Friday, September 7, 2012

बिहारी-मराठी विवाद में सरकारों ने डाला घी



ठ्ठओमप्रकाश तिवारी, मुंबई हाल के बिहारी-मराठी विवाद में ठाकरे परिवार पर वोटबैंक की राजनीति करने का आरोप लग रहा है। लेकिन, इस विवाद को आगे बढ़ाने में ठाकरे परिवार से कम भूमिका महाराष्ट्र, बिहार और केंद्र सरकार की भी नहीं रही है। हालिया विवाद की शुरुआत शिवसेना के मुखपत्र सामना में गत 31 अगस्त को प्रकाशित एक समाचार से हुई, जिसका शीर्षक था, मेरे राज्य में आकर गुनहगारों को पकड़ा तो याद रखो, अपहरण का मामला दर्ज होगा। अखबार में यह समाचार किसी समाचार एजेंसी के हवाले से प्रकाशित किया गया। इसमें बिहार के मुख्य सचिव नवीन कुमार की ओर से एक पत्र मुंबई के पुलिस आयुक्त को लिखने की बात कही गई थी, साथ में नवीन कुमार का फोटो भी प्रकाशित किया गया था। इसी समाचार को पढ़कर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के अध्यक्ष राज ठाकरे ने उसी शाम अपने पार्टी कार्यकर्ताओं की एक बैठक में चेतावनी दे डाली कि यदि बिहार सरकार मुंबई पुलिस के विरुद्ध ऐसी कोई कार्रवाई करती है, तो वह मुंबई में रह रहे बिहारियों को घुसपैठिया करार देकर उन्हें मुंबई से खदेड़ देंगे। राज के इस बयान के बाद हर तरफ से बयानों की झड़ी लग गई। सूत्रों के अनुसार तत्कालीन मुख्य सचिव नवीन कुमार की ओर से इस प्रकार का कोई पत्र लिखा ही नहीं गया। पत्र वास्तव में बिहार के पुलिस महानिदेशक की ओर से लिखा गया था और उसमें ऐसी भाषा का इस्तेमाल भी नहीं किया गया, जैसा कि सामना ने प्रकाशित किया गया। लेकिन, यह विवाद लगातार बढ़ते जाने के बावजूद बिहार सरकार की ओर से न तो उक्त पत्र सार्वजनिक किया गया और न ही गलत समाचार प्रकाशित करने वाले अखबार से कोई शिकायत दर्ज कराई गई। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री भी मामले को शांत करने के बजाय वोटबैंक के चक्कर में एक-दूसरे पर आरोप लगाते दिखाई दिए। केंद्र की ओर से भी स्पष्ट करने की कोशिश नहीं की गई कि एक राज्य की पुलिस को दूसरे राज्य में घुसने पर क्या औपचारिकताएं निभानी चाहिए?

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