शिव कुमार राय बात जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट में हुए घोटाले या उसके
कर्ताधर्ता सलमान खुर्शीद
और उनकी पत्नी लुईस खुर्शीद की नहीं। बात डीएलएफ और कांग्रेस
अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉर्बट
वाड्रा के बीच हुए जमीनी और तमाम कारोबारी सौदे में हुई अनियमितता की भी नहीं। बात कॉमनवेल्थ घोटाला,
2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कोल ब्लॉक आवंटन
घोटाला और नागरिक उड्डयन मंत्रालय जैसे तमाम दूसरे घोटालों की भी नहीं। बात राजनीति में अपने फायदे
के लिए धृतराष्ट्र बने
उन लोगों की है, जिनका देश के आम आदमी की तकलीफों से
कोई सरोकार नहीं है।
राजनीति के ये धृतराष्ट्र वे लोग हैं, जो
भ्रष्टाचार पर ठोस कार्रवाई
करने के बजाय यह बयान देते हैं कि भ्रष्टाचार को लेकर बिना सोचे-समझे नकारात्मक और निराशाजनक माहौल बनाने से किसी का भला
नहीं होने वाला। ऐसे लोगों
का यह कहना है कि इस तरह के दुष्प्रचार से दुनिया में भारत की छवि खराब हो रही है। राजनीति के ऐसे ही एक धृतराष्ट्र का यह मानना है कि देश के एक
केंद्रीय मंत्री के लिए 71
लाख रुपये की रकम मामूली होती है और इसलिए इतनी रकम से जुड़ी किसी अनियमितता को घोटाला नहीं कहा जा
सकता। यही नहीं, उनका यह भी कहना था कि अगर रकम 71 करोड़ रुपये होती तो इसको लेकर वह जरूर गंभीर होते। डीएलएफ और रॉबर्ट वाड्रा की डील को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता
अरविंद केजरीवाल के आरोपों
के बाद समूची कांग्रेस जिस तरह से बचाव में उतरी, उसे देखकर यह लगा
मानो देश में कोई बहुत बड़ी आपदा आ गई हो। करतूतों पर परदा आरोप कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद पर था तो राजनीति के एक धृतराष्ट्र ने एक समाचार चैनल पर यह बयान दे
डाला कि हमने आज तक अटल बिहारी वाजपेयी के बेटे के बारे में कुछ नहीं कहा। हमने लालकृष्ण आडवाणी के बेटे-बेटी के बारे में भी कुछ नहीं कहा।
हरियाणा में रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ से जुड़े जमीन विवाद की जांच करने वाले और वाड्रा के मानेसर प्लांट का म्यूटेशन रद करने वाले आइएएस अधिकारी
अशोक खेमका का तबादला बीज विकास निगम में कर दिया जाता है। आखिर कब तक राजनीति के ये धृतराष्ट्र अपनी खामियों पर परदा डालने की कोशिश करते रहेंगे
और आम आदमी की बुनियादी जरूरतों को नजरअंदाज करेंगे? देश के कानून
मंत्री सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी लुईस खुर्शीद के जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट पर उत्तर प्रदेश में विकलांगों की
सहायता के लिए लगाए गए कैंप से
संबंधित तमाम सरकारी कागजात और मौजूदा दस्तावेज यह बताने के लिए काफी हैं कि दाल में कुछ काला है और अब निष्पक्ष जांच
के जरिये यह जानने की जरूरत
है कि कहीं पूरी दाल ही तो काली नहीं है। बात सिर्फ जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट की ही नहीं, देश में विकलांगों की सहायता के नाम पर सरकारी खजाने से हर साल बड़ी रकम निकलती है, लेकिन समाज के इन बेबस लोगों के हालात में कोई खास तब्दीली दिखाई नहीं देती। गरीबी रेखा से
नीचे रहने वाले लोगों के
लिए ऐसी कई योजनाएं सिर्फ कागजों पर चल रही हैं और इनके नाम पर धंधा करने वाले तमाम ट्रस्ट, एनजीओ और तथाकथित समाज सेवक अपनी तिजोरियां भरने में जुटे हैं। देश के कई सरकारी और गैर सरकारी संगठन तमाम योजनाओं को अपनी
उपलब्धियों के तौर पर दिखाते
हैं और हितग्राहियों (किसी योजना विशेष से लाभ पाए हुए लोग) की सूची जारी कर देते हैं। इन हितग्राहियों की सूची में दर्ज
नाम और पते की अगर दोबारा जांच
कराई जाए तो इनमें से ज्यादातर लोगों के नाम और पते फर्जी ही निकलेंगे। देश के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद और उनकी
पत्नी लुईस खुर्शीद के
ट्रस्ट को लेकर जिन बातों का खुलासा हुआ है, उसमें बेहतर होता कि सरकार इसकी निष्पक्ष जांच की घोषणा करती, लेकिन ऐसा कुछ होने के बजाय पूरी कांग्रेस पार्टी और सरकार अपने नेता के बचाव में ही उतर गई। सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस खुर्शीद को उत्तर
