Friday, June 1, 2012

आडवाणी भाजपा से निराश


नरेंद्र मोदी-संजय जोशी विवाद अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि भाजपा के शीर्ष नेता लालकष्ण आडवाणी ने पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी और संघ पर अपने ब्लॉग का बम फोड़ दिया। गुरुवार को जब पार्टी भारत-बंद के जरिए केंद्र को घेरने में जुटी थी, आडवाणी ने मौजूदा भाजपा की क्षमता और भ्रष्टाचार के मोर्चे पर उसकी नीयत पर गंभीर सवाल उठाए। आडवाणी ने यहां तक कह डाला कि संप्रग सरकार से नाराज जनता राजग को लेकर भी निराश है। पार्टी नेतृत्व की ओर से लिए गए कुछ पुराने फैसलों का हवाला देते हुए वह यह कहने से नहीं चूके कि भ्रष्टाचार के खिलाफ भाजपा के अभियान की धार कुंद हो गई है। लिहाजा पार्टी को आत्मचिंतन करना चाहिए। लंबे समय तक संघ के चहेते रहे आडवाणी ने ब्लॉग में परोक्ष रूप से पार्टी में उसके हस्तक्षेप पर सवाल खड़ा कर दिया। गडकरी का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की हार और मायावती सरकार में बसपा से हटाए गए भ्रष्टाचार के आरोपी बाबू सिंह कुशवाहा को पार्टी में शामिल करना, कर्नाटक की घटना और झारखंड राज्यसभा चुनाव ने भाजपा की साख गिरा दी। गौरतलब है कि कुशवाहा को पार्टी में शामिल करने का फैसला गडकरी ने ही लिया था। कर्नाटक में बीएस येद्दयुरप्पा मुख्यमंत्री पद से तब हटाया गया था जब आडवाणी ने खुले तौर पर इसका निर्देश दिया था। इसी तरह झारखंड में निर्दलीय अंशुमान मिश्रा को टिकट देने का फैसला भी गडकरी का माना जाता है। पार्टी के अंदर यह धारणा है कि गडकरी के फैसले को संघ की भी सहमति है या फिर संघ के इशारे पर कोई फैसला लिया गया है। लिहाजा आडवाणी यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा कि 1984 में जब भाजपा को संसद में सिर्फ दो सीटें मिली थीं उस वक्त भी कार्यकर्ताओं का जोश खत्म नहीं हुआ था, लेकिन आज हर स्तर पर निराशा है और जनता विकल्प के तौर पर राजग को लेकर आश्वस्त नहीं है। उन्होंने आगाह किया पार्टी को आत्मचिंतन की जरूरत है। परोक्ष तौर पर आडवाणी ने गडकरी के दूसरे कार्यकाल को लेकर सवाल खड़ा किया। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के करीबी हैं। उन्हें पहली बार अध्यक्ष बनाने से लेकर दूसरे कार्यकाल का रास्ता साफ करने तक में संघ की भूमिका मानी जाती है। अध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ाने के मुद्दे पर भी आडवाणी सहमत नहीं थे। शायद यही कारण था कि मुंबई कार्यकारिणी की बैठक में इस बाबत आए संविधान संशोधन पारित होने के वक्त भी आडवाणी गैरहाजिर थे। बाद में मुंबई की रैली से आडवाणी ने दूरी बनाए रखी थी। हालांकि इसका कारण पूर्व निर्धारित कार्यक्रम बताया गया था, बावजूद इसके कार्यकारिणी और रैली का निर्धारण भी काफी वक्त रहते किया जाता है।

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