Friday, September 30, 2011

जिलों की बिसात पर जातीय वोटों की चाल


पश्चिमी उप्र में चुनावी समीकरणों को अपने पक्ष में करने को अगर बसपा सरकार ने तीन नये जिलों के गठन की घोषणा की तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं। दरअसल वोटों की जुगत में सूबे में नये जिलों के गठन का खेल अब पुराना हो चुका है। इसे सूबे की सियासत में गठबंधन युग की देन माना जाता है। शायद यही वजह है 1994 से अब तक राज्य में 20 जिले बढ़ चुके हैं। यह सिलसिला थमने वाला भी नहीं है। अलग-अलग इलाकों से नये जिलों के गठन की मांग उठ रही और राजनीतिक दल उन्हें अपनी सरकार आने पर अमली जामा पहनाने का वादा कर रहे हैं। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत से सत्ता हासिल के करीब एक वर्ष बाद मुख्यमंत्री मायावती ने एटा जिले के एक हिस्से को अलग कर 15 अप्रैल 2008 को बसपा के संस्थापक कांशीराम के नाम पर कांशीराम नगर बनाया था। इस पर प्रमुख विपक्षी दल सपा ने यह कह कर आपत्ति जताई थी कि कांशीराम का उस क्षेत्र से कोई लेना देना नहीं रहा है। मायावती ने दलित राजनीति में उनके योगदान का जिक्र करते हुए इस कदम के जरिए वोट बैंक को पुख्ता करने की कोशिश की थी। बीते वर्ष एक जुलाई को छत्रपति साहूजी महराज नगर नाम से बने सूबे के 72वें जिले का मामला भी खासा विवादित रहा। मायावती जब 2003 में मुख्यमंत्री थीं, तब उन्होंने यह जिला बनाया था और उस समय विपक्ष ने यह कहकर इसका विरोध किया था कि अमेठी का एतिहासिक महत्व है। इसे देखते हुए जिले का नाम अमेठी ही रखा जाए। उसी साल सत्ता बदल गई। मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बन गए और उन्होंने नवम्बर 2003 में छत्रपति शाहू जी महाराज के नाम से जिले के गठन की अधिसूचना को निरस्त कर दिया। इस मामले में कोर्ट के फैसले के आधार पर पिछले साल नये सिरे से छत्रपति शाहूजी महाराज जिले का गठन किया गया। मायावती ने पहले मुख्यमंत्रित्वकाल में वर्ष 1995 में उधम सिंह नगर और अंबेडकरनगर को नया जिला बनाया था। उधम सिंह नगर अब उत्तराखंड में है। फैजाबाद से काट कर बनाए गए अंबेडकरनगर जिले पर भी सपा ने खासा एतराज जताया था। सपा की मांग थी कि समाजवादी चिंतक डा. राममनोहर लोहिया की जन्मस्थली होने के कारण उसका नाम लोहिया पर होना चाहिए। वैसे मुलायम सिंह यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में 1994 में कुशीनगर व संत रविदास नगर और 1995 में महोबा के नाम से नया जिला बनाया था। संत रविदास नगर के मुख्यालय को लेकर खासा विवाद छिड़ा था। मायावती ने सर्वाधिक जिले दूसरे शासनकाल में बनावाए। वर्ष 97 में उन्होंने कौशाम्बी, ज्योतिबा फूलेनगर, महामायानगर (हाथरस), चंदौली, गौतमबुद्धनगर, श्रावस्ती, संतकबीरनगर, औरैया, बागपत व कन्नौज को जिला बनावाया। यही नहीं उन्होंने सहारनपुर, मिर्जापुर व बस्ती मंडल का सृजन भी किया था। बाद में मुलायम सरकार ने बागपत व कन्नौज को छोड़कर बाकी सभी को समाप्त कर दिया। मामला कोर्ट में पहुंचा। उसने इसे विभेदकारी करार देते हुए बसपा सरकार के फैसले पर मुहर लगाई। मजबूरन सपा सरकार को इन जिलों और मंडलों को बहाल करना पड़ा।

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