मौसम चुनावी हो और उसकी रंगत न दिखे, यह तो मुमकिन ही नहीं है। उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव का रंग अभी से दिखने लगा है। पिछले कुछ दशकों से प्रदेश की सत्ता से बाहर रही कांग्रेस पार्टी ने इस चुनाव के लिए खास तैयारियां की है। वह चूंकि अभी केंद्र में सत्ता में है, इसलिए अभी उसके पास एक मौका है कि वह राज्य के मतदाताओं को अपनी सदाशयता से भरोसे में ले। केंद्र सरकार की तरफ से ऐसी ही एक बड़ी पहल है बुनकरों के लिए आकषर्क पैकेज की घोषणा। देश में बुनकरों की सबसे ज्यादा संख्या वाला सूबा ऐतिहासिक तौर पर उत्तर प्रदेश ही है। सूरत और मुंबई के मिल के कपड़ों का दौर शुरू होने से काफी पहले से यहां खेती के बाद रोजगार का दूसरा पारंपरिक जरिया करघा ही रहा है। यह और बात है कि पिछले कम से कम तीन दशकों में देश-विदेश में चर्चा और खपत के लिए जाना जाने वाला उत्तर प्रदेश का करघा उद्योग जबरदस्त बदहाली का शिकार रहा है। वाराणसी से मिर्जापुर और तमाम दूसरे हिस्सों में अब भी जो बुनकर परिवार अपने पुश्तैनी हुनर का साथ तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद निभा रहे हैं, उनके लिए केंद्र सरकार ने अपना खजाना खोलने की घोषणा की है। सरकार ने तीन लाख हथकरघा बुनकरों और 15 हजार सहकारी समितियों के 3884 करोड़ रुपए के कर्ज माफी की घोषणा की है। इसके अलावा बुनकरों की आर्थिक मदद के लिए 2350 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। दिलचस्प है कि बुनकरों की मदद के लिए बढ़े सरकारी हाथ के पीछे मुख्य प्रेरणास्रेत कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी हैं। यह बात कोई और नहीं बल्कि केंद्रीय वाणिज्य, उद्योग और कपड़ा मंत्री आनंद शर्मा कह रहे हैं। असल में बड़ा मुद्दा यह नहीं है कि इस पहल का श्रेय किसे दिया जाए। निजी व केंद्रीकृत मेगा प्रोजेक्टों के दौर में कुटीर और मझोले उद्योगों की मदद तो दूर, आर्थिक विकास में इनकी भूमिका और दरकार तक पर सवाल उठने शुरू हो गए थे। सरकार की नजर में यह बात अगर चुनावी तात्कालिकता से ज्यादा गंभीर है तो फिर उसकी पहल का असर चुनाव से ज्यादा उसके बाद के महीनों-सालों में दिखना चाहिए। खुले बाजार के दौर में करघा बुनकरों की साख को आर्थिक हिफाजत के साथ बचाना कोई आसान कम नहीं है। आपूर्ति से लेकर खपत तक का पूरा अर्थशास्त्र आज इन बुनकरों के खिलाफ है। उन्हें ‘सरकारी मदद’ से ज्यादा ‘असरकारी मदद’
की दरकार है। उम्मीद करनी चाहिए कि केंद्र सरकार ने बुनकरों की सुध लेने के लिए जो बड़ी पहल की है, वह कारगर और दूरदर्शी भी साबित होगी। उत्तर प्रदेश के बुनकर न सिर्फ आगामी विधानसभा चुनाव में बल्कि आगे भी इस घोषणा की सफलता-असफलता पर नजर रखेंगे।
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