Monday, October 8, 2012

गुजरात की जंग में मोदी बनाम सोनिया




अवधेश कुमार आप नरेंद्र मोदी के विरोधी हों या समर्थक, यह स्वीकार करेंगे कि उनकी रणनीति इस समय सफल है। गुजरात चुनाव की तारीख घोषित होने तक माहौल मोदी बनाम सोनिया गांधी हो चुका था, जो आगे भी जारी है। यही तो मोदी चाहते हैं। वे जानते हैं कि गुजरात का चुनाव उनके लिए 2014 में भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी का प्रक्षेपण स्थल भी बन सकता है। इसलिए गुजरात का चुनाव प्रचार करते हुए भी वे प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं को तरजीह नहीं देते। उनका निशाना सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जैसे कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व है। इस प्रकार बिना घोषित किए हुए वे गुजरात और उसके बाहर यह संदेश देने की कोशिश करते हैं कि उनका मुकाबला तो कांग्रेस के नेतृत्व से है, प्रदेश कांग्रेस के नेता उनके सामने कहीं है ही नहीं। जरा ध्यान दीजिए, सोनिया गांधी 3 अक्टूबर को गुजरात के राजकोट में पहली सभा संबोधित करने वाली थीं और ठीक उसके तीन दिन पहले नरेंद्र मोदी ने सोनिया गांधी के विदेशी दौरे के खर्च का मुद्दा उठा दिया। हालांकि सोनिया गांधी ने अपनी सभा में न उसका जवाब दिया और न ही मोदी का नाम लिया, लेकिन आप गुजरात के संदर्भ में जो भी बात उठाएंगी, वह मोदी के संदर्भ में ही होगी, इसलिए नाम लेने या न लेने से कोई फर्क नहीं पड़ता। नरेंद्र मोदी बनाम सोनिया गांधी के वर्तमान परिदृश्य पर निश्चय ही देश का मत बंटा हुआ है। जिस समाचार पत्र की कतरन मोदी ने सभा में लहराई, उसका स्त्रोत हिंदुस्तान समाचार था और उसने जिस सूचना कार्यकर्ता की सूचना के आधार पर इसे लिखने का दावा किया, उनका कहना है कि उन्हें तो सूचना आयोग सूचना दे ही नहीं रहा है। उन्होंने केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त को भी अर्जी दी, लेकिन अभी तक उन्हें सूचना नहीं दी गई। अगर सूचना कार्यकर्ता की बात सही है तो 1880 करोड़ रुपये खर्च होने का आंकड़ा कहां से आया, यह प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है। इसमें केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा यह कहने के बाद कि सोनिया गांधी के विदेशी इलाज पर सरकार का एक पैसा खर्च नहीं हुआ, ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी का दावा बेबुनियाद साबित हुआ है। मोदी का बयान था कि अगर उनकी बात गलत साबित हुई तो वे क्षमा मांगने के लिए तैयार हैं। खर्च का सवाल मोदी और उनके रणनीतिकारों को मालूम है कि चुनाव के पहले ऐसा करने का उनके समर्थकों के मनोबल पर कितना विपरीत प्रभाव पड़ेगा, बावजूद इसके उन्होंने ऐसा बयान देकर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करने की रणनीति अपनाई कि आप सच तो देश के सामने लाइए। भाजपा को भी पता है कि इसका सच लाना कठिन है। 15 वर्ष के दौरों का अलग-अलग मदों में हुए खर्च को जोड़ने का काम करना होगा और वह छोटी-मोटी राशि नहीं होगी। वैसे सूचना आयोग द्वारा दी गई वर्तमान सूचना पूर्ण नहीं है, क्योंकि सोनिया गांधी के विदेशी दौरे पर पिछले 15 सालों में हुए खर्च का ब्यौरा मांगा गया था, केवल इलाज पर हुए खर्च का नहीं। भाजपा और मोदी इस पहलू को ही उठा रहे हैं। कुछ दूतावासों द्वारा सोनिया गांधी के दौरे पर हुए खर्च का ब्यौरा आ भी गया है, जिससे जनता के बीच यह संदेश गया है कि वाकई सरकार ने उनके विदेशी दौरों पर खर्च किया है। इसलिए उन पर 1880 करोड़ रुपये खर्च हुए या नहीं, इस पर तो विवाद हो सकता है, लेकिन खर्च होने से कोई इन्कार नहीं कर सकता। इसीलिए सरकार ब्यौरा देने से बच रही है। मोदी की केवल पहले के समान आलोचना की जा रही है। यह कोई भी समझ सकता है कि मोदी को हिटलर कह