-बहुत भी वोट हमारे पाले में बढ़ा तो परिणाम चौंकाने वाले होंगे।

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