Tuesday, November 22, 2011

जरूरी है यूपी का विभाजन : अमर


उत्तर प्रदेश को चार राज्यों में विभाजित करने संबंधी राज्य सरकार के प्रस्ताव को सोमवार को प्रदेश विधानसभा में पारित होने का राष्ट्रीय लोकमंच के अध्यक्ष अमर सिंह ने स्वागत किया। उन्होंने कहा कि अगर कोई राजनीतिक कदम जनहित में हो तो सिर्फ सियासत के लिए उसका विरोध करना ठीक नहीं है। विरोध करने वालों के दावे बेतुके हैं। उन्होंने कहा कि राममनोहर लोहिया छोटे राज्यों के हिमायती थे और आज कोई भी नेता लोहिया जितना बड़ा समाजवादी नहीं है। पत्रकारों से बातचीत में अमर सिंह ने कहा कि विभाजन प्रस्ताव लाने के मुख्यमंत्री मायावती के तरीके पर प्रश्न उठ सकते हैं, लेकिन बंटवारे के मुद्दे पर कोई विवाद नहीं होना चाहिए। मैं यही कहूंगा कि उत्तर प्रदेश को चार राज्यों में विभाजित करने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित होने से राज्य की जनता को काफी राहत मिली है। सिंह ने किसी दल का नाम लिए बिना कहा कि जो दल इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं, उनके दावे बेतुके हैं। उन्होंने जाहिरा तौर पर मायावती सरकार की तारीफ करते हुए कहा कि मायावती को पूर्वांचल की जनता साधुवाद देना चाहती है। लोग इस प्रस्ताव को राजनीति से प्रेरित कहेंगे, लेकिन क्या किसानों का कर्ज माफ करने-जैसे कदम राजनीतिक नहीं होते। उत्तर प्रदेश को बुंदेलखंड, पश्चिम प्रदेश, अवध और पूर्वांचल में विभाजित करने संबंधी प्रस्ताव सोमबार को विधानसभा में हंगामे के बीच पारित कराया गया। विभाजन प्रस्ताव का विरोध करने वाले दलों के बारे में अमर सिंह ने कहा कि जो नेता पूरे उत्तर प्रदेश में जाति और संप्रदाय के नाम पर राजनीति करते हैं, शायद उन्हें इस प्रस्ताव से व्यक्तिगत नुकसान होगा, लेकिन आम आदमी को इससे फायदा ही होगा। सिंह ने कहा कि विभाजन प्रस्ताव का विरोध करने वालों को राजनीतिक अस्थिरता और अल्प विकास का शिकार रहे झारखंड का ही उदाहरण नहीं देना चाहिए। आलोचकों को पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और गोवा जैसे छोटे राज्यों में हुए विकास को भी देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर अब गेंद केंद्र के पाले में है। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पूर्वाचल के दर्द को समझते हुए पटेल आयोग और पाणिक्कर आयोग का गठन किया था। केंद्र की कांग्रेस नीत सरकार के पास अपने पुरखों का सम्मान करते हुए विभाजन को मंजूरी देने का स्वर्णिम अवसर है। इसमें कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह मुद्दा तेलंगाना जितना विवादास्पद नहीं है।
राममनोहर लोहिया भी छोटे राज्यों के थे हिमायती, आज कोई भी नेता लोहिया जितना बड़ा समाजवादी नहीं

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