Tuesday, September 27, 2011

कश्मीर में सियासत करने नहीं, दर्द जानने आया हूं

 श्रीनगर मेरी जड़ें भी यहीं कश्मीर में हैं। मैं भी कश्मीरी ही हूं। आप लोगों का दु:ख और तकलीफ भी मेरी ही है। मैं यहां किसी प्रकार की सियासत करने नहीं आया। इन भावुक शब्दों के साथ कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने सोमवार को यहां कश्मीर विश्वविद्यालय में चुनिंदा छात्रों के साथ अपना संवाद बनाने का प्रयास किया। वर्ष 2009 के बाद दूसरी बार कश्मीर पहुंचे कांग्रेस के युवराज का युवाओं से यह पहला सीधा संवाद था जो विश्वविद्यालय के कनवोकेशन हॉल में हुआ। हालांकि वह बीते साल भी राज्य के दौरे पर आए थे, लेकिन तब उनकी यात्रा सिर्फ लद्दाख तक ही सीमित रही थी। कांग्रेसी सांसद ने हर सवाल को मुस्कुराकर झेला। जब एक छात्र ने कहा कि आपको क्या पता है कि अपने मां-बाप को गंवाने का दर्द क्या होता है, मैं पांच साल का था जब कश्मीर में जारी हिंसा ने मुझसे मेरे बाप का साया छीन लिया। हम कश्मीरियों को रोज तलाशी, नाकेबंदी झेलनी पड़ती है। सिर्फ कश्मीर में ही नहीं कश्मीर से बाहर भी कश्मीरियों को कैसे तंग किया जाता है, यह तो आपको पता ही होगा। एक अन्य युवक ने कहा कि आप पिछले साल कहां थे जब यहां सड़कों पर कश्मीरी नौजवानों को सुरक्षाबलों द्वारा पीटा जा रहा था और उस दौरान करीब 120 नौजवान मारे गए थे। इस पर राहुल गांधी ने कहा कि मैं जानता हूं कि अपनों को गंवाने का दर्द क्या होता है। मैं 14 साल का था जब मेरी दादी शहीद हुई और उसके सात साल बाद मेरे पिता को भी अपनी जान देनी पड़ी। राहुल हजरत बल दरगाह भी पहुंचे। पंचायतों के युवा पंच-सरपंचों के सम्मेलन को संबोधित करने के लिए शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कांफ्रेंस सेंटर पहुंचे। उन्होंने कहा कि मजबूत पंचायती राज व्यवस्था ही सही मायनों में एक मजबूत भारत और एक मजबूत लोकतंत्र की रीड की हड्डी है

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