Monday, July 18, 2011

गोरामुमो बनाम गजमुमो

पहहाड़ में अलग राज्य को लेकर मांग कई वर्षो से उठ रही थी। लेकिन इसमें 1980 के बाद जान आई। ऐसा नहीं है कि पूर्व आंदोलन नहीं हुए लेकिन गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के गठन के बाद हिल्स में हुए आंदोलन आज भी लोगों के जेहन में है। उस समय विमल गुरुंग सुभाष घीसिंग के कैबिनेट के महत्वपूर्ण सदस्य थे। यही वजह थी कि उस समय अस्त्राधारी आंदोलन ने हिल्स में लोगों को एकजुट कर दिया। इस आंदोलन के जो लोग भी साक्षी हैं, वह आज भी अस्त्रधारी आंदोलन के बारे में बताते हैं कि आंदोलन के दौरान समूचा हिल्स गर्म हो गया था और भारी हिंसा हुई थी। इसका नतीजा रहा कि पर्यटक यहां से भाग खड़े हुए और हिल्स की पूरी व्यवस्था चौपट हो गई। इस आंदोलन को आज भी कई लोगों की जान जाने और करोड़ों रुपए की संपति के बर्बादी के रूप में याद किया जाता है। इसके बाद 23 अगस्त 1988 में दार्जिलिंग गोरखा पार्वत्य परिषद का गठन हुआ। इसका परिणाम रहा कि सरकारों को गोरामुमो के सामने झुकना पड़ा और अंत में दार्जिलिंग गोरखा पार्वत्य परिषद का गठन हुआ। घीसिंग को परिषद में शीर्ष पद पर बैठाया गया। उन्होंने कुर्सी संभालते समय रस्म निभाई और विकास के नारे लगाए। काफी पैसा आया, लेकिन जिस विकास की उम्मीद थी वह नहीं हो पाया। गोरखालैंड का मुद्दा धरा रह गया और लोगों में अलग राज्य की हसरत फिर हिलोरे लेने लगी। समय बीता और फिर गोरखालैंड की मांग ने जोर पकड़ा। इस बीच सात अक्टूबर 2007 को गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का उदय हुआ और विमल गुरुंग इसके अध्यक्ष बने। एक बार फिर अलग राज्य की मांग हुई और विमल ने लोगों को एकजुट किया। इसी दौरान 25 जुलाई 2008 को गोजमुमो के नारी मोर्चा की कार्यकर्ता प्रमिला शर्मा की हत्या कर दी गई और इसके विरोध में पूरा पहाड़ उबल गया। परिणाम रहा कि बढ़ते दबाव को देखते हुए घीसिंग ने हिल्स को छोड़ना उचित समझा और दूसरे दिन ही पहाड़ छोड़ दिया। इसके बाद भी अलग राज्य का आंदोलन चलता रहा और गोरामुमो प्रमुख व गोजमुमो प्रमुख एक-दूसरे के धुर विरोधी के तौर पर पहचाने जाने लगे। दोनों दल के आपसी खींचतान में कार्यकर्ताओं की भी जान गई और डुवार्स में गोजमुमो कार्यकर्ता अकबर लामा की हत्या वर्ष 2008 में कर दी गई। इसके बाद आठ फरवरी 2011 को सिब्चू गोलीकांड में तीन गोजमुमो कार्यकर्ताओं की मौत हो गई थी और विधानसभा चुनाव के दौरान गोजमुमो कार्यकर्ता रबिन राई की सोनादा में खुकरी से हत्या कर दी गई। गोरखालैंड के आंदोलन कई लोगों की जान चली गई। सही मायने में हिल्स को कई दिनों बाद गोरामुमो व गोजमुमो की लड़ाई से मुक्ति मिली है और विकास के रास्ते खुले हैं।

No comments:

Post a Comment