Wednesday, December 28, 2011

लोकपाल की आड़ में सरकार पर नियंत्रण चाहते हैं उद्योग घराने


संसद में लोकपाल विधेयक पर विचार- विमर्श के बीच संप्रग सरकार के एक मंत्री ने ही इस व्यवस्था पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। अप्रवासी मामलों के मंत्री व्यालार रवि का कहना है कि लोकपाल से सिर्फ उद्योग घरानों को फायदा होगा। एक दिन यह (लोकपाल) उन शक्तिशाली उद्योग घरानों के लिए राजनीतिक नेतृत्व को ब्लैकमेल करने के औजार में तब्दील हो जाएगा,जो कि सरकार पर नियंत्रण करना चाहते हैं। रवि ने आगाह किया कि लोकपाल कानून के प्रतिपालन में सामान्य सिद्धांतों की अनदेखी हुई तो लोकपाल देश को अस्थिर कर सकता है। गौरतलब है कि गत सप्ताह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अग्रणी उद्योगपतियों से भेंट के दौरान आर्थिक नीतियों की आलोचना किए जाने पर खिन्नता और निराशा जताई थी। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने भी पीएचडी चैंबर ऑफ कामर्स के कार्यक्रम में कुछ ऐसे ही विचार व्यक्त किए थे। व्यालार रवि ने सोमवार को एक साक्षात्कार में दावा किया कि देश के गरीबों को कोई शिकायत नहीं है। उद्योग घराने मनमाफिक और फायदेमंद आर्थिक नीतियां न बनने से सरकार से नाखुश हैं। इसीलिए सरकारी नीतियों के पक्षाघात की स्थिति में होने समेत अन्य शिकायतें कर रहे हैं। वे (उद्योग घराने) बहुत शक्तिशाली हैं और भविष्य में सरकार पर नियंत्रण के लिए लोकपाल का दुरुपयोग कर सकते हैं। वह सांसदों और अन्य चुने जनप्रतिनिधियों की शक्तियों को सीमित करने के कुत्सित प्रयास में लगे हैं। उन्होंने अन्ना हजारे पर निशाना साधते हुए कहा कि वह गुप्त उद्देश्यों के साथ आंदोलन चला कर संविधान की सर्वोच्चता को कमतर करने की कोशिश कर रहे हैं, जो कि देश का सबसे बड़ा दस्तावेज है। वह अनुचित मांगों के साथ संसद को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं। रवि ने कहा, टीम अन्ना द्वारा प्रस्तावित लोकपाल समूचे देश को अस्थिर करेगा। सभी शक्तियों को समाहित करके तैयार सर्व शक्तिशाली निकाय देश के लिए ठीक नहीं। इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा,मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ हूं और यह नहीं कहता कि देश में भ्रष्टाचार नहीं है, लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि इससे (भ्रष्टाचार) निपटने के लिए संविधान के बुनियादी दर्शन व तय प्रक्रिया किनारे कर दी जाए। ऐसा होता है तो यह भी एक समस्या है। रवि ने कहा,वह किसी पर आरोप नहीं लगा रहे, पर कुछ मामलों में परिपक्वता की जरूरत होती है। लोकतंत्र और संतुलन को समझिए। अदालत के एक निर्णय (1975) ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अयोग्य घोषित कर दिया था। यह एक तरह से सैन्य आघात था।

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