नई दिल्ली संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार को घेरने के लिए विपक्षी एकजुटता के प्रयास तेज हो गए हैं। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने गैर संप्रग दलों के साथ तो अनौपचारिक चर्चाएं तो शुरू कर ही दी हैं, संप्रग के दलों के साथ भी संपर्क-सूत्र कायम किए जा रहे हैं। यहीं नहीं पार्टी की नजर संप्रग में टूट पर भी है। हाल में पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी के बाद ममता बनर्जी, राकांपा और द्रमुक की नाराजगी को देखते हुए पार्टी अपनी संभावनाएं तलाशने में जुट गई है। दरअसल, पेट्रोल कीमतों में वृद्धि का मुद्दा इस समय सबसे गरम है और अगर बढ़ी हुई कीमतें कम नहीं हुई तो भाजपा इसे आधार बनाकर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर सरकार के लिए बड़ा संकट भी खड़ा कर सकती है। संसद के बीते शीतकालीन सत्र की कड़वी यादें अभी भी जेहन में है। 2जी घोटाले की जांच के लिए जेपीसी की मांग करते हुए भाजपा व अन्य विपक्षी दलों ने लगभग पूरे सत्र को नहीं चलने दिया था। इस बार महंगाई व पेट्रोल की कीमतों में हाल में की गई बढ़ोतरी को लेकर भाजपा वैसा ही माहौल बनाने की तैयारी में है। अन्ना हजारे के जन लोकपाल का मुद्दा तो इस सत्र में सरकार के लिए परेशानी का सबब है ही, ऐसे में अगर महंगाई को लेकर अगर विपक्ष व सरकार के सहयोगी दलों के मौजूदा तेवर बरकरार रहे तो सरकार के लिए लोकसभा में संख्याबल बरकरार रखने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है। भाजपा नेतृत्व ने इस सत्र में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के संकेत दिए है। इसके पीछे पार्टी की सोची समझी रणनीति है। इसमें कांग्रेस के सहयोगी दलों की महंगाई के खिलाफ बयानबाजी को दिखावटी साबित करना व उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरणों को अपने पक्ष में करना है। उसकी नजर में ज्यादा महत्वपूर्ण यूपी के चुनाव हैं, जहां पार्टी बसपा, सपा व कांग्रेस से लड़ रही है। उसकी कोशिश तीनों के बीच अंदरूनी गठजोड़ साबित कर राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करना है। उसे लगता है कि सदन में मतदान की स्थिति आने पर सपा व बसपा सरकार के साथ या तटस्थ रहते हैं तो वह इसे उत्तर प्रदेश में चुनावी मुद्दा बनाकर भुनाएगी। दूसरी तरफ कांग्रेस से नाराज चल रहे सहयोगी दलों पर भी उसकी नजर है। घोटालों व अन्ना के आंदोलन से देश में जो माहौल बना है। उसमें तृणमूल कांग्रेस पर उसकी खास नजर है। भविष्य में चुनाव के पहले या बाद में वह उसकी सहयोगी हो सकती है। तृणमूल कांग्रेस ने भी पेट्रोल की बढ़ी कीमतों पर मुखर विरोध से आगे बढ़ते हुए अगले सप्ताह 8-9 नवंबर को प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांगा है। चूंकि प्रधानमंत्री बढ़ोतरी वापस करने से इंकार कर चुके है, इसलिए मुलाकात राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
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