Thursday, December 8, 2011

लोकपाल में आरक्षण न मिला तो नहीं चलने देंगे संसद


महंगाई, कालेधन और भ्रष्टाचार के सवालों के बीच देश के डेढ़ सौ से अधिक दलित सांसदों ने एससी, एसटी के आरक्षण के मुद्दे पर नई बहस छेड़ दी है। वे कार्यकारी आदेश से सरकारी नौकरियों में मिले इस आरक्षण के लिए संसद के इसी सत्र में कानून बनाने की मांग पर अड़ गए हैं। साथ ही प्रस्तावित लोकपाल में भी दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों व महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर दी है। ऐसा नहीं होने पर एससी-एसटी संसदीय फोरम ने संसद को न चलने देने की चेतावनी भी दे दी है। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अनुसूचित जाति-जनजाति (एसटी-(एससी) संसदीय फोरम के बैनर तले एकजुट सांसदों ने प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री नारायण सामी से बुधवार को यहां आरक्षण के मुद्दे पर फिर से बात की। नारायणसामी से मुलाकात के बाद फोरम के सदस्य व राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पीएल पुनिया, फोरम के सचिव व राज्यसभा सदस्य जेडी सीलम, लोजपा प्रमुख व राज्यसभा सदस्य रामविलास पासवान ने बुधवार को यहां संसद भवन परिसर में पत्रकारों से कहा कि इन मसलों पर अब वे गुरुवार को प्रधानमंत्री से भी मिलेंगे। जबकि, संसद के पिछले सत्र में भी उनसे व नारायणसामी से मिल चुके हैं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। पुनिया ने कहा कि प्रस्तावित लोकपाल के लिए बनने वाली सर्च कमेटी, सेलेक्शन कमेटी और लोकपाल के ढांचे (संस्था) में भी दलितों, पिछड़ों (ओबीसी), अल्पसंख्यकों व महिलाओं को मिलाकर 50 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए। सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति का 15 प्रतिशत व जनजाति का 7.5 प्रतिशत दशकों पुराना आरक्षण अभी तक महज एक कार्यकारी आदेश पर टिका हुआ है। फोरम की मांग इस आरक्षण के लिए संसद से कानून बनाने की है। नारायणसामी ने कानून मंत्रालय से मशविरा कर विधेयक लाने को कहा था, अब कुछ नहीं हुआ। फोरम की मांग न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति में भी एससी-एसटी का आरक्षण की है।

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