Tuesday, December 28, 2010

चार साल में एक बिंदु पर ही काम हुआ

उत्तराखंड सरकार से समर्थन वापसी के बाद पत्रकारों से मुखातिब उक्रांद अध्यक्ष त्रिवेंद्र सिंह पंवार ने विस्तार से दल की नाराजगी का खुलासा किया। उन्होंने कहा कि दल ने भाजपा सरकार को नौ बिंदुओं पर सशर्त समर्थन दिया था। नौ में एक बिंदु भू-अध्यादेश पर आंशिक रूप से काम हुआ, वह भी उक्रांद कोटे के कैबिनेट मंत्री के प्रयासों से संभव हो सका। भाजपा सरकार से समर्थन वापसी के अपने तर्क के समर्थन में पंवार ने नौ बिंदु गिनाए। उन्होंने कहा कि समर्थन का पहला बिंदु गैरसैंण राजधानी को लेकर था। भाजपा ने विश्वास दिलाया था कि गैरसैंण को राज्य की राजधानी बनाने के लिए जनहित में कार्य किया जाएगा, लेकिन यह मुद्दा दरकिनार किया गया। दूसरा बिंदु विकल्पधारियों की वापसी को लेकर था। समर्थन देते समय राज्य में 18000 विकल्पधारी थे। उक्रांद के दबाव के बावजूद सिर्फ 6000 विकल्पधारियों को ही वापस भेजा जा सका। अभी हजारों विकल्पधारी राज्य में मौजूद हैं, उनकी वापसी के लिए कदम नहीं उठाए जा रहे। तीसरा बिंदु राज्य में अनुच्छेद 371 लागू करने को लेकर था। इस बिंदु के तहत भू-कानून में कुछ संशोधन हो पाया। जिससे राज्य में भूमि की अनियंत्रित खरीद-फरोख्त पर कुछ हद तक रोक लग सकी, लेकिन हिमाचल प्रदेश की तरह धारा 371 राज्य में लागू नहीं हो पाई। भू कानून लागू करने में जिस सीमा तक भी सफलता मिली, वह उक्रांद कोटे के मंत्री की कोशिशों की वजह से संभव हुआ। चौथा बिंदु पर्वतीय क्षेत्र में रोजगार नीति को लेकर था। राज्य सरकार इस मामले में पूरी तरह फेल हुई है। पांचवां बिंदु पहाड़ में उद्योगों की स्थापना को लेकर है। इस मामले में भी सरकार फेल साबित हुई है। छठा बिंदु परिसीमन में पहाड़ के साथ हुए अन्याय को लेकर है, जिसमें पहाड़ की छह विधानसभा सीटें कम कर दी गईं थी। सरकार ने इस मामले में भी कदम नहीं उठाया। सातवां बिंदु परिसंपत्तियों के बंटवारे का है। दस साल बाद भी उत्तराखंड की परिसंपत्तियां बंधक बनी हुई हैं। सरकार इन्हें वापस लाने का प्रयास करती हुई दिखाई नहीं दे रही है। आठवां बिंदु मूल निवासी को स्थायी निवास प्रमाण पत्र की अनिवार्यता से मुक्त रखने को लेकर था, इसमें भी सरकार ने प्रयास नहीं किए। नौवां बिंदु आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण की समय सीमा 1989 करने के लिए था। सरकार ने यह मांग स्वीकार तो की, लेकिन इस क्षेत्र में काम कुछ नहीं हुआ। पंवार का कहना है कि सरकार जनहित के कार्य करने में पूरी तरह विफल रही।



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