Saturday, September 17, 2011

कल्याण के झटके से सकते में भाजपा

 उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह को साथ लाने की भाजपा नेतृत्व की मुहिम को करारा झटका लगा है। बेहद गुपचुप ढंग से शुरू हुई रणनीति परवान चढ़ने से पहले ही ध्वस्त हो गई। बात टूटने के पीछे कल्याण सिंह का अडि़यल रुख सबसे ज्यादा जिम्मेदार रहा। इस मामले के उजागर होने से भाजपा सकते में है, क्योंकि उसकी कोशिश पहल के परवान न चढ़ने पर भीतर ही भीतर दबा देने की थी, लेकिन मुखर हुए कल्याण ने मंसूबों पर पानी फेर दिया। यूपी में भाजपा को पूरी ताकत से चुनावी मैदान में उतारने के लिए पार्टी ने कल्याण को भी साथ लेने का मन बनाया था। शीर्ष नेतृत्व ने इस कवायद की शुरुआत बेहद संभलकर की थी। उसने अपने नेताओं को मोर्चे पर लगाने के बजाए गैर राजनीतिक दूत के जरिए कल्याण का मन टटोला था। इससे कल्याण भी अपनी अहमियत समझ गए और उन्होंने कुछ ज्यादा ही मांग रख दी। हालांकि, भाजपा नेतृत्व ने उनकी ताकत और क्षमता पर कुछ सीटें देने की पेशकश की थी। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने पार्टी से बाहर गए नेताओं को साथ लाने की मुहिम के तहत ही कल्याण का दांव भी खेला था। कल्याण को लेकर संघ का भी रुख नरम रहा है। शुरुआत में तो इस मुहिम के बारे में पार्टी के बड़े नेताओं तक को भनक नहीं थी, लेकिन जब कुछ को पता लगा तो विरोध भी हुआ। भाजपा नेतृत्व को झटका इससे नहीं लगा कि उसकी पहल परवान नहीं चढ़ सकी। बल्कि इसके उजागर होने से वह ज्यादा सकते में है। दरअसल, पूर्व में कल्याण भाजपा की इतनी फजीहत करा चुके हैं कि पार्टी में उनका काफी विरोध है। हालांकि, भाजपा आलाकमान को लगता था कि कल्याण सिंह भी अपने भविष्य के लिए फिर पार्टी के साथ जुड़ जाएंगे

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