Monday, February 27, 2012

आसान नहीं जीत की राह

आगरा दक्षिण विधानसभा क्षेत्र पुराना आगरा के नाम से जाना जाता है। यमुना नदी के किनारे का ऐतिहासिक महत्व का यह इलाका बाबर के आने के पूर्व (1525 से पहले) इब्राहीम लोदी के समय में आगरा कहलाता था। आज इस इलाके की तस्वीर बिगड़ी हुई है। सीधे कहें तो यह इलाका अब महज तंग गलियों का होकर रह गया है। इलाके की अनगिनत समस्याएं यह साफ बयां करती हैं कि आजादी के बाद से यहां चुने गए प्रतिनिधि विकास के नाम पर ईमानदार नहीं रहे। इस बार भी विकास के नाम पर वोट बटोरने की फिराक में प्रत्याशी हैं, लेकिन मतदाताओं को इनके वादे पर भरोसा नहीं है। मतदाताओं का कहना है कि सभी पार्टियां प्राय: एक जैसी हैं इसलिए वह मत उनको देंगे जो उनके मन के लायक होंगे। दूसरे शब्दों में मतदाता उन्हें पसंद करेंगे, जिनमें उनको जनता के प्रति जवाबदेही दिखेगी। फिलहाल छह प्रत्याशियों के बीच यहां टक्कर है। इस इलाके के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले यहां सिर्फ साइकिलें चलती थीं। इसको देखते हुए गलियों के लिए इतनी जगह छोड़ी गई, जिसमें साइकिलें आराम से आ जा सकें। अब इन्हीं गलियों में रिक्शा- बाइक भी चलती है। उस पर से आबादी तेजी से बढ़ी और उसके साथ अतिक्रमण भी। दर्जनों ऐसी गलियां हैं, जहां से पैदल निकलने को भी खासी मशक्कत करनी पड़ती है। बात यह भी नहीं कि राहगीरों में सिर्फ मोहल्ले के लोग शामिल हैं। यहां वस्त्र, सोना-चांदी, जूता, गल्ला, पेठा, मसाले आदि का व्यवसाय फैला है। वहीं ऐतिहासिक जामा मस्जिद, आगरा किला, आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन भी है, सो इलाके में बाहर से आने-जाने वाले लोगों का रेला लगा रहता है। नूरा दरवाजा, फव्वारा, पाय चौकी, धूलिया गंज, माईथान, सेठ गली, चित्ती खाना आदि में कई गलियां महज तीन से पांच फीट चौड़ी हैं। जामा मस्जिद से सटे रावतपाड़ा, मानपाड़ा, रोशन मोहल्ला, नमक की मंडी आदि इलाके में गंदगी का आलम यह है कि मुंह पर रूमाल रखे बगैर निकलना मुश्किल होता है। कचहरी घाट, बेलनगंज, भैरव नाला, काला महल, पथवारी, लुहार गली समेत कई ऐसे इलाके हैं, जहां की संकीर्ण गलियों में हमेशा जलभराव रहता है। इन इलाकों में लगने वाले जाम की तो बस पूछिए ही मत। इस बार भी प्रत्याशी इन वादों के साथ मैदान में हैं कि वह चुने गए तो बिजली, पानी, सड़क, सीवर, जाम आदि समस्याओं से लोगों को निजात दिलाएंगे। खास बात तो यह है कि ये वादे ही झूठे प्रतीत होते हैं। तंग गलियों का निराकरण, जूता फैक्टरियों के कचरे का निस्तारण, बिजली के तारों का मकड़जाल, विकास कार्य के लिए खुदाई की जगह का न होना, सीवर लाइन बिछाने के लिए जगह का अभाव आदि ऐसी बातें हैं कि विकास का नया या आधुनिक मॉड्यूल ही कोई करिश्मा जीत की राह कर सकता है। इस बात को बखूबी वोटर्स भी जानते हैं, इसलिए इस बार ऐसे प्रतिनिधि को चुनना चाहते हैं, जो चाहे किसी भी दल का हो, इससे कोई मतलब नहीं। मतलब इस बात से है कि विधायक बनने के बात उनकी आंखों में पानी इतना शेष रहे कि वह जनता के दुख दर्द को भुला न दे। पिछले तमाम प्रतिनिधि यह भुलाने में अव्वल रहे। बाकी बात रही जातीय समीकरण के आधार पर वोट के विभाजन की तो इस बार यह समीकरण प्रत्याशियों पर कहीं भारी पड़ रहा है। दरअसल नये परिसीमन ने पुराना समीकरण बिगाड़ दिया है। अब बड़ी संख्या में दलित व अल्पसंख्यक वोट कटकर छावनी विधानसभा क्षेत्र में चला गया है। उत्तरी विधानसभा क्षेत्र का सवर्ण वोट इस क्षेत्र से जुड़ा है। कई मोहल्ले में मुस्लिम मतदाताओं की अधिकता है। छावनी क्षेत्र के विधायक जुल्फिकार अहमद को दक्षिण क्षेत्र से खड़ा किया गया है, जबकि इस क्षेत्र के विधायक गुटियारी लाल दुबेश को छावनी क्षेत्र से चुनाव लड़ने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। कांग्रेस के प्रत्याशी नजीर अहमद, भाजपा के योगेंद्र उपाध्याय और सपा के सप्पो उस्मानी पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं समानता दल के बसीर अहमद और जेकेपी के केशो मेहरा भी चुनावी टक्कर में हैं। ये दोनों पूर्व विधायक रह चुके हैं। कुल मिलाकर पुराने पूर्वी और छावनी विधानसभा क्षेत्र के काफी बड़े हिस्से को काटकर तैयार किए गए दक्षिण विधानसभा क्षेत्र की भौगोलिक और सामाजिक स्थिति पुराने पश्चिम विधानसभा क्षेत्र की अपेक्षाकृत काफी बदल गई है। मुस्लिम बाहुल्य इस क्षेत्र में चार मुस्लिम प्रत्याशी हैं। माना जा रहा है कि यहां एक-एक वोट के लिए टक्कर होगी।

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