केंद्रीय गृह मंत्रालय खुद अपने बनाए नियम तोड़ रहा है। निचली अदालत से बाद में सजा पाए अपराधियों की याचिकाएं निपट गईं, पहले सजा पाए इंतजार ही कर रहे हैं। दरअसल, फांसी की सजा वाले कैदियों की दया याचिकाओं को निपटाने के लिए मंत्रालय ने नियम बनाया था कि सुनवाई अदालत से सजा होने के आधार पर याचिकाएं निस्तारित की जाएंगी, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। हैरानी की बात यह है कि संसद हमले के आरोपी मो. अफजल व दो अन्य के मामले तो गृहमंत्रालय के स्तर पर ही विचाराधीन हैं। एक याची तो डेढ़ दशक से ज्यादा समय से जेल में अपनी मौत का इंतजार कर रहा है। मंत्रालय ने सुभाष चंद्र अग्रवाल की आरटीआइ अर्जी के जवाब में दया याचिकाओं से संबंधित मामलों की जो सूची दी है, उसको देखने पर स्पष्ट होता है कि मंत्रालय अपने ही बनाए नियम तोड़ रहा है। मंत्रालय के मुताबिक, राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने इसी साल 8 मई को दिल्ली में 1995 में हुए बम विस्फोट कांड में टाडा अदालत से 25 अगस्त 2001 को फांसी की सजा पाए देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर और हत्या के मामले में असम के कामरूप जिले की अदालत द्वारा अगस्त 1997 में दोषी करार महेंद्र नाथ दास की दया याचिकाएं खारिज कर दी हैं। जबकि इन दोनों से कई साल पहले निचली अदालत से सजा पाए लोगों की याचिकाएं लंबित हैं। इनमें सबसे पुराना मामला उप्र के गुरमीत सिंह का है। 17 अगस्त 1986 में हुए सामूहिक नरसंहार मामले में सत्र न्यायालय ने गुरमीत को 20 सितंबर 1992 में फांसी की सजा दी थी। इसी प्रकार हरियाणा में 9 जून 1993 को हुए सामूहिक हत्याकांड में निचली अदालत ने धर्मपाल को 5 मई को फांसी दी थी। उसकी याचिका भी 11 साल से राष्ट्रपति के पास लंबित है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कातिलों को सुनवाई अदालत ने 28 जनवरी 1998 में फांसी की सजा सुनाई थी, उनकी दया पांच साल से लंबित है। ऐसे ही कई अन्य मामले हैं.
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