राहुल गांधी की उत्तर प्रदेश में सक्रियता से सत्तारूढ़ दल बसपा से लेकर सपा-भाजपा तक अगर बेचैन हैं तो उसकी वजह भी है। इन तीनों दलों को यह डर समा गया है कि अगर सूबे में राहुल गांधी अपने पांव जमाने में कामयाब हुए तो उनका परंपरागत वोट बैंक दरक सकता है। यही वजह है कि अलीगढ़ में कांग्रेस की किसान पंचायत के अगले दिन ही राहुल की काट की तरकीब बताने को खुद मायावती को अपने पदाधिकारियों की बैठक लखनऊ में बुलानी पड़ गई तो सपा-भाजपा को भी अपने काडर से जनता को कांग्रेस की सच्चाई बताने के नाम पर राहुल के खिलाफ मोर्चा खोलने का आह्वान करना पड़ गया है। बसपा के डर की वजह : बसपा को राहुल गांधी से जो डर सता रहा है, उसकी 3 वजहें हैं। सबसे बड़ी वजह अपने दलित वोट को लेकर है। राहुल के किसी दलित के घर रुकने, उसके यहां भोजन करने को बसपा भले नाटक करार दे लेकिन इसके दूरगामी प्रभाव को अच्छी तरह महसूस करती है। बसपा नेता ऑफ द रिकार्ड यह मानते हैं कि फिलवक्त यूपी की जो राजनीतिक स्थिति है उसमें अगर कोई दलित वोट में सेंध लगा सकता है तो वह कांग्रेस ही है। बसपा को राहुल से खतरे की दूसरी बड़ी वजह यह है कि अगर यूपी में कांग्रेस मजबूत हुई तो उसका ब्राह्मण वोट छिटक सकता है। बसपा की तीसरी चिंता मुस्लिम वोट को लेकर है। अब तक मुसलमानों के पास (विधानसभा चुनाव के संदर्भ में) सपा के इतर सिर्फ बसपा का ही विकल्प था। बसपा नेतृत्व को लगता है कि अगर कांग्रेस मजबूत हुई तो मुस्लिम मतदाताओं के पास एक विकल्प बढ़ जाएगा। सपा की बेचैनी की वजह : राहुल गांधी को लेकर बसपा जितनी आक्रामक है, उससे कम सपा भी नहीं है। यूपी में कांग्रेस के मजबूत होने से सपा को दो बड़े नुकसान दिखाई पड़ रहे हैं। सपा का जोर इस बात पर ही है कि मुस्लिम मतदाताओं के बीच यह बात किसी भी कीमत पर स्थापित की जाए कि यूपी में कांग्रेस बहुत कमजोर है। अगर उसको वोट दिया गया तो भाजपा सत्ता में आ सकती है। सपा को कांग्रेस से दूसरा डर कुर्मी सहित कुछ अन्य पिछड़ी जातियों को कांग्रेस के पक्ष में लामबंद होने से है। लोकसभा चुनाव में यादव वोट बैंक के मुकाबले पिछली बार कुर्मी मतदाताओं की पहली पसंद कांग्रेस थी। बेनी प्रसाद वर्मा को इसका श्रेय मिला। भाजपा की उम्मीदों पर सवालिया निशान : भाजपा दो बातों को लेकर परेशान है। यूपी की राजनीति में कांग्रेस के सीन से बाहर हो जाने के बाद भाजपा शहरी मतदाताओं की पहली पसंद हुआ करती थी। भाजपा को लगता है कि यदि यहां कांग्रेस फिर से खड़ी हो गई तो शहरी वोटरों के बीच उसका एकछत्र राज्य खतरे में पड़ जाएगा। दूसरी परेशानी यह कि भाजपा नेताओं ने उम्मीद पाल रखी थी बसपा का 5 वर्ष का शासन देखने बाद ब्राह्मण मतदाता पार्टी में वापस होंगे। अब उसे डर है कि कांग्रेस के मजबूत होने पर ब्राह्मण अपने मूल घर वापस हो सकते हैं।
नदीम, पृष्ठ संख्या 04, दैनिक जागरण (राष्ट्रीय संस्करण) , 12 जुलाई, 2011
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