प्रदेश विधानसभा चुनाव में फर्रुखाबाद सीट से जबर्दस्त हार का सामना करना पड़ा था और वह पांचवें
स्थान पर थीं। कोई भी
राजनेता केवल कोरी बातों और वादों से आम जनता का भरोसा हासिल नहीं कर सकता, लेकिन
मौजूदा दौर में राजनीति के धृतराष्ट्र इन बातों को भूलते जा रहे हैं। राजनीति या फिर सरकार में बैठे लोगों को समझना होगा कि आम
जनता की आंखों में धूल झोंकना
आसान नहीं है। कैग की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा होता है कि 2जी स्पेक्ट्रम
घोटाले में टेलीकॉम कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए देश के सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपये की चपत लगी, लेकिन देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बहुत दिनों तक
तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा का बचाव करते नजर आ रहे थे, जबकि इस रिपोर्ट
के सामने आने के बाद आरोपियों पर तत्काल कार्रवाई होनी चाहिए थी। बात किसी एक घोटाले की नहीं है,
नागरिक उड्डयन मंत्रालय को लेकर कैग की ही एक रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि निविदा शर्तो का उल्लंघन कर डायल
को 3415 करोड़ रुपये का भारी मुनाफा हुआ। आखिर कब तक देश की सरकार आम आदमी के हितों की
अनदेखी कर निजी कंपनियों को
फायदा पहुंचाने में जुटी रहेगी? साख की चिंता घोटाले और भ्रष्टाचार की कहानी यहीं नहीं
थमती, आकाश से लेकर पाताल तक हर तरफ घोटाले पर घोटाले होते रहे, लेकिन राजनीति के धृतराष्ट्र ठोस कार्रवाई की बजाय जान-बूझकर इसे नजरअंदाज करते रहे।
देश की चुनिंदा निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार ने कोयला खानों का आवंटन कौडि़यों के भाव कर दिया। कोयला खदानों को प्रतिस्पर्धी बोलियों
के बजाय आवेदन के आधार पर देने से सरकार को 17.40 अरब टन कोयले पर 1.86
लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। कैग ने वर्ष 2004 से 2009
के बीच कोयला ब्लॉक आवंटन की जांच की है और इस बीच वर्ष 2006 से 2009 तक कोयला मंत्रालय की जिम्मेदारी खुद
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
संभाल रहे थे। कैग की रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के बजाय सरकार और कांग्रेस के तमाम महारथी कैग की भूमिका
पर ही सवाल उठाने में जुटे रहते हैं। देश की संवैधानिक संस्था को चुनौती देकर क्या हम अपने लोकतंत्र को मजबूत रख सकते हैं? कैग की रिपोर्ट पर लोक लेखा समिति विचार करती है, लेकिन मौजूदा दौर में
जरूरत इस बात की है कि सरकार कैग जैसी संस्था पर सवाल खड़े करने की बजाय उसकी सिफारिशों पर गंभीरता से गौर करे और
दोषियों के खिलाफ सख्त
कार्रवाई करे। आखिर कब तक सरकार या हमारे प्रधानमंत्री खोखली बातों के आधार पर देश की साख को लेकर चिंतित होंगे?
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की कुछ समय पहले जारी
मानव विकास रिपोर्ट में इस
बात का जिक्र किया गया था कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब रहते हैं। इस
रिपोर्ट में गरीबी का मूल्यांकन करने के लिए आय के अलावा स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर जैसी बातों को शामिल किया गया था और इस आधार पर भारत में गरीबों की तादाद 61
करोड़ बताई गई थी यानी हमारी आधी से भी ज्यादा आबादी गरीब है। क्या संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के इन आंकड़ों से देश की साख दांव
पर नहीं लगती? आज जरूरत इस बात की है कि राजनीति के धृतराष्ट्र अपनी आंखों
पर बंधी पट्टियों को खोलें और दो वक्त की रोटी तथा बुनियादी जरूरतों की जद्दोजहद में जुटी आम जनता की मुश्किलों को दूर करने के लिए पहल करे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
Dainik Jagran Nation Edition 18-10-2012 राजनीति Pej-9
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