प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बीते माह पैट्रोल मूल्य वृद्धि के फैसले पर सहनशीलता दिखाने का यूपीए सहयोगी तृणमूल कांग्रेस को इनाम दे दिया है। केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल की ममता बैनर्जी सरकार की काफी समय से चली आ रही आर्थिक पैकेज की मांग को पूरा करते हुए राज्य को लगभग नौ हजार करोड़ रुपये की विशेष आर्थिक सहायता देने का फैसला किया है। सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में पिछड़ा क्षेत्र विकास कोष से राज्य को विशेष आर्थिक सहायता देने के फैसले पर मुहर लगाई। इसके तहत राज्य को 8750 करोड़ रुपये की सहायता दी जानी है। तृणमूल समेत अन्य सहयोगियों के विरोध के चलते खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेश निवेश के फैसले पर फौरी ब्रेक लगाने के बाद सरकार ने पश्चिम बंगाल की विशेष पैकेज मांग को पूरा कर अपने अहम सहयोगी को खुश करने की भी कोशिश की है। हालांकि यह बात और है कि ममता बैनर्जी की ओर से राज्य के लिए मांगी गई 19 हजार करोड़ रुपये की सहायता के मुकाबले सरकार ने अपने खजाने से फिलहाल आधी से भी कम रकम निकाली है। दरअसल, यूपीए सरकार ने बीते माह पैट्रोलियम मूल्य वृद्धि को लौटाने के लिए रौद्र रूप दिखा रही तृणमूल कांग्रेस ने विशेष आर्थिक पैकेज की अपनी मंशा स्पष्ट कर दी थी। जाहिर है पार्टी सरकार को संकट से बचाने की कीमत वसूलने का मौका नहीं गंवाना चाहती थी। मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने आठ नवंबर 2011 को पश्चिम बंगाल के राजभवन में केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के साथ अपनी मुलाकात में राज्य के लिए करीब 20 हजार करोड़ की सहायता की दरकार बताई थी। वहीं तृणमूल सांसदों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आगे भी इसके लिए पेशबंदी की थी। महत्वपूर्ण है कि नवंबर में पैट्रोल की कीमतों में दो बार हुई बढ़ोतरी के खिलाफ तृणमूल ने सरकार से बाहर होने का भी दबाव बनाया था। तात्कालिक तौर पर तो मनमोहन सरकार ने अपने फैसले को जायज बताते हुए सख्ती दिखाई थी। साथ ही वित्त मंत्री विशेष आर्थिक पैकेज की मांग को भी ठुकरा दिया था। लेकिन बाद में सरकार की ओर से न केवल पैट्रोल की कीमतों में कमी का फैसला आया बल्कि राज्य के लिए पैकेज को भी मंजूरी मिल गई। वैसे पश्चिम बंगाल के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की ममता बैनर्जी की मांग नई नहीं है। मई 2011 में राज्य की कमान संभालने के बाद से ममता इसकी मांग करती रही हैं। इसके वो हर मंच पर उठाती भी रही हैं। यह बात और है कि सरकार ने अपने अहम सहयोगी की मांग को कान तब दिए जब सियासी मुसीबत में वजूद बचाने के लिए उसका साथ अनिवार्य नजर आने लगा।
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