कथित कट्टर हिंदू संगठनों को लश्करे तैयबा से भी अधिक खतरनाक बताने वाली राहुल गांधी की टिप्पणी पर कांग्रेस जिस तरह सफाई देने को मजबूर हुई और इसके तहत उनकी टिप्पणी का एक नया मतलब समझाने की कोशिश की जा रही है उससे यह स्वत: साबित हो जाता है कि कांग्रेस महासचिव ने ऐसा कुछ कह दिया जो या तो उन्हें कहना नहीं चाहिए था या फिर जिसे सार्वजनिक नहीं होना चाहिए था। जुलाई 2009 में अमेरिकी राजदूत के समक्ष हिंदू संगठनों के बारे में व्यक्त की गई राहुल गांधी की राय पर कांग्रेस कितनी भी लीपापोती करे उस क्षति की भरपाई होना कठिन है जो विकिलीक्स के जरिये उनके निजी विचार सार्वजनिक होने से होती दिख रही है। राहुल गांधी की इस राय से इसकी भी पुष्टि हो रही है कि देश-दुनिया की समस्याओं के बारे में हमारे नेता सार्वजनिक रूप से जो कुछ कहते हैं उसमें उनके वास्तविक विचार निहित नहीं होते। या तो उनमें सच कहने का साहस नहीं होता या फिर सच्चाई छिपाना उनके लिए कहीं अधिक हितकारी होता है। यह निराशाजनक है कि राहुल गांधी भी उन नेताओं की जमात में खड़े नजर आ रहे हैं जो एक ही मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से कुछ कहते हैं और व्यक्तिगत रूप से कुछ और। यदि ऐसा नहीं है तो पहले राहुल गांधी की टिप्पणी को लेकर साजिश का संदेह जताने वाली कांग्रेस बाद में सफाई देने पर क्यों उतरी? सच तो यह है कि राहुल की टिप्पणी में ऐसा कुछ है ही नहीं कि किसी को उसका अर्थ समझाने की जरूरत पड़े। वह तो यही बयान करती है कि हिंदू संगठन ज्यादा खतरनाक हैं। लश्करे तैयबा जैसे बेहद खतरनाक आतंकी संगठनों और कट्टर हिंदू संगठनों के बारे में राहुल गांधी का नजरिया उजागर होने के बाद यह कहीं अधिक आसानी से समझा जा सकता है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता आतंकवाद का सामना करने में अक्षम क्यों है? ध्यान रहे कि केवल राहुल गांधी ही हिंदू संगठनों को अधिक खतरनाक नहीं मान रहे। कांग्रेस के एक अन्य महासचिव दिग्विजय सिंह भी ऐसी ही राय रखते हैं। वह तो इसके लिए झूठे दावे करने में भी संकोच नहीं करते। इसके अतिरिक्त यह भी एक तथ्य है कि गृहमंत्री पी. चिदंबरम भी अपने अधिकारियों को तथाकथित भगवा आतंकवाद से आगाह कर चुके हैं। आखिर जो सरकार हिंदू संगठनों को बड़ा खतरा मान रही हो उससे यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वह अन्य संगठनों की गतिविधियों की परवाह करे? यह वह स्थिति है जो देश के लिए वास्तव में खतरा बने आतंकी संगठनों को राहत देने वाली है। अब इस पर आश्चर्य नहीं कि भारत सरकार पाकिस्तान पोषित आतंकी संगठनों और देश में सक्रिय उनके समर्थकों पर लगाम लगाने में असमर्थ क्यों है? जब सत्तारूढ़ दल के बड़े नेता यह मान रहे हैं कि भारत को गंभीर खतरा उनके अपने हिंदू संगठनों से है तो फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान पर दबाव बनाने की जहमत क्यों उठाए? कट्टरपंथी हिंदू संगठनों के बारे में राहुल गांधी की राय आतंकवाद के मामले में न केवल भारत का पक्ष कमजोर करने वाली है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह करने वाली भी है। आखिर यह एक तथ्य है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय किसी देश के बारे में अपनी राय वहां के नेताओं के विचारों के आधार पर ही बनाता है, न कि उनके भाषणों के आधार पर।
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