लखनऊ राज्य निर्वाचन आयोग भले ही 31 दिसंबर तक निकाय चुनाव कराने को तैयार हो, लेकिन वार्डो के आरक्षण के बहाने मायावती सरकार 31 दिसंबर तक चुनाव टलवाने में कामयाब हो गई तो अगले साल अक्टूबर-नवंबर से पहले चुनाव संभव नहीं होंगे। सरकार उससे पहले चुनाव चाहेगी भी तो राज्य निर्वाचन आयोग कराने की स्थिति में नहीं रहेगा। राज्य निर्वाचन आयोग ने निकायों का कार्यकाल खत्म होने से पहले उसके चुनाव कराने की तैयारी चार माह पहले से कर रखी है। यद्यपि राज्य सरकार के टाल-मटोल से मौजूदा निकायों के खत्म हो रहे कार्यकाल (20 नवंबर तक) से पहले चुनाव की उम्मीद खत्म होती जा रही है। सरकार वार्डो के आरक्षण की प्रक्रिया नए सिरे से शुरू कर चुनाव को टालने की कोशिश में है। निर्वाचन आयोग के मुताबिक सरकार ने भले ही वार्ड आरक्षण संबंधी तैयारियां पूरी न होने के चलते उसके 24 सितंबर से पांच नवंबर के दरमियान निकाय चुनाव कराने वाले कार्यक्रम पर सहमत नहीं दी है, लेकिन वह तो 31 दिसंबर तक चुनाव करा सकते हैं। संयुक्त निर्वाचन आयुक्त जेपी सिंह का कहना है कि 31 दिसंबर तक चुनाव कराने में आयोग को कोई दिक्कत नहीं है बशर्ते 15 नवंबर से पहले सरकार चुनाव की अधिसूचना जारी करने को तैयार हो। गौर करने की बात यह है कि आयोग को चुनावी प्रक्रिया पूरी करने के लिए 40-45 दिन चाहिए ही होते हैं। सन् 2006 में निकाय चुनाव की प्रक्रिया 25 सितंबर को शुरू कर आयोग ने 6 नवंबर को मतगणना कराकर 13 नवंबर को निकायों के गठन की अधिसूचना जारी कर दी थी। सिंह का साफ कहना है कि यदि 31 दिसंबर तक चुनाव नहीं होते हैं तो उसके लिए अगले वर्ष अक्टूबर-नवंबर से पहले चुनाव संभव नहीं होंगे। कारण है कि आयोग को पहली जनवरी को 18 वर्ष पूरे करने वालों के नाम मतदाता सूची में शामिल करने के लिए सूची का नए सिरे से पुनरीक्षण करना होगा जिसमें वैसे तो छह माह लगते हैं लेकिन बीच में विधानसभा चुनाव होने से आठ माह तक लग सकते हैं। यही नहीं तब तक जनगणना-2011 के अंतिम आंकड़े भी आ जाएंगे जिसके आधार पर सरकार को नए सिरे से निकायों का परिसीमन व आरक्षण की प्रक्रिया पूरी करनी होगी। ऐसे में साफ है कि इधर 31 दिसंबर तक निकाय चुनाव न होने की दशा में अगले वर्ष अक्टूबर-नवंबर से पहले चुनाव संभव नहीं होंगे
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