देने या गोएबल्स के बार-बार झूठ बोलने के सिद्धांत का पालन करने वाला करार देने भर से इसका संतोषजनक जवाब नहीं मिलता है। मोदी और उनके समर्थकों के लिए ये विशेषण पहली बार नहीं आए हैं। मोदी और उनके समर्थकों पर फर्क तभी पड़ेगा, जब आंकड़ों से उनकी बात गलत साबित कर दिया जाए तथा उन्हें रक्षात्मक होने को विवश किया जाए। सोनिया गांधी ने जो मुद्दे उठाए, वे विकास, कानून व्यवस्था और सामाजिक सद्भाव के थे। यह मोदी के विकास के दावों, समाज के सभी वर्ग के साथ समानता के व्यवहार के प्रचार को खारिज करने वाला था, लेकिन इसमें मोदी को रक्षात्मक बनने के लिए विवश करने वाला ब्रह्मास्त्र नहीं था। इस समय आप यह कहेंगे कि लोकपाल कानून भाजपा ने बनने नहीं दिया तो इसे कौन स्वीकार करेगा? कांग्रेस सौराष्ट्र के साथ सौतेले व्यवहार का आरोप लगाकर वहां पानी न पहुंचने का मुद्दा बना रही है, पर इसका असर कितना होगा यह अभी कहना मुश्किल है। ये सारे मुद्दे मोदी की आक्रामकता और कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को कठघरे में खड़ा करने का जवाब नहीं हो सकते। मोदी की ताकत कांग्रेस के साथ समस्या यह है कि वह नरेंद्र मोदी को सांप्रदायिक साबित करने के लिए जितना हमला करती है, मोदी का समर्थन और घनीभूत होता है। पिछली बार सोनिया द्वारा उन्हें मौत का सौदागर कहने पर मोदी ने उसे अपने पक्ष में किस तरह भुनाया, यह अनुभव कांग्रेस को सालता रहता है। मोदी अपनी शैली में सोहराबुद्दीन मुठभेड़ पर लोगों से पूछते थे कि क्या कोई आतंकवादी या अपराधी आएगा तो उसे मारा नहीं जाना चाहिए और लोग जवाब देते थे कि मारा जाना चाहिए। यह मोदी की शैली है, जिसका जवाब उनकी शैली में देना अत्यंत कठिन है। वह भी उस हालत में जब केंद्रीय स्तर पर कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार पर भ्रष्टाचार के इतने आरोप लगे हैं। सोनिया गांधी ने पार्टी बैठकों में कई बार कांग्रेसी नेताओं को भाजपा के खिलाफ हमलावर होने का आह्वान किया और उसका असर भी हुआ, पर भ्रष्टाचार का आरोप झेलने वाली पार्टी के लिए बहुत ज्यादा आक्रामक होना संभव ही नहीं। केंद्र से लेकर प्रदेश तक के नेताओं का मनोबल कमजोर है। मोदी को इसका भान है। इसलिए वे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को ही लपेटे में लेने की रणनीति अपना रहे हैं। नरेंद्र मोदी को भी पता है कि सरकार के लिए एक सांसद और संप्रग की अध्यक्ष होने के नाते सोनिया गांधी पर खर्च करना वैध होगा। दूसरे दलों के नेताओं तक के कई विदेशी दौरे का खर्च सरकार उठाती है और सामान्यत: जनता के सामने उन खर्चो का ब्यौरा नहीं रखा जाता। मोदी कह भी रहे हैं कि सरकार को सोनिया गांधी पर खर्च करने का अधिकार है, लेकिन हमें जानकारी तो दीजिए। हमें भी जानने का अधिकार है। वस्तुत: खर्च सामने रखने की मांग गैरवाजिब नहीं मानी जा सकती। सरकार यह नहीं कह सकती कि हम खर्च का विवरण नहीं देंगे। वह यह भी नहीं कह सकती कि उसके पास खर्च का हिंसाब नहीं है। इसलिए इस मामले में अभी तक मोदी का पलड़ा भारी और कांग्रेस पार्टी थोड़ी कमजोर दिखती है। मोदी यहीं रुक जाएंगे, ऐसा संभव नहीं। आखिर उनके सामने गुजरात और उसके बाद दिल्ली की रिक्तता को भरने की संभावना का द्वार जो दिख रहा है। आप देखते जाइए, मोदी और क्या-क्या मुद्दा उठाते हैं! सोनिया गांधी के भाषण को देखते हुए यह नहीं लगता कि कांग्रेस उन मुद्दों का ऐसा जवाब दे पाएगी, जिनसे वे निष्प्रभावी हो जाएं। तो गुजरात चुनाव हमें ऐसे अनेक रोचक, अप्रिय, अनाश्यक मुद्दों और विवादों से चार कराएगा, जिसकी शायद हमें उम्मीद भी नहीं हो। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


Dainik Jagran National Edition 8-10-2012  Rajnitee , Pej -9

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