भारतीयता ही राष्ट्रीयता और राष्ट्रीयता ही मंत्रिधर्म है। इस विचारधारा में आस्था रखने वालो को कांग्रेस महामंत्री दिग्विजय सिंह के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए। उन्होंने इस अवधारणा से लोगों को जोड़ने के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के काम को आसान कर दिया है। जनसंघ की स्थापना 1951 में हुई थी। 1952 में पहले लोकसभा चुनाव में जनसंघ को आधे निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार भी नहीं मिले थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सारे देश में विशेष कर दक्षिण भारत में जनसंघ की मुखर आलोचना की। तब जनसंघ अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि नेहरू हमारे सबसे बड़े प्रचारक हैं। उन्होंने देशभर में हमारी पहचान बनाई है। नेहरू वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थे। उनके नेतृत्व में जिस सरकार ने 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगाया उसी ने 1962 में चीनी हमले के बाद संघ को गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने का निमंत्रण दिया। तबसे लेकर आज तक संघ को तीन बार प्रतिबंधित किया गया। पहले प्रतिबंध को उसने अपने संगठन की शक्ति के बल पर नाकाम किया। इसके बाद जब 1975 में इंदिरा गांधी ने प्रतिबंधित किया तो 1977 में संघ ने कांग्रेस को चुनावी शिकस्त देकर उसका मुकाबला किया। इसी प्रकार जब नरसिम्हा राव के कार्यकल में 1992 में प्रतिबंध लगा तो अदालत ने सारे आरोपों को निराधार करार देते हुए प्रतिबंध हटाने का आदेश दिया। आजादी के समय कांग्रेस के अलावा देश में समाजवादी और साम्यवादी पार्टियां ही थीं, जिनकी नीतियों में कोई मतभेद नहीं था। जनसंघ की स्थापना से एक वैचारिक भिन्नता मिली और नई राजनीतिक शक्ति का उदय हुआ। आज कांग्रेस से भी अधिक राज्यों में भाजपा सत्तासीन है। साम्यवादी विचारधारा के संगठन सभी क्षेत्रों में ध्वस्त हो चुके हैं। भ्रष्टाचार और कुशासन की पहचान बनने से हताश कांग्रेस को लगता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हौवा खड़ा कर वह देश के मुसलमानों के वोट के सहारे चुनावी नैया पार लगा लेगी। मुसलमानों में संघ के प्रति भय का जो कृत्रिम माहौल है उसको भड़काकर सभी गैर भाजपाई दल भयदोहन की राजनीति कर रहे हैं। अब तो मुसलमान भी इस भ्रामक प्रचार से ऊबने लगा है। बिहार में मुस्लिम गुमराह नहीं हुआ और गुजरात में भी निष्पक्ष व विकासोन्मुखी कामों ने उन्हें भ्रमित होने से रोका है। मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की छवि विकृत हो रही है। कांग्रेस में इससे बेचैनी है। आतंकी वारदातों में पाकिस्तानी हमलावरों के पकड़े जाने पर संतुलन बनाने के लिए हिंदू आतंकवाद का हौवा खड़ा किया जाता है। अब सोनिया गांधी की सुपर कैबिनेट हिंदू विरोधी सांप्रदायिकता विरोधी विधेयक पास कराना चाह रही है। यह आश्चर्य की बात है कि जो कांग्रेस दिग्विजय सिंह की राय को उनकी निजी राय कहकर अपना पल्ला झाड़ रही है वही एक ऐसा विधेयक लाने जा रही है जिसमें किसी संस्था अथवा व्यक्तिगत विचारों की अभिव्यक्ति या कृत्य के लिए गिरफ्तारी का प्रावधान है। दिग्विजय सिंह की नवीनतम सोच है संघ बम बनाने की फैक्टरी है। दिग्विजय सिंह को मध्य प्रदेश में दो स्थानों पर काले झंडे दिखाए गए। टीवी पर उन्हें जिस तरह भागते हुए दिखाया गया उससे उनके हिम्मती होने की छवि की चिंता उन्हें भी करनी चाहिए। जिस तरह उन्होंने बिना छानबीन के राजस्थान के पत्रकार को संघी घोषित कर उत्तेजना पैदा करने की कोशिश की और बाद में गलत साबित हुए वही हाल उनके बाकी आरोपों का भी है। केंद्र सरकार आरोपों के संबंध में छानबीन में बड़ी तेजी दिखाती है। क्या उसे दिग्विजय सिंह से संघ को बम बनाने की फैक्ट्री बताने की जानकारी नहीं लेनी चाहिए? वह आतंकी घटनाओं में संघ का हाथ होने का दावा करते हैं, लेकिन जानकारी नहीं देते। जिन्हें बेवजह फंसाया जा रहा है उनके खिलाफ प्रतिनिधिमंडल को प्रधानमंत्री से मिलवाते हैं। प्रत्येक विस्फोट के बाद जांच एजेंसियां जिस दिशा में सक्रिय होती हैं उसके विपरीत बयान देना दिग्विजय सिंह का एकमात्र कार्यक्रम रहता है। अब तो वह भ्रष्टाचार के आरोप में पद से हटाए गए अथवा जेल में डाले गए लोगों की भी सार्वजनिक रूप से वकालत कर रहे हैं। दिग्विजय सिंह की इन हरकतों से मनमोहन सिंह की सरकार को परेशान होना चाहिए न कि हिंदुत्व के प्रति निष्ठावान लोगों को। कांग्रेसी तो परेशान हैं इसमें कोई संदेह नहीं है, क्योंकि अपने भावी प्रधानमंत्री के जिस चमत्कारी संचालन से उनको कुछ आस बंधी है उसे वह धूमिल करते जा रहे हैं। इसलिए जो लोग यह चाहते हैं कि देश की व्यवस्था का संचालन समाज को भय, भूख और भ्रष्टाचार से मुक्त करने वालों के हाथ में आना चाहिए, उन्हें दिग्गी राजा का अभिनंदन करना चाहिए। वह उसी काम में लगे हुए हैं। जहां तक संघ का सवाल है वह ऐसे सभी कपोकल्पित आरोपों के बाद समाज में और अधिक पैठ बनाने के लिए अनुकूलता पाता जा रहा है। (लेखक पूर्व सांसद हैं).
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