Monday, September 17, 2012

नरम पड़े केंद्र के सहयोगी



ठ्ठ जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) और पेट्रो कीमतों में वृद्धि के विरोध में सहयोगियों ने सरकार के खिलाफ तलवारें भले निकाल ली हों, लेकिन रविवार को उनके नरम पड़े तेवरों से वह पूरी तरह बेफिक्र दिखाई दी। सरकार को भरोसा है कि सहयोगियों और विपक्ष के कड़े तेवरों के बावजूद मौजूदा मुद्दों को लेकर उस पर कोई खतरा नहीं है। तृणमूल की तरफ से सरकार न गिराने के संकेतों और इस बारे में सपा के भी दो टूक इन्कार के बाद उसके माथे का पसीना और कम ही हुआ है। सरकार की बेफिक्री का आलम यह है कि उसकी प्रमुख सहयोगी तृणमूल कांग्रेस के मंत्रियों के इस्तीफे के मिल रहे संकेतों को भी वह गंभीरता से नहीं ले रही है। यह बात अलग है कि सरकार व कांग्रेस के रणनीतिकार उससे पहले तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी को एक बार मनाने का प्रयास कर सकते हैं। बात बन गई तो ठीक, नहीं तो उन्हें इस बात से भी संतोष है कि अपने मंत्रियों के इस्तीफे के बाद भी ममता संप्रग सरकार को बाहर से समर्थन देती रहेंगी। शनिवार को इसका संकेत खुद ममता भी दे चुकी हैं। जबकि, द्रमुक जैसे सहयोगी से किसी कड़े फैसले की आशंका नहीं है। गौरतलब है कि रिटेल एफडीआइ के अलावा डीजल में 5 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि और सब्सिडी वाले छह रसोई गैस सिलेंडर देने के निर्णय वापस न लेने पर सरकार को 72 घंटे का अल्टीमेटम देते हुए ममता ने कड़े फैसले लेने की बात कही थी। अल्टीमेटम की अवधि खत्म होने के बाद ममता मंगलवार को अपना फैसला सुनाएंगी। वामपंथियों समेत छह दलों से हाथ मिलाकर 20 सितंबर को सरकार के खिलाफ आंदोलन करने जा रही सपा को लेकर भी सरकार के माथे पर शिकन नहीं है। सपा महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी एफडीआइ, डीजल मूल्यवृद्धि और विनिवेश के फैसलों के खिलाफ है, लेकिन वह इसके लिए सरकार से समर्थन वापस लेकर सांप्रदायिक ताकतों को मदद करने नहीं जा रही है। उन्होंने यह भी जोड़ा, हम सरकार के गलत फैसलों का साथ नहीं देंगे। देश बड़ा है, सरकार नहीं। कोई सहयोगी अगर कत्ल करेगा तो विरोध तो होगा ही। बसपा प्रमुख मायावती ने डीजल मूल्य वृद्धि, सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडरों को कम करने और एफडीआइ का विरोध तो जरूर किया है, लेकिन सरकार से समर्थन वापसी पर फैसला 10 अक्टूबर को लेने का एलान किया है। इन स्थितियों के बीच, अब सारा मामला ममता के मंगलवार के फैसले पर टिक गया है। सूत्रों की मानें तो सरकार ने पेट्रो कीमतों की वृद्धि और एफडीआइ जैसे मामलों में सहयोगियों के संभावित विरोध का आकलन पहले ही करके ये फैसले लिए हैं। उसे पता था कि वे इसका समर्थन नहीं करेंगे, लेकिन कोई सहयोगी या फिर विपक्षी दल देश में अभी चुनाव नहीं चाहता। लिहाजा, ये फैसले वापस नहीं होंगे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह शनिवार को खुद भी इन फैसलों को जरूरी बताते हुए वापस न लेने का संकेत दे चुके हैं। (पेज-3 भी देखें)

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