यदि यह सच है कि सॉलिसिटर जनरल के त्यागपत्र और रेल हादसे के कारण केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रस्तावित फेरबदल टाल दिया गया तो इसका मतलब है कि केंद्र सरकार को इस बारे में कुछ सूझ नहीं रहा कि वह अपनी समस्याओं का समाधान किस तरह करे? सॉलिसिटर जनरल के त्यागपत्र के लिए वह कपिल सिब्बल जिम्मेदार हैं जिन्हें प्रधानमंत्री काबिल मंत्री का दर्जा देते हैं। एक समय आम जनता भी उन्हें काबिल मानती थी, लेकिन जबसे उन्होंने यह महान खोज की कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में शून्य राजस्व हानि हुई तबसे उनकी काबिलियत को लेकर संदेह पैदा हो गया है। उनका ताजा कारनामा तो उन्हें गहन संदेह के घेरे में खड़ा करता है। उन्होंने रिलायंस कम्युनिकेशन पर लगाए गए 50 करोड़ रुपये के जुर्माने को जिस तरह पांच करोड़ कर दिया उसका औचित्य समझना कठिन है। एक मंत्री के रूप में वह किसी कंपनी को इतनी रियायत देने में सक्षम हो सकते हैं, लेकिन यह बताया जाना चाहिए कि यह मेहरबानी किस आधार पर की गई? हालांकि कपिल सिब्बल ने इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की, लेकिन वह संदेह दूर करने में नाकाम रहे। उनकी मानें तो इस संदर्भ में बदले की नीयत से याचिका दायर की गई है। हो सकता है कि वास्तव में ऐसा हो, लेकिन आखिर उन्होंने किस नीयत से 50 करोड़ का जुर्माना पांच करोड़ कर दिया? हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर उन्हें राहत दे दी, लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि अदालत ने उनके कृत्य को सही करार दिया हो। कपिल सिब्बल की तरह मुरली देवड़ा कभी काबिल मंत्री की उपाधि से नहीं नवाजे गए, लेकिन उनकी छवि साफ-सुधरी रही। पिछले दिनों उन्होंने अपने हाथों अपनी छवि गिरा ली। वह बिना पूछे ही यह बताने लग गए कि स्पेक्ट्रम घोटाले में फंसी लूप टेलीकॉम का एस्सार समूह से कोई लेना-देना नहीं है। यह अच्छी बात है कि उन्होंने स्वेच्छा से केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटने की पेशकश कर दी है, लेकिन यह तो प्रधानमंत्री को ही बताना होगा कि उनके मंत्री ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं? मंत्रियों का ऐसा आचरण यही बताता है कि प्रधानमंत्री का अपने सहयोगियों पर ही नियंत्रण नहीं है। यही नहीं, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले और देवास-एंट्रिक्स सौदे ने तो यह भी बताया था कि वह प्रधानमंत्री कार्यालय को भी संभाल नहीं पा रहे हैं। जबसे ममता बनर्जी ने प. बंगाल का मुख्यमंत्री पद संभाला है तबसे रेल मंत्रालय खुद मनमोहन सिंह देख रहे हैं। कालका मेल हादसे में मारे गए लोगों की मौतों के लिए नैतिक और आधिकारिक रूप से वही जिम्मेदार हैं। यदि मंत्रिपरिषद के आगामी फेरबदल में रेल मंत्रालय तृणमूल कांग्रेस के पास ही बना रहा तो एक तरह से यह मंत्रालय ममता बनर्जी द्वारा ही शासित होगा और यदि ऐसा हुआ तो रेल सुरक्षा की अनदेखी होते रहना तय है। मनमोहन सिंह कदम-कदम पर समझौता करने वाली गठबंधन सरकार चलाने के लिए मजबूर हो सकते हैं, लेकिन देश की जनता को जान जोखिम में डालकर यात्रा करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। कालेधन की जांच के लिए विशेष जांच दल के गठन के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर केंद्र सरकार को कोई जवाब देते नहीं बन रहा है। यह निर्णय केंद्रीय सत्ता की साख पर करारा आघात है। इसके पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि न्यायपालिका ने एक तरह से कार्यपालिका के काम को अपने हाथ में लिया हो। इस पर आश्चर्य नहीं कि कुछ संविधानविद् सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं, लेकिन यह सरकार को ही बताना है कि वह अदालत को यह भरोसा क्यों नहीं दिला सकी कि कालेधन की जांच में कोई कोताही नहीं बरती जा रही है? केंद्र सरकार इससे भली तरह अवगत थी कि उसकी विभिन्न एजेंसियों को सुप्रीम कोर्ट की फटकार सुननी पड़ रही है, लेकिन बावजूद इसके वह कालेधन की जांच गंभीरता से करने का दिखावा ही करती रही। इसके साथ ही यह भी तर्क देती रही कि यह काम रातोंरात नहीं हो सकता। खुद प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके पास जादू की कोई छड़ी नहीं है और यूरोप में भी 25 फीसदी कालाधन है। इस तरह के बयानों का एक अर्थ यह था कि काले धन की जांच में इसी तरह हीला-हवाली होती रहेगी। मीडिया की नजर में हीला-हवाली अन्य अनेक मामलों में भी बरती जा रही है, लेकिन प्रधानमंत्री को मीडिया के इस आकलन पर आपत्ति है। क्या वह यह चाहते हैं कि उनकी नाकामियों के बावजूद मीडिया उनके गुण गाए? ऐसा लगता है कि वह आम जनता की भावनाओं से अवगत नहीं, क्योंकि उनका रवैया तो हांस क्रिश्चियन एंडरसन की कालजयी कहानी द इंपरर्स न्यू क्लोथ के उस राजा से मेल खाता है जिसे कुछ चतुर व्यक्ति यह यकीन दिलाकर बिना कपड़े के नगर में घुमाते हैं कि उसने बहुत शानदार वस्त्र पहन रखे हैं। उसके मंत्री और जनता भी भय के कारण यह नहीं कह पाती कि वह वस्त्रहीन है। बेहतर हो कि प्रधानमंत्री यह समझें कि मंत्री बदलने से कुछ नहीं होने वाला, क्योंकि ज्यादा जरूरत इसकी है कि वह खुद में बदलाव लाएं।
पृष्ठ संख्या 08, दैनिक जागरण (राष्ट्रीय संस्करण), 12 जुलाई, 2011
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